चाणक्य नीति: क्या आप जानते हैं मनुष्य का सबसे बड़ा रोग, शत्रु और मित्र कौन है?
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1. काम-वासना के समान दूसरा रोग नही
आचार्य चाणक्य के अनुसार, काम-वासना के समान कोई दूसरा रोग नहीं। जिस व्यक्ति के मन में काम-वासना की भावना हर समय रहती है, उसका मन किसी और कार्य में नहीं लगता और निरंतर सिर्फ वासना के बारे में ही सोचता रहता है। ऐसे लोग दिमागी रूप से बीमार होते हैं। शरीर के रोगों के इलाज संभव है, लेकिन काम-वासना से पीड़ित व्यक्ति का कोई इलाज नहीं है।
2. मोह के समान शत्रु नहीं
मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु मोह है, ऐसा आचार्य चाणक्य का कहना है। क्योंकि मोह ही सभी दुखों की मूल जड़ है। जब व्यक्ति किसी के मोह में फंस जाता है तो उसके दुखों से वह स्वयं भी दुखी होने लगता है। व्यक्ति दिन-रात जिस व्यक्ति या वस्तु से मोह है, उसी के बारे में सोचता रहता है।
3. क्रोध के समान आग नहीं
जिस व्यक्ति को छोटी-छोटी बातों पर क्रोध आ जाता है, वह स्वयं का ही शत्रु होता है। क्रोध की अग्नि बहुत भयंकर होती है। क्रोधी व्यक्ति बिना कुछ सोचे-समझे कुछ भी कर बैठता है, जिसके लिए उसे बाद में पछताना भी पड़ता है। इसलिए कहा गया है क्रोध के समान आग नहीं है।
4. ज्ञान से बढ़कर सुख नहीं
जिस व्यक्ति के पास ज्ञान है, उससे सुखी मनुष्य दुनिया में और कोई नहीं। ज्ञान से ही हर दुख का निवारण हो सकता है। ज्ञानी मनुष्य दुनिया के कष्टों से परे होते हैं और निरंतर धर्म-कर्म में लगे रहते हैं। इसलिए आचार्य चाणक्य ने कहा है कि ज्ञान से बढ़कर कोई सुख नहीं है।