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Jallikattu tradition: जल्ली कट्‌टू की तरह ही जानलेवा हैं ये परंपराएं, इनके बारे में जानकर आप भी रह जाएंगे शॉक्ड

Supreme Court Verdict 2023 on Jalli Kattu: हिंदू धर्म में हर त्योहार से कई परंपराएं जुड़ी हैं। इनमें से कुछ परंपराओं में धार्मिक, वैज्ञानिक और मनोवैज्ञानिक तथ्य छिपे हैं, जबकि कुछ परपराओं के पीछे कोई कारण नहीं है। जल्ली कट्‌टू भी इनमें से एक है।   

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Manish Meharele
Published : Aug 12 2022, 07:06 PM IST| Updated : May 19 2023, 09:51 AM IST
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तमिलनाडू में पोंगल के समय जल्ली कट्टू की परंपरा निभाई जाती है। इसमें एक बैला को पीछा किया जाता है और उस पर काबू करने की कोशिश की जाती है। इस दौरान व्यक्ति को बैल की कूबड़ पकड़ने की कोशिश करनी होती है। बैल को वश में करने के लिए उसकी पूंछ और सींग को पकड़ा जाता है। बैल को काबू करने के चक्कर में कई लोग घायल भी हो जाते हैं। अगर बैल बेकाबू हो जाए तो जान जाने की खतरा भी बना रहता है।
 

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मध्यप्रदेश के इंदौर जिले में गौतमपुरा नामक स्थान पर दीपावली के दूसरे दिन हिंगोट युद्ध की परंपरा निभाई जाती है। इस दौरान लोग दो गुटों में बंट जाते हैं और एक-दूसरे पर हिंगोट (एक फल के अंदर बारुद भरकर इसे बनाया जाता है) से हमला करते हैं। हिंगोट रॉकेट की तरह विरोधी दल पर जाकर गिरता है। इस दौरान कई लोग घायल हो जाते हैं। इस युद्ध में किसी भी दल की हार-जीत नहीं होती लेकिन सैकड़ों लोग हर बार घायल हो जाते हैं और जान जाने की खतरा भी रहता है।
 

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श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के मौके पर पूरे देश में दही हांडी की परंपरा निभाई जाती है। इसमें एक मटकी में दही भरकर ऊंचे स्थान पर लटका किया जाता है और लोग एक-दूसरे पर चढ़कर इस मटकी को फोड़ने की कोशिश करते हैं। इस दौरान कई बार लोगों का बैलेंस बिगड़ जाता है और वे नीचे गिर जाते हैं। हालांकि कुछ स्थानों पर दुर्घटना से बचने के लिए इंतजाम किया जाए हैं, लेकिन फिर भी इसमें जान का खतरा हमेशा बना रहता है।
 

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दीपावली के दूसरे दिन मध्य प्रदेश के उज्जैन के आस-पास स्थित ग्रामीण इलाकों में भी एक खतरनाक परंपरा निभाई जाती है। इस परंपरा के दौरान लोग सड़कों पर लेट जाते हैं और उनके ऊपर से सैकड़ों गाय-बैलों को निकाला जाता है। इस दौरान कई लोग घायल भी हो जाते हैं। स्थानीय मान्यता के अनुसार ऐसा करने से मनोकामनाएं पूरी होती हैं। इस परंपरा भी जान जाने का रिस्क होता है।
 

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क्या कोई छोटे बच्चों को छत से नीचे फेंक सकता है, लेकिन ऐसी ही एक परंपरा कर्नाटक के कुछ इलाकों में निभाई जाती है। मान्यता है कि ऐसा करने से बच्चों का भाग्यदोय होता है। साथ ही बच्चों की सेहत भी ठीक रहती है। ये परंपरा सालों से निभाई जा रही है। जब बच्चों को छत से फेंका जाता है तो नीचे कुछ लोग कंबल या अन्य कोई कपड़ा लेकर खड़े रहते हैं। बच्चों को उसी कपड़े में फेंका जाता है। लेकिन फिर भी इस परंपरा में रिस्क तो रहता है।
 

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दीपावली पर्व के बाद ही मध्य प्रदेश के कई इलाकों जैसे उज्जैन, इंदौर आदि में भैसों की लड़ाई का आयोजन किया जाता है। इस दौरान दो भैंसों को एक-दूसरे से लड़ने के लिए छोड़ दिया जाता है और लोग उनके आस-पास खड़े हो जाते हैं। लड़ाई से पहले भैसों को शराब भी पिलाई जाती है। कई बार भैंसों को काबू करना मुश्किल हो जाता है और वे बेकाबू होकर भीड़ में भी घुस जाते हैं। ऐसी स्थिति में जो लोग इस लड़ाई का मजा लेने जाते हैं, उनकी जान पर भी बन आती है।
 

About the Author

MM
Manish Meharele
मनीष मेहरेले। मीडिया जगत में इनके पास 19 साल से ज्यादा का अनुभव है। वर्तमान समय में ये एशियानेट न्यूज हिंदी के साथ जुड़कर धर्म-आध्यात्म बीट पर काम कर रहे हैं। करियर की शुरुआत इन्होंने स्थानीय अखबार दैनिक अवंतिका से की थी। इसके बाद वह दैनिक भास्कर प्रिंट उज्जैन में वाणिज्य डेस्क प्रभारी रहे और 2010-2019 तक दैनिक भास्कर डिजिटल में धर्म डेस्क पर काम किया। इन्हें महाभारत, रामायण जैसे धार्मिक ग्रंथों का अच्छा ज्ञान है। इनके पास जीव विज्ञान में बीएससी स्नातक की डिग्री है।

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