शिव और पार्वती का स्वरूप है ये ज्योतिर्लिंग, इसे कहते हैं दक्षिण का कैलाश
| Published : Feb 19 2020, 04:57 PM IST
शिव और पार्वती का स्वरूप है ये ज्योतिर्लिंग, इसे कहते हैं दक्षिण का कैलाश
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ऐसे स्थापित हुआ ये ज्योतिर्लिंग: शिवपुराण के अनुसार, एक बार माता पार्वती और भगवान शिव के मन में अपने दोनों पुत्रों कार्तिकेय व श्रीगणेश के विवाह का विचार आया। यह जान कर कार्तिकेय व श्रीगणेश पहले विवाह करने की जिद करने लगे। तब भगवान शिव व माता पार्वती ने उनके सामने शर्त रखी कि तुम दोनों में से जो पहले पृथ्वी की परिक्रमा कर लौटेगा, उसी का विवाह पहले होगा। यह सुनते ही कार्तिकेय पृथ्वी की परिक्रमा करने चल दिए, लेकिन श्रीगणेश ने वहीं पर शिव-पार्वती की परिक्रमा कर यह सिद्ध कर दिया कि माता-पिता में ही संपूर्ण सृष्टि विराजमान है। इस प्रकार श्रीगणेश अपनी बुद्धि से वह शर्त जीत गए और उनका विवाह पहले हो गया। जब यह बात कार्तिकेय को पता चली तो वे बहुत क्रोधित हुए और शिव-पार्वती के रोकने पर भी क्रौंच पर्वत पर चले गए। शिव व पार्वती के अनुरोध करने पर भी कार्तिकेय नहीं लौटे तथा वहां से 12 कोस दूर चले गए। कार्तिकेय के यूं रूठ कर चले जाने से माता पार्वती को बहुत दु:ख हुआ। तब अपनी प्रिय पत्नी को सुख देने के उद्देश्य से भगवान शिव पार्वती को साथ लेकर अपने एक अंश से क्रौंच पर्वत पर गए और मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रतिष्ठित हो गए।
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इस ज्योतिर्लिंग को दक्षिण का कैलाश कहते हैं और यह भगवान शिव के प्रमुख तीर्थ स्थलों में से एक है।
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मल्लिकार्जुन मंदिर के पीछे पार्वती का मंदिर है। जहां पर पार्वती मल्लिका देवी के नाम से स्थित है।
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मान्यता है कि आदि शंकराचार्य ने जब इस मंदिर की यात्रा की, तभी उन्होंने शिवनंद लहरी की रचना की थी।
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शिवपुराण के अनुसार, पुत्र स्नेह के कारण शिव-पार्वती प्रत्येक पर्व पर कार्तिकेय को देखने के लिए जाते हैं। अमावस्या के दिन स्वयं भगवान शिव वहां जाते हैं और पूर्णिमा के दिन माता पार्वती जाती हैं।
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मंदिर के समीप ही कृष्णा नदी बहती है, जिसे पाताल गंगा भी कहा जाता है। पाताल गंगा जाने के लिए मंदिर के कुछ दूरी पर लगभग 850 सीढ़ियां उतरनी पड़ती है। मंदिर में प्रवेश करने से पहले यहां स्नान करने का महत्व है।