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Nagpanchami 2022: रहस्यमयी हैं ये 5 प्राचीन नाग मंदिर, आज तक कोई जान नहीं पाया इनसे जुड़े राज़
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मध्य प्रदेश की धार्मिक राजधानी कहे जाने वाले उज्जैन में स्थित नागचंद्रेश्वर की विशेषता है कि ये साल में सिर्फ एक बार नागपंचमी पर ही खोला जाता है। ये मंदिर महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग के सबसे ऊपरी हिस्से में स्थित है। नागपंचमी पर पहले महानिर्वाणी अखाड़े के साधु-संत मंदिर के दरवाजे खोलकर पूजा करते हैं, इसके बाद ही आम श्रृद्धालु मंदिर में प्रवेश करते हैं। नागपंचमी की रात को ही मंदिर पुन: बंद कर दिया जाता है।
केरल में अलेप्पी नामक स्थान से 37 कि.मी से दूर एक नाग मंदिर है, नागराज और उनकी पत्नी नागयक्षी को समर्पित है। ये मंदिर लगभग 16 एकड़ में फैला हुआ है और मंदिर के हर कोने हर हिस्से में सांप की प्रतिमा है, जिनकी संख्या लगभग 30,000 है। मान्यता है कि ये मंदिर महाभारत काल का है। जब अर्जुन ने खांडव वन जलाया था तो वहां के जीव-जंतुओं ने इस स्थान पर आकर अपनी जान बचाई थी। नागपंचमी आदि विशेष अवसरों पर यहां काफी संख्या में लोग दर्शन करने आते हैं।
नैनीताल के भीमताल में स्थित है कर्कोटक नाग मंदिर। कर्कोटक नवनागों में से एक है। इस मंदिर को भीमताल का मुकुट भी कहा जाता है क्योंकि ये यहां की सबसे ऊंची चोटी पर स्थित है। मंदिर जाने के लिए घने जंगल से गुजरना पड़ता है। इस मंदिर से जुड़ी कई किवदंतियां और मान्यताएं है। कालसर्प दोष से मुक्ति के लिए लोग यहां आकर विशेष पूजा-अर्चना आदि उपाय करते हैं। नागपंचमी यहां भक्तों की भीड़ उमड़ती है।
उत्तराखंड के बागेश्वर जनपद में एक पुराना नाग मंदिर है, इसे धौलीनाग मंदिर कहा जाता है। ये मंदिर विजयपुर के पास एक पहाड़ी के शीर्ष पर बना है। यहां रोज भक्तों की भीड़ उमड़ती है। नाग पंचमी पर यहां मेला लगता है, जिसमें लाखों भक्त आकर नागदेवता का आशीर्वाद लेते हैं। मान्यताओं के अनुसार, धौलीनाग महाभारत में बताए गए कालिया नाग के पुत्र हैं। महर्षि व्यास ने स्कंद पुराण के मानस खण्ड के 83 वें अध्याय में धौलीनाग की महिमा का वर्णन करते हुए लिखा है-
धवल नाग नागेश नागकन्या निषेवितम्।
प्रसादा तस्य सम्पूज्य विभवं प्राप्नुयात्ररः।।
जम्मू के डोडा जिले के भद्रवाह में वासुकि नाथ मंदिर स्थित है। ये मंदिर ग्यारहवीं शताब्दी का बताया जाता है यानी लगभग 1 हजार साल पुराना। इस मंदिर के दर्शन करने के लिए दूर-दूर से भक्त यहां आते हैं। इस मंदिर से जुड़ी कई कथाएं और मान्यताएं भी प्रचलित हैं। यह मंदिर ऋषि कश्यप के पुत्र और सर्पों का राजा वासुकि को समर्पित है। मंदिर में नागराज वासुकि की प्रतिमा स्तापित है। मंदिर से कुछ दूर एक कुंड भी है, जिसे वासुकि कुंड कहा जाता है।