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पढ़ाई से लेकर 'पहले प्यार' और पॉलिटिक्स तक, कुछ ऐसी है रामविलास पासवान के 'चिराग' की कहानी
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बिहार के दोनों दिग्गजों ने लगभग एक ही समय में अपने बेटों को राजनीतिक अखाड़े में उतारा। 2014 से ही तेजस्वी यादव (Tejaswi Yadav) और तेजप्रताप (Tejpratap Yadav) पिता की जगह लेने के लिए पार्टी की राजनीति में सक्रिय हो गए और चुनाव जीत कर क्रमश: डिप्टी सीएम और हेल्थ मिनिस्टर के रूप में काम भी किया। जबकि रामविलास के बेटे चिराग पासवान (Chirag Paswan) ने भी 2014 में ही राजनीति में पारी की शुरुआत की और सांसद बने।
31 अक्तूबर 1982 को जन्मे चिराग पिता की विरासत को आगे ले जाना चाहते हैं। चिराग की मां का नाम रीना पासवान (Reena Paswan) है। वैसे चिराग का पहला प्यार एक्टिंग थ। उन्होंने 2011 में इसकी कोशिश भी की थी। कंगना रनौट (Kangana Ranaut) के साथ उनकी फिल्म "मिले ना मिले हम" रिलीज हुई। इस फिल्म का निर्देशन तनवीर खान ने किया था। फिल्म बॉक्स ऑफिस पर बुरी तरह फ्लॉप हुई मगर पासवान के बेटे का नाम जुड़ा होने की वजह से इसकी खूब चर्चा हुई। हालांकि चर्चाओं का कोई फायदा नहीं हुआ और चिराग को दूसरी फिल्में नहीं मिलीं। फिल्मों में आने से पहले चिराग ने कंप्यूटर इंजीनियरिंग में बीटेक भी किया।
फिल्मों में करियर बनता न देख चिराग पिता के साथ एलजेपी (LJP) की राजनीति करने लगे। कहते हैं कि ये चिराग ही थे जिनकी वजह से 2014 से पहले एलजेपी, नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) के नेतृत्व में एनडीए (NDA) का हिस्सा बना। चिराग को पार्टी ने जमुई (Jamui) लोकसभा सीट से मैदान में उतारा। पहले चुनाव में चिराग ने आरजेडी उम्मीदवार को करीब 85 हजार से ज्यादा मतों से शिकस्त दी। उस चुनाव के दौरा बिहार में चिराग पार्टी और एनडीए का सेलिब्रिटी चेहरा बन गए।
2019 में एक बार फिर चिराग पासवान ने जमुई लोकसभा चुनाव में आरजेडी उम्मीदवार को शिकस्त दी। इससे पहले पॉलिटिक्स में सक्रिय बेटे को रामविलास पासवान ने अपनी जगह पार्टी का अध्यक्ष भी बना दिया। अध्यक्ष के रूप में चिराग पार्टी के हर-छोटे बड़े फैसले लेते हैं। सहयोगी दलों से बातचीत से लेकर पार्टी में टिकटों के वितरण तक हर जगह चिराग का नियंत्रण देखा जा सकता है।
चिराग का एक एनजीओ भी है "चिराग का रोजगार"। अपने इस एनजीओ के जरिए एलजेपी चीफ बिहार के बेरोजगार युवाओं की नौकरियों में मदद करते हैं। दरअसल, चिराग पिता की जातीय राजनीतिक विरासत को भविष्य के हिसाब से आगे ले जाना चाहते हैं। वो महादलित राजनीति से भी ज्यादा सर्वसमाज, युवाओं की बेरोजगारी, विकास और बिहारी अस्मिता पर राजनीति करना चाहते हैं।
इस मकसद के लिए चिराग को विपक्ष के अलावा सहयोगी दलों के साथ भी भिड़ते देखा जा चुका है। शायद यही वजह है कि एनडीए में तीसरे नंबर का दल होने के बावजूद 2020 के विधानसभा चुनाव से पहले चिराग ने की काफी चर्चा है और मुख्यमंत्री के दावेदार के रूप में उनका नाम भी सामने आया। यह अनायास नहीं है।
माना जा रहा है कि 2020 का चुनाव नीतीश, लालू और रामविलास का आखिरी चुनाव भी हो सकता है। आरजेडी ने तो पहले ही साफ कर दिया कि अब लालू की जगह पार्टी का चेहरा तेजस्वी यादव ही हैं। बिहार में नीतीश के बाद महादलित और युवा नेता के नाते चिराग अभी से अपनी दावेदारी जता रहे हैं।
भविष्य को लेकर चिराग काफी आक्रामक हैं और 2020 के चुनाव में ही इसका बैकग्राउंड बनाना चाहते हैं। इसी मकसद से पार्टी की दलित राजनीति से अलग चिराग ने बिहार फर्स्ट और बिहारी फर्स्ट का नारा दिया है। ये नारा आरजेडी विरोधी युवाओं को नेतृत्व देने के लिए ही बनाया गया है। बार-बार विकास और नए बिहार की बात करने वाले चिराग की नजरों में भविष्य का सपना है। एलजेपी नेता की बस एक ही दिक्कत है। बिहार की बजाय उनका ज़्यादातर वक्त दिल्ली में ही बीतता है।