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बिहार का बाबाधाम : शिवलिंग रूप में भोलेनाथ साथ विराजमान हैं माता पार्वती, रामायण-महाभारत काल से जुड़ी है गाथा
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राजा मान सिंह के सपने में आए थे भोलेनाथ
इस मंदिर का निर्माण मुगल शासक अकबर के सेनापति मान सिंह ने कराया था। मंदिर के पुजारी बताते हैं कि मान सिंह जब गंगा नदी में जलमार्ग से बंगाल विद्रोह को खत्म करने सपरिवार रनियासराय जा रहे थे उसी वक्त राजा मान सिंह की नाव मंदिर के किनारे गंगा नदी स्थित कौड़िया खाड़ में फंस गई। काफी प्रयास के बाद भी जब राजा मान सिंह की नाव कौड़िया खाड़ से नहीं निकल सकी तो पूरी रात मानसिंह को सेना सहित वहीं डेरा डालना पड़ा। कहते हैं कि रात को ही राजामान सिंह को सपने में भगवान शंकर ने दर्शन दिया और अपने जीर्ण-शीर्ण मंदिर को फिर स्थापित करने को कहा। मान सिंह ने उसी रात मंदिर के जीर्णोद्धार का आदेश दिया और उसके बाद यात्रा शुरू की और बंगाल में उन्हें विजय प्राप्त हुई।
रामायण काल से जुड़ा मंदिर का इतिहास
इस मंदिर का इतिहास रामायण काल से जुड़ा है। प्राचीनकाल में गंगा के तट पर बसा यह क्षेत्र बैकुंठ वन के नाम से जाना जाता था। आनंद रामायण में इस गांव की चर्चा बैकुंठा के रूप में हुई है। माना जाता है कि लंका विजय के बाद रावण को मारने से जो ब्राह्मण हत्या का पाप लगा था, उस पाप से मुक्ति के लिए भगवान श्रीराम इस मंदिर में आए थे। यहां उन्होंने भगवान शंकर की पूजा की थी। काफी साल पहले मंदिर के आसपास जंगल थे, जहां ऋषि-मुनि तप करते थे। यह भी मान्यता है कि यहां आने के लिए गंगा नदी के उस तरफ के एक गांव में श्रीरामचंद्र जी रात्रि विश्राम किया था, जिसके कारण कारण उस गांव का नाम राघवपुर पड़ा जो वर्तमान में वैशाली जिले के राघोपुर के नाम जाना जाता है।
महाभारत काल में भी जिक्र
पुरानी कथाओं के मुताबिक महाभारत काल में भी इस मंदिर का जिक्र है। मान्यताओं के मुताबिक पुजारी बताते हैं कि मगध के राजा जरासंध के पिता बृहद्रथ भगवान भोलेनाथ के बड़े भक्त थे। वह प्रतिदिन गंगा किनारे आते और भगवान शिव की आराधना करते थे। इसी जगह पर एक ऋषि मुनि ने राजा बृहद्रथ को संतान उत्पत्ति के लिए एक फल दिया था, जिसे राजा ने दो टुकड़े कर अपनी दोनों पत्नियों को खिला दिया था। दोनों रानियों के एक पुत्र के अलग-अलग टुकड़े हुए थे, जिसे जंगल में फेंकवा दिया गया था। इसके बाद जोड़ा नाम की राक्षसी ने दोनों को जोड़ दिया और नाम रखा जरासंध।
बांह पर शिवलिंग पहनता था जरासंध
जरासंध भी महादेव का बहुत बड़ा भक्त था। जरासंध रोज इस मंदिर में राजगृह से पूजा करने आता था। जरासंध हमेशा अपनी बांह पर शिवलिंग बांधता था। उसे भगवान शंकर से वरदान मिला था कि जब तक उसके बांह पर शिवलिंग रहेगा, उसे कोई हरा नहीं सकता है। जरासंध को पराजित करने के लिए भगवान श्रीकृष्ण ने छल से जरासंध की बांह पर बंधे शिवलिंग को गंगा में प्रवाहित करा दिया और जरासंध मारा गया।
चीनी यात्री फाह्यान के यात्रा वृतांत में भी जिक्र
कहा जाता है कि सच्चे मन से बैकुंठधाम में भगवान शिव की जो भक्त पूजा करता है, उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती है। यहां बड़ी संख्या में शिवभक्त पहुंचते हैं। काशी विश्वनाथ और देवधर में बैद्यनाथ धाम के बाद इस मंदिर को बिहार का बाबाधाम कहा जाता है। चीनी यात्री फाह्यान ने यात्रा वृतांत में नालंदा दौरे के दौरान बैकठपुर मंदिर की चर्चा की है। वर्तमान जो स्वरूप देखा जा सकता है वह राजा मान सिंह द्धारा ही बनाया गया है।
अक्सर शिव दर्शन के लिए आते हैं मुख्यमंत्री
पौराणिक और ऐतिहासिक महत्व वाले इस मंदिर में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) भी आते-रहते हैं। यही नहीं बैकटपुर मंदिर में पुरी के शंकराचार्य जगतगुरू निश्चलानद जी भी 2007 में आ चुके हैं। वैसे तो हर साल इस मंदिर में श्रद्धालुओं का आना जाना लगा रहता है लेकिन महाशिवरात्रि और श्रावण माह में भोलेनाथ यहां आने वाले भक्तों की संख्या लाखों में पहुंच जाती है।
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