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इस मंदिर में हर रात चौसर खेलने आते हैं भगवान शिव और माता पार्वती, सुबह चमत्कार देख हर कोई हैरान
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ओंकारेश्वर मंदिर मध्यप्रदेश के निमाड़ में है। यह खंडवा जिले के नर्मदा नदी के बीचो-बीच ओंकार पर्वत पर है। यहां ॐ शब्द की उत्पत्ति ब्रह्मा जी के श्रीमुख से हुई थी। इसलिए हर धार्मिक शास्त्र या वेदों का पाठ ॐ शब्द के साथ किया जाता है। ओंकारेश्वर की महिमा का उल्लेख पुराणों में स्कंद पुराण, शिवपुराण और वायुपुराण में भी है।
यह मंदिर नर्मदा किनारे ॐ आकार के पर्वत पर बसा है। यहां शिवलिंग की आकृति ॐ के आकार की है। इसी कारण इस ज्योतिर्लिंग को ओंकारेश्वर के नाम से जाना जाता है। मान्यता है कि यह एकमात्र ज्योतिर्लिंग है, जहां भगवान भोलेनाथ तीन लोकों का भ्रमण कर रात में यहां विश्राम करने आते हैं। माता पार्वती भी यहां विराजित हैं। रात को शयन से पहले भगवान शिव और माता पार्वती यहां चौसर खेलते हैं।
यही कारण है कि यहां शयन आरती भी की जाती है। शयन आरती के बाद ज्योतिर्लिंग के सामने रोज चौसर-पांसे की बिसात सजाई जाती है। रात में गर्भ गृह में कोई भी नहीं जाता लेकिन सुबह पासे उल्टे मिलते हैं। ओंकारेश्वर मंदिर में भगवान शिव की गुप्त आरती की जाती है जहां पुजारियों के अलावा कोई भी गर्भ गृह में नहीं जा सकता। पुजारी भगवान शिव का विशेष पूजन एवं अभिषेक करते हैं।
ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग परिसर एक पांच मंजिला इमारत है। पहली मंजिल पर भगवान महाकालेश्वर का मंदिर है और तीसरी मंजिल पर सिद्धनाथ महादेव की। जबकि चौथी मंजिल पर गुप्तेश्वर महादेव और पांचवी मंजिल पर राजेश्वर महादेव का मंदिर है। ओंकारेश्वर में अनेक मंदिर हैं नर्मदा के दोनों दक्षिणी व उत्तरी तटों पर मंदिर हैं। पूरा परिक्रमा मार्ग मंदिरों और आश्रमों से भरा हुआ है। कई मंदिरों के साथ यहां अमलेश्वर ज्योतिर्लिंग नर्मदा जी के दक्षिणी तट पर विराजमान हैं।
हिंदुओं में सभी तीर्थों के दर्शन पश्चात ओंकारेश्वर के दर्शन और पूजन का विशेष महत्व है। शिवभक्त सभी तीर्थों का जल लाकर ओंकारेश्वर में अर्पित करते हैं, तभी सारे तीर्थ पूर्ण माने जाते हैं। ओंकारेश्वर और अमलेश्वर दोनों शिवलिंगों को ज्योतिर्लिंग माना जाता है। यहां पर्वतराज विंध्य ने घोर तपस्या की थी और उनकी तपस्या के बाद उन्होंने भगवान शिव से प्रार्थना कर कहा के वे विंध्य क्षेत्र में स्थिर निवास करें उसके बाद भगवान शिव ने उनकी यह बात स्वीकार कर ली। वहां एक ही ओंकार लिंग दो स्वरूपों में बंटी है। इसी प्रकार से पार्थिव मूर्ति में जो ज्योति प्रतिष्ठित हुई थी, उसे ही परमेश्वर अथवा अमलेश्वर ज्योतिर्लिंग कहते हैं।
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