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Lata Mangeshkar Birth Annniversary: क्यों नहीं की थी लता जी ने शादी?12 किस्सों में जानिए ऐसे ही सवालों के जवाब
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किस्सा नं. 1: 5 साल की उम्र में लता का टैलेंट आया पिता के सामने
लता मंगेशकर के पिता पंडित दीनानाथ मंगेशकर क्लासिकल सिंगर और थिएटर आर्टिस्ट थे। वे एक थिएटर कंपनी चलाते थे, जो म्यूजिकल प्ले बनाती थी। 5 साल की उम्र में ही लता इस कंपनी से जुड़ गई थीं। यही वह उम्र थी, जब पिता ने पहली बार उनमें सिंगिंग टैलेंट देखा। मैगजीन स्टारडस्ट से बातचीत में लताजी ने एक बार कहा था, "पिताजी ने अपने शागिर्द को राग पुरिया धनश्री की प्रैक्टिस करने को कहा और खुद अपना कोई काम पूरा करने चले गए। मैं वहीं खेल रही थी। अचानक मैंने पाया कि उस शागिर्द का एक सुर गड़बड़ हो रहा था। तब मैंने उसे ठीक कराया। जब पिताजी लौटे और उन्हें पूरे घटनाक्रम के बारे में पता चला तो उन्होंने मुझे अपना शागिर्द बना लिया।" बाद में लता के पिता ने मां से कहा था, "हमारे घर में एक सिंगर है और हमें इस बात की खबर ही नहीं थी।"
किस्सा नं. 2: हृदया से हेमा और फिर लता बनने का सफर
आशा भोसले ने एक अखबार से खास बातचीत में बताया था कि उनकी दीदी लता का बचपन का नाम हेमा नहीं, बल्कि हृदया था। भाई (हृदयनाथ मंगेशकर) के जन्म के बाद उन्हें हेमा नाम दिया गया। कहा जाता है कि पिता के प्ले 'भाव बंधन' में लतिका नाम का एक किरदार था। इसी से प्रभावित होकर दीदी का नाम लता रख दिया गया।
किस्सा नं. 3 : बहन के लिए छोड़ दिया स्कूल
आशा भोसले के मुताबिक, वे बचपन में लताजी को आई (मां) बोलती थीं। उन्होंने एक बातचीत में बताया था, "दीदी मुझसे 4 साल बड़ी हैं। वे मुझसे बहुत प्यार करती हैं। बचपन में बहनों में सबसे ज्यादा मुझे साथ रखती थीं। एक दिन वे जब स्कूल गईं, तब उनका हाथ पकड़कर मैं भी वहां गई। चार-पांच दिन ऐसा चलता रहा। एक दिन मास्टर की नजर मुझ पर पड़ गई। वे बोले कि यह लड़की कौन है? दीदी ने बताया छोटी बहन है। तब मास्टर बोले- एक पैसे में तुम दोनों सीख रहे हो। इसे यहां से निकालो, जाओ घर पर छोड़ कर आओ। जब दीदी मुझे लेकर घर पहुंची तो बोलीं- मैं बहन को घर पर ही पढ़ाऊंगी। इस तरह मेरी वजह से दीदी का स्कूल छूट गया।"
इसके पीछे की एक अन्य थ्योरी भी है। 5 साल की उम्र में लता जी ने पिता के म्यूजिकल प्ले में बतौर एक्ट्रेस काम करना शुरू कर दिया था। फिर जब उन्होंने स्कूल जाना शुरू किया तो पहले ही दिन दूसरे बच्चों को गाना सिखाने लगीं, जो कि उनके टीचर को पसंद नहीं आया और उसने उन्हें रोक दिया। कहा जाता है कि इसी गुस्से के चलते उन्होंने स्कूल छोड़ दिया था।
किस्सा नं. 4 : फिल्म से डिलीट कर दिया गया था पहला गाना
पिता के अलावा लताजी ने अमन अली खान और अमानत खान जैसे दिग्गजों से भी संगीत सीखा है। उन्होंने अपना पहला गाना 'नाचू या गडे, खेळू सारी मनी हौस भारी' 1942 में आई मराठी फिल्म 'किती हसाल' के लिए रिकॉर्ड किया था। हालांकि, इसे फिल्म से एडिट कर दिया गया था। बाद में आया 'नताली चैत्राची नवलाई' उनका डेब्यू मराठी सॉन्ग माना जाता है।
किस्सा नं. 5 : जब रिजेक्ट कर दी गई थी लताजी की आवाज
लता मंगेशकर ने जब बतौर प्लेबैक सिंगर हिंदी इंडस्ट्री में कदम रखा, तब नूर जहां और शमशाद बेगम जैसी भारी भरकम आवाज वाली सिंगर्स का बोलबाला था। लताजी को कहा गया था कि उनकी आवाज बहुत पतली है, इसलिए वे सिंगर नहीं बन सकतीं। हालांकि, 1949 में उन्हें फिल्म 'महल' में बड़ा ब्रेक मिला। उन्होंने 'आएगा आने वाला' गाने को आवाज दी और वे रातों रात सिंगिंग सेंसेशन बन गईं।
किस्सा नं. 6 : मधुबाला रखती थीं लता से सिंगिंग कराने की शर्त
मधुबाला मानती थीं कि लताजी की आवाज उन पर खूब जंचती है, इसलिए वे अपने हर कॉन्ट्रैक्ट में ये शर्त रखती थीं कि उनके लिए लता ही प्लेबैक करें। हालांकि लता का मानना था कि उनकी आवाज सायरा बानो पर ज्यादा अच्छी लगती है। वैसे, लताजी की फेवरेट सिंगर कोई इंडियन नहीं, बल्कि मिस्र की सिंगर उम्म कुलसुम हैं।
किस्सा नं. 7: जब लताजी जहर देकर मारने की कोशिश की गई
1962 में लताजी गंभीर रूप से बीमार हुईं। जांच में पता चला कि किसी ने उन्हें धीमा जहर दिया था। तीन दिन तक उनकी हालत गंभीर रही। डॉक्टर्स ने उनकी जान बचा ली। लेकिन उन्हें पूरी तरह ठीक होने में लंबा वक्त लगा। वे करीब तीन महीने तक बेड रेस्ट पर रहीं। जहर किसने दिया था? इस बात का खुलासा नहीं हो सका। लेकिन उस वक्त उनका रसोइया बिना पगार लिए नौकरी छोड़ गया था। बाद में उस जमाने के फेमस गीतकार मजरूह सुल्तानपुरी नियमित रूप से दीदी के घर जाकर खाना चखते थे और फिर उन्हें उसे खाने की इजाजत देते थे।
किस्सा नं. 8 : जब लताजी की आवाज सुन रो पड़े थे नेहरू
बात 1962 की है। तब चीन के साथ हुए युद्ध में भारत की हार हुई थी। हमारे कई सैनिक शहीद हुए थे। उस वक्त एक प्रोग्राम में जब लताजी ने शहीदों को श्रद्धांजलि देने के लिए 'ए मेरे वतन के लोगो' सॉन्ग गाया तो तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू भी वहां मौजूद थे। उन्होंने दीदी से कहा था कि उनकी आवाज और गाने के शब्दों ने उन्हें रुला दिया है।
किस्सा नंबर 9: लताजी का क्रिकेट प्रेम
लताजी का पसंदीदा स्पोर्ट क्रिकेट था। जब 1983 में भारत ने पहली बार क्रिकेट वर्ल्ड कप जीता था, तब लताजी एक कॉन्सर्ट के सिलसिले में लंदन में ही थीं। उन्होंने फाइनल मैच लॉर्ड्स की गैलरी से देखा था। एक इंटरव्यू में दीदी ने बताया था, "उस वक्त मैं यकीन नहीं कर सकती थी कि दो बार की विश्वविजेता वेस्ट इंडीज को हराकर हमने वर्ल्डकप जीत लिया है।" लताजी ने यह भी बताया था कि मैच से पहले उन्होंने पूरी इंडियन टीम को होटल में डिनर के लिए बुलाया था और शुभकामनाएं दी थीं।
भारत लौटने के बाद उन्होंने विजेता टीम के लिए पैसे जुटाने बीसीसीआई की ओर से हुए एक कॉन्सर्ट में बिना फीस लिए हिस्सा लिया था, जिससे 20 लाख रुपए जमा हुए थे और हर खिलाड़ी को एक-एक लाख रुपए दिए गए थे। लताजी के फेवरेट क्रिकेटर सुनील गावस्कर रहे हैं। कपिल देव और सचिन तेंदुलकर भी उनके पसंदीदा क्रिकेटर्स में शामिल थे। क्रिकेट के लिए उनकी दीवानगी ताउम्र बरकरार रही। वे भारत का हर मैच देखती थीं और जब टीम कोई मैच हार जाती थी तो उन्हें बहुत बुरा लगता था।
किस्सा नं. 10 : इस वजह से नहीं की शादी
एक इंटरव्यू में शादी न करने के पीछे की वजह बताते हुए लता जी ने कहा था कि उनके मन में कई बार शादी के ख्याल आए, लेकिन वे ऐसा नहीं कर सकीं। उनके मुताबिक, वे बेहद कम उम्र में काम करने लगी थीं। उनके पास बहुत ज्यादा काम रहता था और पहले छोटे भाई-बहन को सेटल करने के बारे में सोचती थीं। फिर जब बहन की शादी हुई और उनके बच्चे हो गए तो उन्हें संभालने की जिम्मेदारी भी उन पर ही आ गई। इस तरह वक्त निकलता गया और वे अविवाहित ही रह गईं।
किस्सा नं. 11 मोहम्मद रफी से झगड़ा
बात 60 के दशक की है। उस वक्त मोहम्मद रफी के साथ लता मंगेशकर की अनबन की खबर खूब चर्चा में थी। इसके पीछे की वजह दीदी ने एक इंटरव्यू में बताई थी। उनके मुताबिक, उन्हें उस वक्त गानों के लिए रॉयल्टी मिलने लगी थी। लेकिन वे चाहती थीं कि सभी सिंगर्स को यह मिलनी चाहिए। इसलिए उन्होंने और तलत महमूद ने एक एसोसिएशन बनाई और रिकॉर्डिंग कंपनी एचएमवी और प्रोड्यूसर्स से गायकों के लिए रॉयल्टी की मांग की। जब उनकी मांग नहीं मानी गई तो सिंगर्स ने एचएमवी के लिए रिकॉर्डिंग बंद कर दी।
बाद में कुछ फिल्म प्रोड्यूसर्स और कंपनी ने मोहम्मद रफी से बात की तो उन्होंने कहा कि वे रॉयल्टी के बगैर रिकॉर्डिंग को तैयार हैं। इससे सिंगर्स एसोसिएशन को धक्का लगा। मुकेश ने रफी साहब को समझाने की कोशिश की। लेकिन उनका जवाब था, "मुझे मत समझाओ, ये महारानी (लता) बैठी हैं, इन्हे समझाओ।" इस पर लताजी को गुस्सा आ गया और दोनों के बीच खूब बहस हुई। लता के मुताबिक, रफी ने उन्हें कहा कि वे कभी उनके साथ गाने नहीं गाएंगे, इस पर पलटवार करते हुए उन्होंने जवाब दिया कि इस बात की तकलीफ उठाने की उन्हें जरूरत नहीं, क्योंकि वे खुद ही उनके साथ गाना बंद कर देंगी।"
किस्सा नंबर 12: मदन मोहन से खास रिश्ता
लताजी ने जितने भी संगीतकारों के साथ काम किया है, उनमें से मदन मोहन के साथ उनका रिश्ता सबसे खास रहा है। उन्होंने 2011 में एक इंटरव्यू में इस बात का जिक्र किया था। दीदी ने कहा था, "मदन मोहन के साथ मेरा स्पेशल रिश्ता था। यह सिंगर और म्यूजिक डायरेक्टर के बीच के रिश्ते से बढ़कर था। हम भाई-बहन की तरह थे। वे अपने सबसे अच्छे कम्पोजीशन के लिए मुझपर विश्वास रखते थे।"
एक्स्ट्रा फैक्ट्स
> 28 सितंबर, 1929 को मध्य प्रदेश के इंदौर में हुआ जन्म।
> 30 हजार से ज्यादा गाने गाए।
> भारत सरकार ने उन्हें पद्म भूषण, पद्मविभूषण, भारत रत्न और दादा साहब फाल्के अवॉर्ड से सम्मानित किया।
> करीब 10 फिल्मों में एक्टिंग की, जिनमें ‘बड़ी मां’,‘जीवन यात्रा’, ‘मंदिर’शामिल।
> न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी समेत दुनिया की 6 बड़ी यूनिवर्सिटीज ने उन्हें डॉक्टरेट की डिग्री दी।
> हवाई सफर से डर लगता था। जब फ्रांस सरकार ने उन्हें ‘प्रेस्टीजियस अवॉर्ड’ दिया, तो लता ने उनसे मुंबई आकर ये अवॉर्ड देने की गुजारिश की थी।
> आवाज को और सुरीला और मीठी आवाज के लिए रोज ढेर सारी हरी मिर्च खाती थीं बबल गम चबाती थीं।
> गाने की रिकॉर्डिंग से पहले उसे अपनी हैंड राइटिंग में पेपर पर लिखती थीं, पेज के टॉप पर'श्री' जरूरी लिखती थीं।
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