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26 साल में इस एक्टर ने कर डालीं 150 से ज्यादा फिल्में, लेकिन जिंदगीभर सताता रहेगा इस बात का अफसोस
मुंबई। बॉलीवुड फिल्मों के जाने-माने एक्टर संजय मिश्रा (Sanjay Mishra) 58 साल के हो गए हैं। 6 अक्टूबर, 1963 को बिहार के दरभंगा जिले में पैदा हुए संजय मिश्रा ने 26 साल पहले 1995 में रिलीज हुई शाहरुख खान की फिल्म 'ओ डार्लिंग ये है इंडिया' से करियर की शुरुआत की थी। इस फिल्म में उन्होंने एक हारमोनियम बजाने वाले का रोल प्ले किया था। हालांकि, उन्हें पहचान तीन साल बाद 1998 में आई फिल्म 'सत्या' से मिली। सत्या में उन्होंने विट्ठल मांजरेकर का रोल निभाया था। संजय अपने 26 साल के करियर में करीब 150 फिल्में कर चुके हैं, लेकिन एक चीज का मलाल उन्हें जिंदगी भर रहेगा। संजय आज भी उस चीज के लिए खुद को ही गुनहगार ठहराते हैं। आखिर किस चीज के लिए अपने आप को गुनहगार मानते हैं संजय मिश्रा..
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कुछ साल पहले एक इंटरव्यू में संजय मिश्रा ने अपने पिता से अटैचमेंट और उनकी मौत से पहले के कुछ किस्से शेयर किए थे। इसमें उन्होंने बताया था कि एक अफसोस जिसे मैं जिंदगी भर नहीं भुला सकता। संजय के मुताबिक, 20 मार्च, 2009 को उनकी फिल्म आलू चाट रिलीज हुई थी और 4 दिन बाद यानी 24 मार्च को संजय के पिता का निधन हो गया था।
संजय ने इंटरव्यू में बताया था कि इस फिल्म के रिलीज होने की खुशी में मेरे पिता ने अपने सब दोस्तों को इकट्ठा किया और कहा कि हम लोग संजय के साथ यह फिल्म देखेंगे। उसी वक्त मैं बीमारी से उबरके अस्पताल से घर लौटा था।
संजय के मुताबिक, हम लोग पास के ही एक मॉल में फिल्म 'आलू चाट' देखने गए। वहां लोगों की भीड़ ने मुझे घेर लिया और सेल्फी खिंचाने की जिद करने लगे। इस पर मैं भड़क गया और थिएटर के अंदर ही गुस्से में गालियां बकने लगा। चूंकि मेरे पिताजी के साथ उनके दोस्त भी थे, इसलिए उन्हें ये बात पसंद नहीं आई। इसके बाद इंटरवल में न पिताजी ने मुझे देखा और न ही मैं उन्हें देख रहा था।
करीब ढाई घंटे बाद जब फिल्म खत्म हुई और हम लोग लिफ्ट से नीचे आ रहे थे तो पापा ने मुझसे कहा- तुम्हें उस पर चिल्लाना नहीं चाहिए था। इस पर मैंने गुस्से में कहा- आप क्या जानते हैं? चिल्लाना नहीं चाहिए था, क्या आपसे फोटो खिंचवा रहा था वो? इससे पहले पापा से मैंने कभी इतनी ऊंची आवाज में बात नहीं की थी।
संजय मिश्रा के मुताबिक, जब मैं बीमार था तो मुझे कई एंटीबायोटिक दवाओं का डोज दिया जाता था। कई बार वो बहुत ज्यादा होता था, जिससे मुझे चिड़चिड़ाहट होती थी। वहीं, अस्पताल से घर आते ही थिएटर में लोगों का शोरशराबा सुनकर मैं बेहद परेशान हो गया था, जिसकी वजह से गुस्से पर काबू नहीं रख पाया और पिताजी पर चिल्ला दिया।
संजय ने बताया था कि कुछ दिन बाद ही दिल्ली के इंडिया गेट पर शूटिंग थी तो मैं ली मेरेडियन होटल में ठहरा था। वहां एक बिहारी कुक था। उसने मुझसे पूछा आपके लिए मीट बनाएं। मैंने कहा- मसालेदार नहीं बढ़िया देसी बनाओ। इसके बाद मैंने कहा- कल बनाना, मैं अपने पापाजी को बुलाऊंगा। अगले दिन मैंने पापा को फोन किया और कहा-बढ़िया मीट बना है, मैं गाड़ी भेज रहा हूं।
इस पर पापा ने भड़कते हुए कहा- तुम मत खाना। अभी तुम्हारी तबीयत ठीक हुई है। यही सब खा-खाकर तबीयत बिगाड़ लेते हो। मैंने कहा- पापाजी डांटिए मत। आप आइए फिर यहीं रुकिएगा। इसके बाद मैंने गाड़ी भेज दी, लेकिन गाड़ी अकेली आ गई और पापा नहीं आए।
इसके बाद मैंने पापा को फोन करके पूछा-आप आए क्यों नहीं, तो बोले थोड़ी तबीयत ठीक नहीं थी। मैंने पूछा- क्या खाए थे आप? तो वो बोले तुम जब आए थे तो मैंने तुम्हारी मां से कटहल की सब्जी बनवाई थी। इस पर मैंने कहा कि उस दिन की सब्जी अब खाए हैं तो इसीलिए गड़बड़ हो गई। तब पापा बोले- मुझे तुम्हारी सलाह की जरूरत नहीं है। ये उनकी आखिरी लाइन थी। सुबह पता चला पापा इस दुनिया में नहीं हैं।
संजय के मुताबिक, पापाजी को डायरी लिखने का शौक था। इसमें वो हर दिन का लिखते थे और उस दिन का भी लिखा था, जिस दिन हम लोग आलू चाट देखने गए थे। उन्होंने लिखा था- मनोज पाहवा ने बेहतरीन काम किया, लेकिन संजय तुम भी कुछ कम नहीं। लेकिन उसने मेरे दोस्तों के सामने मुझे बेइज्जत किया। वो पढ़कर मुझे बहुत बुरा लगा। संजय ने कहा था कि अगर कोई 2 सेकंड के लिए भी उन्हें जिंदा कर दे तो मैं अपनी गर्दन उतारके उनके सामने रख दूं और कहूं कि मैं आपका दिल दुखाना नहीं चाहता था।
बता दें कि संजय मिश्रा के पिता शम्भूनाथ मिश्रा पेशे से जर्नलिस्ट थे। सजंय जब 9 साल के थे तो उनकी फैमिली वाराणसी शिफ्ट हो गई थी। संजय ने अपनी एजुकेशन वाराणसी के केंद्रीय विद्यालय बीएचयू कैम्पस से की है। इसके बाद इन्होंने बैचलर डिग्री 1989 में पूरी करने के बाद 1991 में नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा से एक्टिंग कोर्स किया। संजय की शादी 28 सितंबर, 2009 को किरण से हुई। उनकी दो बेटियां पल और लम्हा हैं।
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