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सुशांत सिंह राजपूत की 8 अधूरी ख्वाहिशें, एक को पूरा करने मौत से 4 महीने पहले शुरू कर दी थी कवायद
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सुशांत अपनी बीटैक की डिग्री पूरी करना चाहते थे और इसके लिए मौत से ठीक चार महीने पहले उन्होंने कवायद भी शुरू कर दी थी। सुशांत ने फ़रवरी 2020 में दिल्ली इंजीनियरिंग कॉलेज पहुंचकर अपनी अधूरी डिग्री पूरी करने की इच्छा जाहिर की थी। यह खुलासा कॉलेज के प्रोफ़ेसर रंगनाथ एम सिंघारी ने किया था। उन्होंने सुशांत की मौत के बाद एक बातचीत में कहा था कि सुशांत अपनी डिग्री पूरी करने के लिए एप्लीकेशन देने वाले थे। लेकिन इसी दौरान कोरोना आ गया और वे अपनी ख्वाहिश पूरी नहीं कर पाए। गौरतलब है कि सुशांत फिल्मों में आने से पहले दिल्ली इंजीनियरिंग कॉलेज से मैकेनिकल इंजीनियरिंग से बी. टैक की पढ़ाई कर रहे थे। लेकिन चार साल में से तीन साल का कोर्स करने के बाद ही वे एक्टिंग की दुनिया में आ गए।
सुशांत की इच्छा थी कि उनकी जिंदगी पर फिल्म बने और इसमें वे खुद लीड रोल निभाएं। 2017 में फिल्म 'राबता' के प्रमोशन के दौरान खुद सुशांत ने इस बात का खुलासा किया था। दरअसल, जब एक पत्रकार ने उनसे पूछा कि वे 'एम.एस. धोनी : द अनटोल्ड स्टोरी' के बाद किसकी बायोपिक में काम करना चाहते हैं? तो उनका जवाब था, "मेरी ख्वाहिश है कि मेरी जिंदगी में कुछ हो। मैं खुद पर एक फिल्म चाहता हूं, जिसमें मैं ही लीड रोल निभाऊं। मुझे बस यह देखना यह कि यह फिल्म कैसी बनती है। मेरी बहुत इच्छा है कि मेरी जिंदगी में कुछ घटित हो और बायोपिक बने।" सुशांत ने यह भी कहा था कि यह छोटे शहर के लड़के की एक बेहतरीन कहानी हो सकती है, जिसमें उसके छोटे पर्दे से बड़े पर्दे तक पहुंचने का शानदार सफ़र दिखाया जाएगा।
सुशांत की ख्वाहिश दुनिया के सबसे ठंडे रेगिस्तान यानी अंटार्कटिका की यात्रा करने की थी। वे अपनी इस ख्वाहिश को फिल्म 'छिछोरे' के बाद पूरा करना चाहते थे। यह खुलासा 'छिछोरे' में सुशांत के को-एक्टर रहे प्रतीक बब्बर ने उनकी मौत के बाद किया था। दुनिया के इस आखिरी कोने की यात्रा का सपना देख रहे सुशांत की बात सुनकर प्रतीक हैरान रह गए थे। क्योंकि बेहद कम बारिश होने की वजह से यहां का कोई स्थाई निवासी नहीं है।
सुशांत सिंह राजपूत ने मौत से 8 महीने पहले अपने 50 सपनों का जिक्र सोशल मीडिया पर किया था। इनमें से उनके सिर्फ 11 सपने ही पूरे हो पाए थे। 39 अधूरे ही रह गए। इनमें से अगर 5 बड़े सपनों की बात करें तो उनकी इच्छा मॉर्स कोड सीखने की थी। वे स्पेस साइंस सीखने में बच्चों की मदद करना चाहते थे। सुशांत एक हफ्ते तक चांद, मंगल, ब्रहस्पति और शनि ग्रह को उनकी कक्षा में घूमते देखना चाहते थे और 100 बच्चों को इसरो या नासा की वर्कशॉप में भेजना चाहते थे। इतना ही नहीं, उनकी खुद की इच्छा भी नासा की एक वर्कशॉप में शामिल होने की थी।
सुशांत के अंदर एक जज्बा था, एक जुनून था, जिसे देखकर कोई भी कह सकता है कि वे अपनी इन ख्वाहिशों को पूरा कर सकते थे। लेकिन नियति देखिए, वे अपनी इन अधूरी ख्वाहिशों के साथ ही दुनिया को अलविदा कह गए।
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