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Budget 2021 : जानें कल पेश किए जाने वाले बजट से क्या है उम्मीदें, रहेगा इस पर कोविड का असर
| Published : Jan 31 2021, 12:18 PM IST
Budget 2021 : जानें कल पेश किए जाने वाले बजट से क्या है उम्मीदें, रहेगा इस पर कोविड का असर
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शुक्रवार को संसद के संयुक्त अधिवेशन (Joint Session of Parliament) में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ( PM Narendra Modi) और वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण (Finance Minister Nirmala Sitharaman) ने कहा कि अब तक 3-4 मिनी बजट पेश किए जा चुके हैं और 1 फरवरी को पेश किया जाने वाला बजट उसी का विस्तार होगा। यह भी कहा गया कि अब देश की अर्थव्यवस्था कोविड के असर से उबर रही है। कोविड ने अर्थव्यवस्था पर बहुत ही बुरा असर डाला है। इस बजट में ऐसे उपाय किए जाएंगे, ताकि अर्थव्यवस्था में सुधार हो सके और आम लोगों को राहत मिले। (फाइल फोटो)
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इस बजट में 'आत्मनिर्भर भारत' की योजनाओं पर ज्यादा ध्यान दिए जाने की उम्मीद है। केंद्र सरकार ने काफी पहले से इस योजना की शुरुआत की है। इसका मकसद है कि देश की अर्थव्यवस्था को इस हद तक मजबूत बनाया जाए कि इसे दूसरे देशों से मदद की कम से कम जरूरत पड़े। मोदी सरकार की आत्मनिर्भर भारत की योजना का असर देखने को मिल रहा है। इस योजना के लिए बजट में ज्यादा राशि का प्रावधान किए जाने से अर्थव्यवस्था के कई क्षेत्रों में विकास के नए मौके मिलेंगे। (फाइल फोटो)
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कोविड महामारी की वजह से लोगों की आमदनी में कमी आई है और इसका असर बाजार पर पड़ा है। कोविड की वजह से उपभोग का स्तर घटा है। अगर उपभोक्ता ज्यादा खर्च कर नहीं करते हैं, तो इससे बाजार में छाई मंदी कम नहीं होगी। इसलिए बजट में ऐसे उपाय किए जाने होंगे, जिससे लोगों की खरीददारी की क्षमता बढ़ सके। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) ने बचत को बढ़ावा देने के लिए ब्याज दरों में सुधार किया है। इसका सकारात्मक असर देखने को मिल सकता है। सरकार टैक्स में कमी लाकर लोगों को राहत दे सकती है। (फाइल फोटो)
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इस बजट में सरकार अगर कोई नया टैक्स नहीं लगाती है, तो वह सेस यानी किसी टैक्स पर सरचार्ज लगा सकती है। सीधा टैक्स लगाए जाने से लोगों पर इसका असर पड़ता है। वहीं, अगर सरकार सेस लगाती है, तब इसे लोग ज्यादा गंभीरता से नहीं लेते और इससे सरकार का रेवेन्यू भी बढ़ जाता है। ऐसी संभवाना व्यक्त की जा रही है कि सोमवार को पेश किए जाने वाले बजट में कोविड सेस लगाया जा सकता है। (फाइल फोटो)
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इस बार बजट में डिजिटलाइजेशन पर ज्यादा जोर दिया जा सकता है। इसके अलावा जीडीपी में कर्ज की मात्रा को घटाने के उपाय किए जा सकते हैं। बता दें कि सरकार का पूरा कर्ज वह होता है, जिसमें उसके पिछले वर्षों के लिए कर्ज में नया कर्ज जुड़ता है। यह उसके वित्तीय घाटे की मुख्य वजह बन जाता है। इस बजट में सरकार इसे कैसे संतुलित करती है, यह देखने वाली बात होगी। सरकार का वित्तीय घाटा पहले के मुकाबले बढ़ा है, जिसे उसे हर हाल में नियंत्रित करना होगा। (फाइल फोटो)
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इस बजट में शिक्षा पर खर्च के लिए कितनी राशि मुहैया कराई जाती है, इसे लेकर भी विशेषज्ञ अनुमान लगा रहे हैं। किसी भी देश के आर्थिक विकास में उसके शैक्षिक विकास की बड़ी भूमिका होती है। विशेषज्ञों का मानना है कि कोविड महामारी के पहले भी भारत में शिक्षा पर खर्च कम किया जाता रहा है और देश की शैक्षिक उपलब्धियां कोई खास नहीं हैं। इसलिए वर्तमान हालात में सरकार बजट में शिक्षा के लिए क्या प्रावधान करती है, यह देखने वाली बात होगी। (फाइल फोटो)
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इस बजट में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) को लेकर क्या घोषणा की जाती है, यह भी अर्थव्यवस्था के लिहाज से महत्वपूर्ण होगी। विशेषज्ञों का मानना है कि कोविड से बुरी तरह प्रभावित अर्थव्यवस्था में आत्मनिर्भर भारत की योजनाएं पूंजी की कमी के चलते कैसे सफल हो सकेंगी। वहीं, प्रधानमंत्री मोदी ने यह कहा है कि विदेशी निवेश को बढ़ावा दिया जाएगा। प्रधानमंत्री मोदी ने साफ कहा है कि विदेशी व्यवसाय और उत्पादकों को देश में हर तरह की सुविधा मुहैया कराई जाएगी। (फाइल फोटो)
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सरकार भारत की अर्थव्यवस्था को गैस पर आधारित करना चाहती है। इसका मतलब यह है कि वह ऊर्जा संबंधी जरूरतों के लिए गैस को ही प्राथमिकता देना चाहती है। इसके लिए सरकार गैस पाइप लाइन योजनाओं को शुरू करना चाहेगी, वहीं फिलहाल जो गैस पाइप लाइन योजना चल रही है, उसमें भी सुधार लाना चाहेगी। अगर सरकार की यह योजना कारगर होती है, तो इससे अर्थव्यवस्था में निश्चित तौर पर सुधार होगा। (फाइल फोटो)
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कोविड महामारी की वजह से देश में स्वास्थ्य संबंधी चुनौतियां काफी बढ़ गई हैं। सरकार के लिए हेल्थकेयर के क्षेत्र में इन्फ्रास्ट्रक्चर संबंधी सुधार करना जरूरी है। इस मामले में दुनिया के स्तर पर भारत काफी पीछे है। इसलिए सरकार को हेल्थकेयर के क्षेत्र में निवेश बढ़ाना होगा और नई सुविधाएं देनी होगी। इससे किसी महामारी की स्थिति में जहां लोग आसानी से संकट का सामना कर सकते हैं, वहीं इससे आर्थिक विकास में भी मदद मिलेगी। भारत की जनसंख्या को देखते हुए सरकार अभी इस क्षेत्र में जीडीपी का बहुत ही कम प्रतिशत खर्च कर रही है। (फाइल फोटो)
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इसके साथ ही सरकार को लगातार बढ़ती आर्थिक असमानता को कम करने के उपायों पर भी विचार करना होगा और इसके लिए नीतियां अपनानी होंगी। विशेषज्ञों का मानना है कि देश में गरीब पहले की तुलना में और भी गरीब होते जा रहे हैं। साल 2020 में प्रति व्यक्ति आमदनी का स्तर 2017 के मुकाबले गिरा है। जीडीपी में भी कमी आई है। वहीं, बड़ी कंपनियों ने भी अपने कर्मचारियों की संख्या को घटाया है, ताकि उनका खर्च कम हो सके। (फाइल फोटो)