इजरायली की पाठशाला में गरीब किसान ने सीखा ऐसा कि अब कमाता है साल के 10 लाख रुपए
मोरबी, गुजरात. देश में इस समय किसान आंदोलन चल रहा है। भारत कृषि प्रधान देश है। यह जगजाहिर है कि छोटे किसानों की माली हालत ठीक नहीं हैं। इसके पीछे एक बड़ी वजह खेती-किसानी के नए तौर-तरीके नहीं अपनाना है। अब इस किसान से मिलिए! यह नई तकनीक से अमरूद की खेती कर रहा है। नतीजा, पहले गरीबी में रहने वाला किसान आज 50 एकड़ जमीन पर सालाना 10 लाख रुपए तक के अमरूद उगाकर बेच रहा है। यह हैं मोरबी जिले की टंकारा तहसील के रहने वाले किसान मगन कामरिया। ये इजरायली तकनीक से अमरूद उगा रहे हैं। इनका अमरूद डेढ़ से 2 किलो तक का होता है। पहले मगन खेतों में कपास, मूंगफली और जीरा उगाते थे। इसमें लागत अधिक थी और कमाई कम। 5 साल पहले की बात है, मगन ने इजरायली तरीके से अमरूद की खेती करना सीखा। अब वे एक सफल किसान हैं।
- FB
- TW
- Linkdin
मगन ने सबसे पहले छत्तीसगढ़ से थाइलैंड में होने वाले अमरूद के 5 हजार पौधे मंगाए थे। आपको बता दें कि इजरायली तकनीक में सिंचाई का बड़ा महत्व होता है। इसमें पौधे पर तेज धार से पानी नहीं डालते। बल्कि बूंद-बूंद पानी टपकाया जाता है। इससे पानी की बचत होती है और अमरूद भी बड़ा होता है।
मगन पिछले डेढ़ साल से अमरूद पैदा कर रहे हैं। इसमें कम ऊंचाई के पौधे में ही बड़ा अमरूद पैदा होता है। इन अमरूदों की चमक और स्वाद लोगों को पसंद आता है।
मगन के साथ उनकी पत्नी पुष्पाबेन भी खेती-किसानी में मदद करती हैं। दम्पती खुद अमरूद की पैकिंग करता है। बता दें कि इस तकनीक से उगे अमरूद की देखभाल कम करनी पड़ती है। उन पर कीड़े-मकोड़े लगने का खतरा भी कम होता है।
मगन के अमरूद की डिमांड दूर-दूर तक है। उनका अमरूर वडोदरा से लेकर अहमदाबाद तक जाता है। सबसे बड़ी बात, व्यापारी खुद अमरूद खरीदने उनके पास तक आते हैं।
क्या है इजरायली तकनीकी
इस विधि में अमरूद के पौधे थोड़ी दूरी पर लगाए जाते हैं। इन्हें लगाने का सही समय जुलाई से सितंबर होता है। इन पौधों में केमिकल की जगह आर्गेनिक खाद का इस्तेमाल होता है। इस संबंध में अधिक जानकारी बागवानी बोर्ड से प्राप्त की जा सकती है।