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UPSC में चार बार फेल होने पर पड़ोसियों ने मारे ताने, जब IAS बनकर आया वो लड़का तो करने लगे सैल्यूट
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राहुल ने कई अटेम्प्ट्स बीत जाने के बाद यह अहसास किया कि उनकी गलतियां क्या हैं जो वे बार-बार दोहरा रहे हैं और उन्हें दूर करने का प्रयास किया। हालांकि यह समझते-समझते उन्होंने बहुत देर कर दी। पर अच्छी बात यह है कि आखिर उन्हें देर से ही यह समझ आया कि वे कहां गलत हैं। इसी वजह से राहुल दूसरे कैंडिडेट्स को अपने इंटरव्यू में इन्हीं गलतियों को न दोहराने की सलाह देते हैं।
राहुल के पांच प्रयास –
राहुल की सलाह लेने से पहले उनके प्रयासों के बारे में थोड़ा जान लेते हैं। राहुल मुख्यतः हुबली कनार्टक के हैं। इंजीनियरिंग के दौरन कुछ कारणों से उन्होंने सिविल सेवा के क्षेत्र में जाने का मन बनाया। हालांकि अपने लक्ष्य को लेकर वे तीसरे साल में मजबूत निर्णय ले पाए। इसके बाद उन्होंने तैयारी और एक आईटी कंपनी में जॉब शुरू कर दी। जॉब अच्छी थी पर उनका मन नहीं लगा क्योंकि अल्टीमेट गोल कुछ और था। आखिर दो साल नौकरी करके उन्होंने छोड़ दी क्योंकि यूपीएससी परीक्षा की तैयारी साथ में नहीं हो पा रही थी और पूरी तरह से प्रिपरेशन में जुट गए।
यहां से शुरू हुआ राहुल का मेहनत करने, अटेम्पट देने और न सेलेक्ट होने का सिलसिला जो चार साल चला। शुरू में दो बार उन्होंने तीनों स्टेज पास की पर फाइनल लिस्ट में नहीं आए, फिर अगले साल प्री भी पास नहीं कर पाए और इस प्रकार करते-करते उनके चार साल चले गए। पांचवें अटेम्पट में राहुल ने अपनी सालों की मेहनत का परिणाम पाया और 17वीं रैंक के साथ पास हुए।
अब आते हैं मेन्स पर
मेन्स के लिए राहुल मुख्यतः राइटिंग प्रैक्टिस को महत्व देते हैं। वे कहते हैं कि उनकी सबसे बड़ी गलती यही थी कि उन्हें लगता था कि जितना हो सके पढ़ लो, जब आंसर आएगा तो लिख तो लेंगे ही। राहुल कहते हैं यहीं वे मात खा जाते थे। दरअसल आपके दिमाग में क्या और कैसा आंसर है इससे किसी को फर्क नहीं पड़ता। फर्क पड़ता है कि आप क्या लिखकर आते हैं और लिखा हुआ तब तक बेहतर नहीं होगा जब तक आप जमकर लिखने की प्रैक्टिस नहीं करेंगे। वे आगे बताते हैं कि उनकी हैंड राइटिंग भी बहुत खराब है। ऐसे में मेन्स पेपर में वे शुरू में तो आंसर लिख आते थे पर एंड के आंसर्स के साथ न्याय नहीं कर पाते थे।
या तो उन्हें छोड़ते थे या उनका प्रेजेंटेशन खराब कर देते थे क्योंकि समय ही नहीं बचता था। ऐसा बार-बार होने पर भी वे आंसर राइटिंग की जितनी जरूरत है उतनी प्रैक्टिस नहीं कर रहे थे जो उन्होंने आखिरी प्रयास में सुधारा। राहुल कहते हैं कि शुरू में ही टेस्ट न देने लगें पर एक बार तैयारी हो जाए तो टेस्ट देना शुरू करें ये बहुत मदद करते हैं। अपनी कॉपियां किसी और सो चेक करवाएं और अपने प्रॉब्लम एरिया आइडेंटिफाइ करके उन्हें सुधारें।
जब पड़ोसी ने कहा – लड़का ठीक से नहीं पढ़ रहा
राहुल एक सलाह कैंडिडेट्स को यह भी देते हैं कि यह परीक्षा एक लंबा प्रॉसेस है जिसके लिए आपको मेंटली भी तैयार रहना पड़ता है। वे कहते हैं इसके लिए सबसे पहले अपने पैरेंट्स को कांफिडेंस में लें। वे आपके सबसे ज्यादा नजदीक होते हैं और अगर वे ही आपको सपोर्ट न करें तो बड़ी परेशानी होती है। ठीक इसी तरह जब आपके पैरेंट्स आपके साथ खड़े होते हैं तो हिम्मत भी बढ़ जाती है। वे बताते हैं कि एक समय था जब पापा कहते थे थोड़ा पढ़ लो राहुल और एक समय ऐसा भी आया जब वे कहने लगे कि इतना मत पढ़ो राहुल।
यही नहीं जब बार-बार वे असफल हुए तो एक पड़ोसी ने एक दिन उनके पिताजी से कहा कि लगता है बेटा ठीक से पढ़ नहीं रहा तो उन्होंने तुरंत राहुल का बचाव किया कि ऐसा नहीं है, वह पढ़ रहा है। कुल मिलाकर कहने का मतलब यह है कि अपने आसपास ऐसे लोग रखें जो आपका संबल बन सकें। स्ट्रांग फ्रेंड सर्किल भी बहुत जरूरी है वरना इस जर्नी में खो जाने का बहुत डर रहता है लेकिन मुश्किलों से घबराएं बिना धैर्य के साथ तैयारी करेंगे तो सफलता निश्चित है।