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गांव में बोरे पर बैठ पढ़ने वाला एवरेज स्टूडेंट बना IPS अफसर, पिता की इच्छा पूरी करने नौकरी के साथ की पढ़ाई
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आईपीएस सुकीर्ति का बचपन गांव में खेल-कूद में गुजरा। वो अपने बचपन को याद करते हुए कहते हैं कि, हाफ पैंट और मटमैली शर्ट पहन धूल उड़ाते हुए मवेशियों को चरते जाते देखना या सबके साथ बस खेलते रहना यही करते थे। कभी पुरानी किताबों के ढेर से कोई कहानी की किताब ढूंढ निकालना और धूल साफ कर एक बार में पढ़ जाना। कभी कटी पतंग के पीछे भागना, कभी गौरेया का पीछा करना।
मछली पकड़ना, बेर तोड़ना, कलेवा लेके खेत पे बाबा के पास जाना और मौका मिलते ही खेत के ट्यूबवेल पे नहाना। झोला लेके स्कूल जाना, बोरे पे बैठना और छुट्टी घंटी बजने का इंतज़ार करना। गरमी में खुले आसमान के नीचे तारे गिन सोना, बारिश में भीगना और खेलना, ठंड में पुआल की गर्मी में बिस्तर बना लेना- और उनींदी रातों में बड़े-बड़े सपने देखना। कुछ ऐसा सुनहरा था मेरा बचपन।
देखते-देखते बचपन बीत गया और स्नातक और फिर MBA भी हो गया। 2010 में MBA पूरा करते ही कोल इंडिया लिमिटेड में नौकरी लग गई। 2010 एक और वजह से यादगार साल रहा। इसी साल मेरे पिताजी की नौकरी भी माननीय सुप्रीम कोर्ट के आदेश से बहाल हुई, 22 सालों की लंबी कानूनी लड़ाई के बाद। बहरहाल इस 22 साल के संघर्ष ने काफी कुछ सिखाया-बताया। माता-पिता ने खेती किसानी की, अभाव देखे, मुश्किल वक़्त बिताया, लेकिन हमें हमेशा बड़े सपने देखने को प्रेरित किया।
सुकीर्ति बताते हैं, मैं बिहार के एक जिले जमुई के एक गांव मलयपुर से हूं। बिहारी होने के नाते सिविल सर्विस के बारे में बहुत सुन रखा था। मेरे पिताजी हमेशा से ये चाहते थे कि मैं UPSC दूं और लोक सेवा के क्षेत्र में आऊं, हालांकि मैं अपने आप को औसत छात्र मानते हुए इस परिचर्चा से दूर रखने की कोशिश करता था।
MBA के बाद कोल इंडिया लिमिटेड की अच्छी नौकरी। शायद जितना मैंने सोचा था या जितना मैं अपने को योग्य मानता था, उससे बेहतर। मैं खुश था और इसी तरह दिन, महीने और कुछ साल बीत गए। लेकिन कहीं कुछ तो ऐसा था, जो चुभ रहा था। कई सवाल मन मे उमड़-घुमड़ रहे थे। क्या मुझे कहीं और होना चाहिए? क्या मैं कहीं और बेहतर कर सकता हूं? क्या मैं ज़िन्दगी को और सार्थकता दे सकता हूँ? क्या मुझे सपने देखने चाहिए? क्या मुझे उन सपनों का पीछा करना चाहिए, जो मेरे पिताजी ने मेरे लिए देखे? और इस तरह मेरा मन आकुल और अधीर होने लगा।
लेकिन कैसे? UPSC? जहां सबसे तेज़, सबसे प्रतिभाशाली लोग प्रतिभाग करते हैं। आर्थिक बाध्यता की वजह से न तो नौकरी छोड़ना संभव था और न नौकरी के साथ कोलकाता में कोचिंग करना। क्या मैं ये कर पाऊंगा-पता नहीं। लेकिन क्या ऐसे ही छोड़ दूं। कम-से-कम ईमानदारी से भरा एक प्रयास तो कर लूं। कभी ये पछतावा तो नहीं रहेगा कि काश एक बार कोशिश कर ली होती।
और इस उहापोह और उधेड़बुन के रास्ते से निकलकर मेरी यात्रा शुरू हुई, UPSC की ओर, जी-जान से, जोशो-खरोश से। नौकरी के साथ तैयारी शुरू कर दी और हर एक गुजरते दिन के साथ निश्चय और दृढ़, और मजबूत होता गया। कुछ परेशानियां आईं, लेकिन इससे प्रेरणा और बढ़ती गई। प्रथम प्रयास में IRS में चयन हो गया और फिर अगली बार IPS में। बस इतनी सी मेरी कहानी है जिसे मैंने अंसभव से संभव होते देखा है।
सुकीर्ति माधव कविताएं लिखने के ज्यादा फेमस हैं। उन्होंने मेरठ में अपनी पहली पोस्टिंग के दौरान एक कविता लिखी थी। कोरोना के कारण इस समय देश में लॉकडाउन है और पुलिस सड़को पे तो ऐसे में उनकी ये कविता काफी पसंद की जा रही है। खासकर पुलिस महकमे में इसे खूब शेयर किया जा रहा है।
जम्मू कश्मीर के पुलिस अधिकारी इम्तियाज हुसैन ने ये कविता अपने ट्विटर हैंडल पर शेयर की तो साढ़े सात हजार से ज्यादा लोगों ने इसे लाइक किया। उन्होंने महाराष्ट्र पुलिस कमिश्नर विश्वास नांगरे पाटिल की आवाज में इस कविता को शेयर किया है।
IPS सुकीर्ति युवाओं से कहते हैं, मैंने सपना देखा, खुद पे भरोसा किया, मेहनत की और घरवालों के अटूट संबल और सबके आशीर्वाद से मेरी यात्रा एक सुखद पड़ाव पर आके रुकी-लोक सेवा, देश सेवा के पड़ाव पे। दोस्तो! बड़े सपने देखें, खुद पर भरोसा व आत्मविश्वास रखें, मेहनत करें, आप निश्चित रूप से सफल होंगे।
आईपीएस सुकीर्ति का बचपन गांव में खेल-कूद में गुजरा। वो अपने बचपन को याद करते हुए कहते हैं कि, हाफ पैंट और मटमैली शर्ट पहन धूल उड़ाते हुए मवेशियों को चरते जाते देखना या सबके साथ बस खेलते रहना यही करते थे। कभी पुरानी किताबों के ढेर से कोई कहानी की किताब ढूंढ निकालना और धूल साफ कर एक बार में पढ़ जाना। कभी कटी पतंग के पीछे भागना, कभी गौरेया का पीछा करना। मछली पकड़ना, बेर तोड़ना, कलेवा लेके खेत पे बाबा के पास जाना और मौका मिलते ही खेत के ट्यूबवेल पे नहाना। झोला लेके स्कूल जाना, बोरे पे बैठना और छुट्टी घंटी बजने का इंतज़ार करना। गरमी में खुले आसमान के नीचे तारे गिन सोना, बारिश में भीगना और खेलना, ठंड में पुआल की गर्मी में बिस्तर बना लेना- और उनींदी रातों में बड़े-बड़े सपने देखना। कुछ ऐसा सुनहरा था मेरा बचपन।
गांव के सरकारी स्कूल से पढ़ाई करने के बाद सुकीर्ति ने ग्रेजुएशन की पढ़ाई भुवनेश्वर यूनिवर्सिटी से की है। साल 2010 में MNIT दुर्गापुर से MBA की डिग्री हासिल करके वे कोल इंडिया में मैनेजर पद पर नौकरी कर रहे थे।