- Home
- Career
- Education
- कैसे बनते हैं देश के सबसे खतरनाक ब्लैक कैट कमांडो...ऐसी होती है ट्रेनिंग, सैलरी और सरकारी सुविधाएं भी जानें
कैसे बनते हैं देश के सबसे खतरनाक ब्लैक कैट कमांडो...ऐसी होती है ट्रेनिंग, सैलरी और सरकारी सुविधाएं भी जानें
- FB
- TW
- Linkdin
नेशनल सिक्योरिटी गॉर्ड (एनएसजी) गृह मंत्रालय के तहत सात केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल (सीएपीएफ) में से एक है। भारत के सबसे महत्वपूर्ण व्यक्तियों की सुरक्षा और आतंकवादी हमलों से बचाव का जिम्मा देश के नेशनल सिक्योरिटी गॉर्ड (एनएसजी) का होता है।
एनएसजी का ध्येय वाक्य है- सबके लिए एक, एक के लिए सब।
- एनएसजी कमांडो हमेशा काले कपड़े, काले नकाब और काले ही सामान का इस्तेमाल करते हैं इसलिए इन्हें ब्लैक कैट कमांडो कहा जाता है।
- साल 1984 में एनएसजी का गठन किया गया था। अति-विशिष्ट लोगों की सुरक्षा के अलावा विकट आतंकवादी हमलों से बचाव का जिम्मा भी एनएसजी पर ही होता है।
- एनएसजी को आतंकवादी हमले की स्थिति में आतंकवादियों पर काबू पाना, जमीन पर या हवा में आतंकवादियों द्वारा अगवा कर लिए गये लोगों को मुक्त कराना, बंधक बना लिए गये लोगों को छुड़ाना, बम की पहचान कर निष्क्रिय करना आदि का प्रशिक्षण दिया जाता है।
- 26/11 के मुंबई हमलों में भी ब्लैक कैट कमांडो ने स्थिति को नियंत्रित किया था।
एनएसजी कमांडो की ट्रेनिंग कैसी होती हैं
ब्लैक कैट कमांडो बनना आसान नहीं है, यह सबसे मुश्किल कामों में से एक है। सीधी भर्ती एनएसजी में नहीं होती है। इसकी ट्रेनिंग के लिए भारतीय सेना और अर्ध-सैनिक बलों के सर्वश्रेष्ठ जवानों को चुना जाता है। ये जरूरी नहीं है कि उनमें भी सभी एनएसजी की ट्रेनिंग पूरी कर लें।
इसका प्रशिक्षण बहुत ही कठिन है। इन्हें नेशनल सिक्योरिटी गार्ड (NSG) गार्ड या कमांडो भी कहा जाता है। एनएसजी कमांडो के लिये भारतीय सेनाओं और अर्ध सैनिक बलों के सबसे काबिल सैनिकों को चुना जाता है और उन्हें प्रशिक्षण देकर एनएसजी कमांडो बनाया जाता है। एनएसजी में 53 प्रतिशत कमांडो भारतीय सेना से आते हैं, जबकि शेष 47 प्रतिशत कमांडो 4 अर्ध सैनिक बलों यानी सीआरपीएफ (CRPF), आईटीबीपी (ITBP), आरएएफ (RAF) और बीएसएफ (BSF) से चुने जाते हैं।
अधिक से अधिक योग्य कमांडो चुनने के लिये इनका कई चरणों में चुनाव होता है। इसके बाद पहले एक सप्ताह की कठोर ट्रेनिंग दी जाती है। इस ट्रेनिंग में 80 प्रतिशत सैनिक फेल हो जाते हैं और मात्र 15 से 20 प्रतिशत सैनिक ही अंतिम दौड़ में पहुंचने में सफल होते हैं।
इसके बाद अंतिम दौड़ में आए सैनिकों को 90 दिन की कड़ी ट्रेनिंग दी जाती है, जिसमें उन्हें हथियारों के साथ और बिना हथियार के दुश्मनों के हथियारों से बचने और उन पर फतह करने की ट्रेनिंग दी जाती है, जिसके लिये इन सैनिकों को आग के गोल और गोलियों की बौछारों के बीच से बचकर निकलना होता है। तीन महीने की यह कड़ी ट्रेनिंग पास करने वाले सैनिक देश के सबसे खतरनाक और ताकतवर कमांडो में शामिल होने के योग्य बनते हैं।
- फिजिकल ट्रेनिंग के लिए उम्र 35 साल से ज्यादा नहीं होनी चाहिए। सबसे पहले फिजिकल और मेंटल टेस्ट होता है। 12 सप्ताह तक चलने वाली ये देश की सबसे कठिन ट्रेनिंग होती है।
- शुरूआत में जवानों में 30-40 प्रतिशत फिटनेस योग्यता होती है, जो ट्रेनिंग खत्म होने तक 80-90 प्रतिशत तक हो जाती है।
- एनएसजी कमांडो को एक गोली से एक जान लेने की ट्रेनिंग दी जाती है। यानी ये कहा जा सकता है कि आपातकालीन स्थिति में ये कमांडो सिर्फ एक गोली चलाकर किसी आतंकवादी को बेजान कर सकते है।
- इन कमांडो को आँख बंद करके निशाना लगाने, अंधेरे में निशाना लगाने और बहुत ही कम रोशनी में निशाना लगाने की भी ट्रेनिंग दी जाती है।
- बैटल असाल्ट ऑब्सक्टल कोर्स और सीटीसीसी काउंटर टेररिस्ट कंडिशनिंग कोर्स का प्रशिक्षण भी दिया जाता है।
- एनएसजी कमांडो को आग के बीच से गुजरते हुए मुकाबला करने और गोलियों की बौछार के बीच से गुजरकर अपना मिशन पूरा करने और हथियार के साथ और हथियार के बिना दोनों तरह से मुकाबले की ट्रेनिंग दी जाती है।
- आईफैक्स ट्रेनिंग सिमुलेटर का इस्तेमाल करना एनएसजी के कमांडो ने अपनी निशानेबाजी को और भी अचूक बनाने के लिए शुरू कर दिया है। इसको और अच्छा करने के लिए कम्प्यूटर प्रोग्राम की भी मदद ली जाती है।
- सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि ड्राइवर, एनएसजी की सुरक्षा व्यवस्था का अभिन्न अंग है। इनमें से कुशल ड्राइवर चुनने के लिए अलग से प्रक्रिया अपनायी जाती है। और तो और इनको खतरनाक रास्तों, बारूदी सुरंग वाले रास्तों, हमलवारों से घिर जाने की स्थिति में ड्राइविंग इत्यादि की ट्रेनिंग भी दी जाती है।
- देश का इकलौता नेशनल बॉम्ब डेटा सेंटर भी एनएसजी के पास है। इस सेंटर में आतंकवादियों द्वारा उपयोग किए गए बम धमाकों और अलग अलग आतंकी गुटों के तरीके पर रिसर्च की जाती है।
ऐसा कहना गलत नहीं होगा की एनएसजी कमांडो भारत का प्रमुख कमांडो संगठन है, जो आतंक निरोधी फोर्स के तौर पर जाना जाता है।
हर तरह की ट्रेनिंग को सफलतापूर्वक पास करने के बाद कमांडो बनने से पहले अंतिम दौर में उन्हें मनोवैज्ञानिक टेस्ट भी पास करना होता है। अब एनएसजी यह विचार कर रहा है कि एनएसजी कमांडो का मनोवैज्ञानिक टेस्ट भी एसपीजी की तर्ज पर हो तो ज्यादा उचित रहेगा। अभी एनएसजी डीआरडीओ (DRDO) के तहत तैयार किये जाने वाले मनोवैज्ञानिक टेस्ट से गुजरते हैं, जिसमें 700 से 1,000 कमांडो भाग लेते हैं।
एनएसजी कमांडो का वेतन और भत्ता
सुरक्षा गार्ड के लिए औसत वेतन लगभग 140,296 रुपये प्रति वर्ष है। क्या आप जानते है कि सातवें वेतन आयोग के कारण सुरक्षा समूह (एसपीजी) के अधिकारियों को मिलने वाले ड्रेस और भत्ते को बढ़ा दिया गया है। इस क्षेत्र में अधिकांश लोग 10 वर्षों के बाद अन्य पदों पर आगे बढ़ते हैं। एक सुरक्षा गार्ड के लिए अनुभव और रैंक के अनुसार ही वेतन और अन्य चीजों में इज़ाफा किया जाता है।
ब्लैक कैट कमांडो का वेतन 84 हजार रुपये प्रति माह से शुरू होकर ढाई लाख रुपये प्रति माह तक होता है। इन्हें औसत वेतन प्रति माह लगभग डेढ़ लाख रुपये मिलता है, इसके अलावा इन्हें कई तरह की सुविधाएँ और भत्ते भी दिये जाते हैं। सेनाओं में कम के कम 10 वर्ष की सेवाएँ देने के बाद कमांडो की ट्रेनिंग में भाग लिया जा सकता है और कमांडो को उनकी रैंक तथा अनुभव के आधार पर भी वेतन बढ़ाकर दिया जाता है।
सैलरी- 84,236 - Rs 239,457
बोनस- Rs 153 - Rs 16,913
प्रोफिट शेयरिंग - Rs 2.04 - Rs 121,361
कमिशन - Rs 10,000
टोटल पेमेंट- Rs 84,236 - Rs 244,632
ऑपरेशनल ड्यूटी पर रहने वाले एसपीजी ऑफिसर्स को 27, 800 रुपये सालाना और नॉन ऑपरेशनल ड्यूटी करने वालों को सालाना 21,225 रुपये का ड्रेस भत्ता मिलेगा। सातवें वेतन आने से पहले इन सभी को 9,000 रुपये सालाना ड्रेस का भत्ता मिलता था। जो जवान सियाचिन में ड्यूटी कर रहे है उनको मिलने वाले भत्ते को 14,000 रुपये से बढ़ाकर 30,000 रुपये कर दिया गया है।
प्रधानमंत्री व अन्य वीवीआईपी की सुरक्षा की जिम्मेदारी संभालने वाले एसपीजी कमांडो वियेना टेस्ट सिस्टम के माध्यम से कंप्यूटराइज्ड मनोवैज्ञानिक टेस्ट से गुजरते हैं, इसके माध्यम से ज्यादा सटीक परिणाम प्राप्त होने की उम्मीद की जाती है। यह कमांडो हमेशा सिर से पांव तक काले लिबास में ढंके रहते हैं, इसलिये इन्हें ब्लैक कैट कमांडो कहते हैं। इनका कार्यकाल 5 साल का होता है।