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मजदूर पिता को सहारा देने बेटी मोटरसाइकिल पर बेचती है दूध, भाई का फर्ज निभा 2 बहनों की कर दी शादी

भरतपुर. हमारा समाज एक ढर्रे पर चल रहा है जिसमें बेटियां घर के काम करती हैं और बेटे बाहर का काम संभालते हैं। बेटियां घर के काम जैसे खाना पकाना, बर्तन साफ सफाई, रसोई, पढ़ाई इसी में व्यस्त रहती हैं। वहीं बेटे बाहर बाजार के काम, सामान लाना, बेचना, ड्राइविंग आदि। पर जब पिता पर बोझ पड़ता है तो बेटियां भी कंधे मजबूत कर साथ देने खड़ी रहती हैं। ऐसे ही एक बेटी ने अपने गरीब मजदूर पिता को सहारा देने दूध बेचने जैसे मुश्किल काम को चुन लिया। वो मोटरसाइकिल पर कैन बांध हर सुबह दूध बेचने निकल जाती है और करीब रोजाना 90 लीटर दूध बांटकर लौटती है। लड़की की मेहनत से परिवार फल-फूल रहा है। बेटे का फर्ज निभाने वाली इस लड़की के संघर्ष की कहानी आपको झकझोर देगी।

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Asianet News Hindi
Published : Apr 05 2020, 12:37 PM IST| Updated : Apr 05 2020, 12:40 PM IST
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सपनों को साकार करने और घर का खर्चा चलने के लिये रोज़ सुबह 4 बजे उठकर 90 लीटर दूध कंटेनरो में भरकर ,उसकी बाइक शहर का रुख करती हैं। हर कोई सोचता है ये दूध बेचने का काम तो लड़कों का है। पर यहां तो चट्टान से भी ज्यादा मजबूत इरादो वाली एक लड़की “नीतू शर्मा’ कठिन परिस्थितियां होने के बावजूद ये काम पूरी शिद्दत से कर रही है।
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राजस्थान के भरतपुर के एक गांव भंडोर खुर्द की रहने वाली 19 वर्षीय नीतू शर्मा दिखने में किसी साधारण लड़की की तरह ही है। पर उनकी कहानी असाधारण और लोगो को प्रेरित करने वाली है। नीतू बेहद गरीब परिवार से आती है और उनका सपना टीचर बनना है लेकिन पिता के पास पैसे नहीं थे। (Demo Pic)
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नीते के पिता बनवारी लाल शर्मा एक मज़दूर हैं उनके पास इतने पैसे नहीं थे कि वह अपनी बेटी का पढ़ाई का खर्चा उठा पाएं। नीतू से कह दिया की हम लोगो की आर्थिक स्थिति काफी ख़राब हैं। इसलिए वह अपनी पढ़ाई का ख्याल दिल से निकल दे और घर के कामों में मदद करे। लेकिन वो कहते हैं ना कि अगर सपने को पूरा करने की जिद्द कर लो तो दुनिया की कोई भी ताकत आपको रोक नहीं सकती। (Demo Pic)
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इसी जज़्बे से नीतू ने फैसला किया की वह खुद आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर होगी। किसी भी कीमत पर अपनी पढ़ाई नहीं रोकेंगी और अपने टीचर बनने का सपना पूरा करेंगी। जिस गांव में लड़कियों को बिलकुल भी छूट नहीं दी जाती है। या तो उन्हें घर पर बैठा दिया जाता है या फिर शादी करवा दी जाती है वहां नीतू ने आर्थिक रूप से स्वतंत्र होने के लिए गांव से दूध इकट्ठा कर बाइक पर शहर में बचने का काम शुरू किया। इस काम में उनकी मदद उनकी बड़ी बहन सुषमा करती है ,उनके दिन की शुरुवात रोज़ सुबह 4 बजे होती है जब वह गांव के अलग अलग किसान परिवारों के यहां से दूध इकट्ठा करती है उसके बाद करीब 60 लीटर दूध को कन्टेनरो में भरकर व बाइक पर लाद कर अपनी बहन के साथ गांव से 5 किलोमीटर दूर शहर में बांटती है।
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करीब 10 बजे तक दूध बांट लेने के बाद नीतू अपने एक रिश्तेदार के यहां जाकर कपड़े बदलती है और 2 घंटे के कंप्यूटर क्लास में चली जाती है। क्लास खत्म होने के बाद लगभग 12 बजे वह गांव चली जाती है। गांव पहुंच कर वह पढ़ाई में लग जाती हैं और शाम होते ही दुबारा सुबह की तरह लगभग 30 लीटर दूध लेकर शहर चली जाती हैं।
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नीतू के परिवार में 5 बहने व 1 भाई है ,जिनमें से 2 की शादी हो चुकी है ,पिता मिल में मजदूरी करते है लेकिन उनको बहुत ही कम पैसे मिलते है। इसलिए बाकी बचे सभी भाई बहिनों की जिम्मेदारी आज वह अकेले ही उठती हैं। नीतू दूध बेचकर 12 हजार महीना कमा लेती है। इसके अलावा गांव में ही उनकी 10वी में पढ़ने वाली छोटी बहन राधा की परचून की दुकान है जिससे थोड़ी मदद मिल जाती हैं। नीतू बताती जब तक वह अपनी दो बड़ी बहनो की शादी और स्वंम टीचर नहीं बन जाती तब तक वह दूध बेचना नहीं छोड़ेंगी।
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नीतू की मेहनत और लगन देख स्थानीय लोग और अख़बार भी उनकी मदद के लिए आगे आये। खबर छपने के बाद लूपिन संस्था के समाजसेवी सीताराम गुप्ता ने नीतू शर्मा और उनके परिवार को बुलाकर 15 हज़ार का चेक और पढ़ाई के लिए एक कंप्यूटर दिया। सपने देखना तो हर किसी का हक़ है। मुश्किलें भुलाकर हमें कोशिश करनी चाहिए। विजेता वही बनता है जो पूरी शिद्दत के साथ अपने सपनो को पूरा करने के लिये ऐसे समाज को चुनौती देता है। नीतू ने धारा के विपरीत जा कर अपनी एक अलग पहचान बनायीं है। वो सफलता के साथ हौसले का भी एक अच्छा उदाहरण बनी हैं।

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