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'शोले' के सूरमा भोपाली को यादकर भावुक हुए 84 के धर्मेंद्र, बोले-मुझे अठन्नी के सिक्के दिया करते थे
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धर्मेंद्र ने इंटरव्यू में बताया कि उन दोनों ने साथ में बहुत बड़े-बड़े प्रोजेक्ट किए थे। 'प्रतिज्ञा', 'शोले', 'सूरमा भोपाली'। उनके साथ उनकी कई खूबसूरत यादें रही हैं। वो बहुत जॉली किस्म के इंसान थे। धर्मेंद्र कहते हैं कि वो बहुत बड़े फनकार भी थे। एक्टर तो गजब के थे ही। उन्होंने कहां से कहां तक की तरक्की की, यह पूरा जमाना जानता है।
बिमल रॉय की फिल्मों से उन्होंने अपना करियर शुरू किया था। बतौर हीरो भी उन्होंने कई फिल्में की। कॉमेडियन तो वो लाजवाब हुए। उनकी एक फिल्म 'सूरमा भोपाली' में धर्मेंद्र ने काम किया था। उसे उन्होंने डायरेक्ट किया था, जिसमें उनका डबल रोल था। उन्हें ये फिल्म करके मजा आ गया था। एक्टर कहते हैं कि उनका क्या है। उनसे कोई प्यार मोहब्बत से मिल ले तो वो उनके ही हो लेते हैं और जगदीप जी वैसे ही थे।
धर्मेंद्र आगे कहते हैं कि कॉमेडी सबसे मुश्किल काम है, जिसे जगदीप बहुत एफर्टलेस तरीके से किया करते थे। उनका मानना है कि कोई भी किसी को उदास तो एक सेकंड में कर सकता है, किसी के जज्बात से पल भर में खेल सकता है, मगर दुखी को हंसा देना बहुत बड़ी बात होती है। रोते हुए को हंसा देना बहुत बड़ी बात होती है।
84 साल के धर्मेंद्र का कहना है कि वो बीते महीनों में भी कई दफा उनसे मिले। उन्होंने एक बार उन्हें कुछ पुराने सिक्के दिए थे। उन्हें पता था कि धर्मेंद्र को पुराने सिक्कों को जमा करने का बहुत शौक है। अठन्नी, चवन्नी जो कभी गुजरे दौर में लोग इस्तेमाल किया करते थे। उनके बचपन में तो चवन्नी की बड़ी कीमत हुआ करती थी, तो जगदीप ने खासतौर पर अठन्नियां लाकर उन्हें दी थी।
जगदीप ने धर्मेंद्र से आकर कहा था कि 'पाजी मुझे मालूम है, आपको पुराने सिक्कों का बहुत शौक है। मेरे पास कुछ पड़े हैं प्लीज आप उन्हें ले लीजिए। इस किस्म की फीलिंग एक दूसरे के लिए हम दोनों में थी।'
धर्मेंद्र ने अपनी बात खत्म करते हुए बताया कि उन्होंने अपना नाम बदलकर जगदीप क्यों रखा, इसका उन्हें इल्म नहीं। ना उन्होंने कभी वह सब चीजें उनसे पूछीं। एक्टर कहते हैं कि उनके जमाने में तो नाम जो है वो महीने या हफ्ते के दिन पर भी रख दिए जाते थे। जैसे किसी की पैदाइश मंगल को हुई, इसलिए उसका नाम मंगल रख दिया जाता था।
धर्मेंद्र कहते हैं कि नाम रखने में साल और तारीख नहीं रखी जाती थी। ताकि हमेशा उसकी उम्र पता ना चल सके। वह जवान रहे, जिंदा रहे। बहरहाल इतने साल जगदीप और धर्मेंद्र दोनों साथ रहे। अब उनके चले जाने से ऐसा लग रहा है कि कुछ टूट गया है उनके भीतर से। उन दिनों में तौर-तरीके कुछ और थे। एक मां-बहन की इज्जत, लोक लिहाज हुआ करते थे।