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महज 8 महीने की बेटी को दफनाने के बाद सरोज खान को करना पड़ा था ये काम, सामने आई ये बड़ी वजह
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बॉलीवुड के एक से बढ़कर एक गाने को कोरियोग्राफ करने वाली सरोज खान का निधन 3 जुलाई को हार्ट अटैक की वजह से हो गया था। निधन से कुछ पहले ही उन्हें कोरोना होने की खबर भी आई थी। इस वायरस की वजह से उन्होंने अपने घरवालों से भी दूरी बना ली थी।
सरोज ने अपने 40 साल के फिल्मी करियर में करीब दो हजार गानों की कोरियोग्राफ किया। उन्होंने देश की मदर ऑफ कोरियोग्राफी कहा जाता था। लेकिन कम ही लोग जानते है उन्हें अपनी कोरियोग्राफी के जरिए इंडस्ट्री में पहचान बनाने के लिए काफी संघर्ष करना पड़ा था।
2014 में एक इंटरव्यू में सरोज खान ने अपनी लाइफ के जुड़े कई रहस्यों को उजागर किया था। उन्होंने बताया था- मेरी बेटी को मौत हो गई थी जब वो 8 महीने 5 दिन की थी। उसे दफनाने के तुरंत बाद मुझे दम मारो दम.. गाने की कोरियोग्राफी करने के लिए रवाना होना था। मैंने 5 बजे की ट्रेन पकड़ी थी और फिल्म हरे रामा हरे कृष्णा के गाने की शूटिंग के पहुंची थी।
वे अपने डांस के साथ-साथ पर्सनल लाइफ को लेकर भी वे काफी चर्चा में रही थी। उनकी लाइफ काफी विवादित रही है। उन्होंने 13 साल की उम्र में इस्लाम धर्म को कबूल कर लिया था।
कम ही लोगों को पता है कि सरोज खान का असली नाम निर्मला नागपाल है। विभाजन के बाद सरोज का परिवार पाकिस्तान से भारत आ गया था। उन्होंने महज 3 साल की उम्र में बतौर चाइल्ड आर्टिस्ट फिल्मों में काम करना शुरू कर दिया था।
सरोज की मुख्य फिल्मों में 'मिस्टर इंडिया', 'नगीना', 'चांदनी', 'तेजाब', 'थानेदार' और 'बेटा' है। उन्होंने अपने पहले मास्टर बी. सोहनलाल से शादी की थी। दोनों की उम्र में 30 साल का अंतर था। शादी के वक्त सरोज की उम्र 13 साल थी। इस्लाम धर्म कबूल कर उन्होंने 43 साल के बी. सोहनलाल से शादी की। सोहनलाल की ये दूसरी शादी थी।
हाल ही में उनकी सबसे छोटी बेटी सुकैना नागपाल ने एक इंटरव्यू में उनसे जुड़ी कई यादें शेयर की। सुकैना ने बताया कि उनकी मां बहुत खुद्दार थी। उन्होंने कभी किसी का एक पैसा भी खुद पर बाकी नहीं रखा। यहां तक कि उनका अंतिम संस्कार भी उनके पैसों से हुआ।
सुकैना ने बताया- मां के अंतिम संस्कार के बाद कब्रिस्तान में पैसे देने का वक्त आया। जल्दबाजी में मैं और मेरे पति पैसे रखना भूल गए थे। गाड़ी और ड्राइवर भी पास में नहीं थे। तभी अचानक मैंने पर्स चेक किया तो उसमें 3 हजार रुपए निकले। इत्तेफाक से ये रुपए मां के ही थे। उन्होंने लॉकडाउन से पहले ये पैसे किसी काम से दिए थे। वह इतनी खुद्दार थीं कि कफन के पैसे भी खुद देकर गईं।