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83 विश्वकप फाइनल का आंखों देखा हाल; अमरनाथ ने होल्डिंग को LBw किया और भारत ने रच दिया इतिहास

स्पोर्ट्स डेस्क। 1983 के क्रिकेट विश्वकप में युवा कपिल देव की कप्तानी में भारत ने जो किया उस करिश्मे की किसी को उम्मीद नहीं थी। आज ही के दिन यानी 25 जून को फाइनल मैच खेला गया था जिसने भारत में क्रिकेट का नक्शा ही बादल दिया। ध्यान देने वाली बात है कि उस वक्त वेस्टइंडीज, इग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया सरीखी दिग्गज टीमों के सामने भारत की स्थिति बहुत बेहतर नहीं थी। कम से कम किसी ने भी फाइनल तक भारत के अभियान की कल्पना नहीं की होगी। लेकिन एक पर एक मैचों के बाद "अंडरडॉग" भारत ने पहले सेमीफाइनल में इंग्लिश टीम को हराया और अगले मैच में इतिहास रचा। 

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Asianet News Hindi
Published : Jun 25 2020, 01:31 PM IST| Updated : Jun 25 2020, 07:21 PM IST
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अजेय थी वेस्टइंडीज 
भारत की सेमीफाइनल जीत के बाद लोगों ने माना था कि टीम भले ही फाइनल में है लेकिन बेहतरीन खिलाड़ियों से सजी दो बार की विश्व चैंपियन वेस्टइंडीज के सामने कहीं नहीं टिकेगी। वेस्टइंडीज पहले दोनों विश्वकप जीतकर अजेय बना हुआ था। उस वक्त विव रिचर्ड्स, गार्डन ग्रिनीज़, क्लाइव लॉयड, होल्डिंग और मार्शल जैसे दुनिया के महान खिलाड़ियों से सजी खूंखार और अजेय वेस्टइंडीज को हराने की सिर्फ कल्पना की जा सकती थी। 

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ताश के पत्तों की तरह बिखर गए भारतीय बल्लेबाज 
60 ओवरों के फाइनल मैच में जब इंडिया मैदान पर उतरी तो यह दिखा भी। लॉर्ड्स में रॉबर्ट्स, गार्नर, मार्शल और होल्डिंग के तूफान के आगे भारतीय टीम ताश के पत्तों की तरह बिखरने लगी। हर विकेट के सतह करोड़ों भारतीयों का उत्साह ठंडा होते जाता। भारतीय टीम अपने कोटे का 60 ओवर भी नहीं खेल पाई और पहले ही 54.4 ओवर में 183 रन बनाकर आउट हो गई। भारत का पहला विकेट दो रन के स्कोर पर सुनील गावस्कर के रूप में गिरा था। दूसरे विकेट के लिए श्रीकांत और अमरनाथ की अर्धशतकीय साझेदारी छोड़ दें तो भारतीय बल्लेबाज तू चल मैं आता हूं कि तर्ज पर आउट होते रहे। 

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श्रीकांत ने बनाए थे सबसे ज्यादा रन 
उस मैच में ओपनर बल्लेबाज श्रीकांत ने सर्वाधिक 38 रन बनाए थे। श्रीकांत ने अपनी पारी में 7 चौकों के साथ एक सिक्स भी लगाया था। फाइनल मैच में भारत के तीन बल्लेबाज ही 20 रन से ज्यादा बना पाए थे। श्रीकांत के बाद अमरनाथ ने 26 और पाटील ने 27 रन बनाए थे। भारत ने 60 ओवरों में 184 रन का लक्ष्य दिया था जो वेस्टइंडीज जैसी टीम के लिए बेहद आसान था। (फोटो: भारत के खिलाफ फाइनल में वेस्टइंडीज का गेंदबाजी रिकॉर्ड) 

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संधू के ब्रेकथ्रू से निकली उम्मीद  
लॉर्ड्स में मौजूद क्रिकेट के किसी भी जानकार ने यह भरोसा नहीं किया होगा कि फाइनल में पहुंचकर भारत, वेस्टइंडीज को 60 ओवरों में 184 रन बनाने से पहले रोक लेगा। लेकिन शायद वो दिन भारत का था। मीडियम पेसर बीएस संधु ने महज पांच रन के स्कोर पर ही दिग्गज गार्डन ग्रिनीज़ का विकेट निकाल कर वैंडीज़ खेमे को तगड़ा झटका दे दिया। भारतीय खेमे में एक उम्मीद की लहर उठ गई। 

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भारत से दूर जाने लगा मैच 
मगर दूसरे विकेट के लिए डेसमेंड हेंस और विव रिचर्ड्स भारतीय उम्मीदों पर पानी फेरते दिखे। विव आक्रामक मूड में थे और दूसरे विकेट के लिए बड़ी साझेदारी की ओर बढ़ रहे थे। भारतीय खेमा निराश होने लगा था। लॉर्ड्स में मौजूद भारतीय दर्शक भी विव के चौकों के साथ मैच में किसी करिश्मे को लेकर नाउम्मीद होने लगे थे। इसी दौरान मदनलाल ने डेसमेंड हेंस के रूप में भारत बहुत बड़ा ब्रेक थ्रू दिया और खतरनाक होती दूसरी जोड़ी को खत्म कर दिया। (फाइनल में वेस्टइंडीज़ के खिलाफ भारत का गेंदबाजी प्रदर्शन)

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इस हमले से संभल नहीं पाया वेस्टइंडीज 
लेकिन अब भी आक्रामक विव रिचर्ड्स भारतीय अटैक के लिए काफी थे। विव पूरी तरह से लय में थे और 42 गेंदों में 7 चौकों के साथ 33 रन बनाकर खेल रहे थे। हालांकि हेंस के आउट होते ही मदनलाल ने एकबार फिर करिश्मा दिखाया और 33 रन के निजी स्कोर पर कपिल के हाथों विव को कैच करा दिया। स्टेडियम में मौजूद दिग्गज सन्न रह गए। भारतीय दर्शकों के शोर से लंदन का आसमान गूंज उठा। ये बहुत बड़ा विकेट था। इस विकेट से भारतीय खेमे में उत्साह की लहर दौड़ गई। इसके बाद तो मदनलाल के साथ संधू, अमरनाथ और कपिलदेव ने एक-एक कर वेस्टइंडीज की पूरी टीम को 52 ओवर में 140 रन पर चलता कर दिया। 

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और भारत ने बदल दी क्रिकेट की तस्वीर 
होल्डिंग के रूप में अमरनाथ के विकेट के साथ ही भारत विश्वक्रिकेट का नया चैंपियन बन चुका था। स्टेडियम में मौजूद दर्शक तिरंगा लेकर मैदान में उतर गए और अपने सितारों को गले लगा लिया। पूरे देश में खुशी की लहर दौड़ गई। 1983 की जीत के बाद भारतीय टीम के खिलाड़ियों को देश ने हीरो की तरह लिया। 24 साल के कपिल देव की कप्तानी में इस जीत ने भारत में क्रिकेट का भविष्य ही बदल कर रख दिया। 

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