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वनडे क्रिकेट से बाहर होने पर कितना डर गए थे राहुल द्रविड़, दिल में जो भी था एक इंटरव्यू में सब उगल दिया
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इस कार्यक्रम में द्रविड़ ने बताया कि 1998 में उन्हें वनडे क्रिकेट से बाहर कर दिया गया था। द्रविड़ का वनडे फॉर्मेट में भी स्ट्राइक रेट धीमा था। इस कारण उन्हें टीम से बाहर किया गया। उन्होंने कहा, 'मेरे इंटरनैशनल करियर में ऐसे भी कई मुकाम आए, जब मैं खुद को असुरक्षित महसूस कर रहा था।
1998 में मुझे वनडे क्रिकेट से बाहर कर दिया गया था। मुझे अपनी वापसी के लिए संघर्ष करना पड़ा था। मैं तब एक साल तक भारतीय क्रिकेट से बाहर रहा था। तब निश्चितरूप के मेरे भीतर असुरक्षा की भावना आई थी। मैं सोचता था कि क्या वाकई मैं वनडे क्रिकेट खेलने लायक हूं भी या नहीं।'
पूर्व बल्लेबाज ने कहा, 'मैं एक टेस्ट खिलाड़ी ही बनना चाहता था। मेरी कोचिंग टेस्ट खिलाड़ी वाली होती थी। तब हमें यही सिखाया जाता था कि गेंद पर ग्राउंड शॉट ही मारना है, उसे हवा में नहीं मारना। तब आपको चिंता होती है कि क्या आप इस फॉर्मेट (वनडे) में भी खुद को साबित कर पाएंगे।'
पूर्व कप्तान का कहना है, 'जब हम युवा उम्र में क्रिकेट खेल रहे थे तब इस फील्ड में कॉम्पिटीशन भी बहुत था। तब भी असुरक्षा की भावना घर कर रही थी। क्योंकि भारत में एक युवा क्रिकेटर बनना आसान नहीं था। तब हमारे जमाने में सिर्फ रणजी ट्रोफी होती थी और भारतीय टीम थी।'
24000 से ज्यादा इंटरनैशनल रन बनाने वाले इस बल्लेबाज ने कहा, 'तब आईपीएल नहीं था और रणजी ट्रोफी में भी जो पैसा मिलता था वह बहुत कम ही होता था। चुनौतियां भी कड़ी हुआ करती थीं और क्रिकेट चुनने के बाद बड़े स्तर पर पढ़ाई छोड़नी पड़ती है। मैं पढ़ाई में भी बुरा नहीं था। और मैं पढ़ाई में एमबीए या कुछ और आराम से कर सकता था।'
उन्होंने बताया, 'लेकिन मैं क्रिकेट में आगे बढ़ा और अगर यहां कामयाब नहीं हो पाता तो फिर कुछ और करने के लिए नहीं बचता। तो तब भी एक असुरक्षा की भावना होती थी।'
भारत के इस बल्लेबाज ने 164 टेस्ट और 344 वनडे इंटरनैशनल मैच खेले हैं, जिसमें उन्होंने क्रम से 13,288 और 10,889 रन बनाए हैं।
बता दें 1998 के बाद जब द्रविड़ ने वनडे फॉर्मेट में फिर से वापसी की थी, तो उन्होंने अपनी जगह भारतीय टीम में एक भरोसेमंद बल्लेबाज के रूप में पक्की कर ली थी। 1999 वर्ल्ड कप में द्रविड़ भारत के सफल बल्लेबाजों में से एक थे। वह दोनों ही फॉर्मेट में जमकर खेले और उनकी साहसिक पारियों की बदौलत उन्हें भारतीय क्रिकेट में मिस्टर डिपेंडेबल या 'भारत की दीवार' (द वॉल)' के रूप में पहचान मिली।