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पंजाब चुनाव: CM फेस की रेस में चन्नी ने यूं किया चमत्कार, ‘महाराजा’ छवि तोड़ आम चेहरा बनकर छा गए, Inside Story
मनोज ठाकुर, अमृतसर। पंजाब विधानसभा चुनाव में सिटिंग मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी (Charanjit Singh Channi) पर हाइकमान ने एक बार फिर भरोसा जताया है। चन्नी को पंजाब का सीएम फेस बनाकर चुनाव लड़ने का ऐलान किया है। चन्नी रूपनगर जिले की श्रीचमकौर साहिब विधानसभा सीट से तीन बार के विधायक हैं। दलित समाज से आते हैं। चन्नी के बारे में कहा जाता है कि वे ज्यादा बोलते नहीं है। तामझाम से दूर रहते हैं। साधारण कार्यकर्ता की तरह व्यवहार करते हैं। जहां मन किया, काफिला रोका और चाय पीने बैठ गए। जहां कोई मिला, थम गए। बातचीत की। फिर आगे बढ़ गए। इन छोटी-छोटी चीजों ने चन्नी को सीएम की रेस में आगे खड़ा कर दिया और 111 दिन के काम ने हाइकमान पर गहरी छाप छोड़ दी। आइए जानते हैं सीएम चन्नी ने कैसे कम समय में पंजाब में अपनी अलग पहचान बना ली...
| Published : Feb 07 2022, 12:31 PM IST / Updated: Feb 07 2022, 01:21 PM IST
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इससे इतर, पंजाब में कांग्रेस की सत्ता में कैप्टन अमरिंदर सिंह एक राजा की तरह रहते आए हैं। वह ना किसी से ज्यादा मिलते थे। ना बात करते थे। यहां तक कि कई बार तो विधायकों को मिलने के लिए भी काफी इंतजार करना पड़ता था।
कहा जाता है कि अमरिंदर सिंह राजसी जीवन जीते थे। जैसे ही वह सीएम पद से हटे तो चन्नी ने जिम्मेदारी संभाली और सबसे पहले राजसी टैग को हटाने की हरसंभव कोशिश की। इसमें वह कायमाब भी रहे। कालेज में एक कार्यक्रम में गए तो वहां स्टेट पर भंगड़ा डाला।
मात्र 111 दिन में उन्होंने ना सिर्फ सीएम पद की छवि को खास से आम बना दिया, बल्कि वह प्रदेशभर में लगातार चर्चा में रहने लगे। चन्नी के साधारण व्यवहार की वजह से नवजोत सिंह सिद्धू का आक्रमक रवैया, और सारा तामझाम व स्टारडम पीछे रह गया।
पंजाब की राजनीति में जट्टसिख लॉबी का दबदबा रहता है। इसके बाद भी जब-जब चन्नी को मौका, उन्होंने खुद को साबित किया। 2012 में सुनील जाखड़ पंजाब विधानसभा में विपक्ष के नेता थे। अचानक 2015 में जाखड़ को हटाकर चरणजीत सिंह चन्नी को विपक्ष का नेता बना दिया। इस पद पर चन्नी ने अच्छा प्रदर्शन किया।
18 सितंबर को जब कैप्टन अमरिंदर सिंह ने इस्तीफा दिया तो चन्नी सीएम पद की रेस में भी नहीं थे। तब सुनील जाखड़ का नाम चल रहा था। सिख स्टेट- सिख सीएम का मुद्दा उठा तो सुखविंदर सिंह रंधावा और नवजोत सिंह सिद्धू के नाम चले। अचानक ही चन्नी का नाम सामने आया। उन्हें फोन किया गया कि सीएम पद की शपथ लेने के लिए तैयार रहिए।
माना जाता है कि कैप्टन के सीएम पद पर रहते हुए पंजाब में वीवीआईपी कल्चर हावी था। जैसे ही चन्नी सीएम बने, उन्होंने अपनी सिक्योरिटी कम कर दी। सिक्योरिटी को किनारे कर लोगों से मिलने लगे। कभी हॉकी खेलने वाले के बीच पहुंच कर गोलकीपर बन गए। आधी रात तक लोगों की फरियाद सुनने लगे। बुजुर्गों के पैर छूने लगे। उनके गले लगने लगे। यहां तक कि दीवाली की रात बेघर लोगों के यहां पहुंचकर दीये जलाए। कभी बच्चों को सरकारी हेलिकॉप्टर में घुमाया।
पंजाब में पेट्रोल-डीजल हरियाणा से महंगा है। चन्नी ने पेट्रोल-डीजल पर टैक्स कम कर दिया। इससे फ्यूल काफी हद तक सस्ता हो गया। बेघर लोगों को जमीन का मालिकाना हक जैसे कई ऐसे फैसले थे, जो सीधे जनता से जुड़े थे। चन्नी खुद को गरीब बताते हुए इन फैसलों से जोड़ते जा रहे थे। चन्नी ने कभी टैंट वाला तो कभी गाय का दूध निकालने की बात कहकर अपनी आम आदमी की छवि को मजबूत कर दिया।
प्रधानमंत्री सुरक्षा में चूके मामले में सीएम चन्नी ने आक्रमक तरीके से पार्टी और खुद का बचाव किया। उन्होंने मामले को पंजाब की प्रतिष्ठा से जोड़ दिया। बोले- वह पंजाब के किसानों पर लाठी-गोली नहीं चला सकते थे। फिर पंजाब और पंजाबियों को बदनाम न करने को कहा। यही नहीं, रैली में कहा कि अगर प्रधानमंत्री की सुरक्षा को खतरा होता तो पहली गोली वह खुद खाते। चन्नी का यह जवाब पंजाबियों को खूब रास आया और सोशल मीडिया पर वह ट्रेंड करने लगे।
चन्नी पार्टी में काम करते रहे। कभी पद नहीं मांगा। यहां तक की सीएम बनने के बाद भी वह लगातार काम ही करते रहे। सिद्धू ने हर संभव कोशिश की कि वह खुद को सीएम फेस की तरह प्रोजेक्ट कर सके। दावा मजबूत करने के लिए पंजाब मॉडल ले आए। इसके चक्कर में सिद्धू ने कांग्रेस के भीतर सबको विरोधी बना दिया। वह नेता भी, जो सिद्धू को प्रधान बनाने के लिए कैप्टन अमरिंदर के खिलाफ हो गए थे। जब सिद्धू की दावेदारी से ऐसा लगा कि कांग्रेस में कोई दूसरा चेहरा नहीं तो मौका देख चन्नी ने रैलियों में 111 दिन के बाद पूरे 5 साल मांगने शुरू कर दिए। राहुल गांधी के सामने भी चन्नी ने सिर्फ दावा ही नहीं ठोका, बल्कि सिद्धू को नसीहत देकर एकजुटता का संदेश भी दे डाला।