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पिता और भाई आंदोलन में गए, तो 11 साल की बेटी करने लगी खेती..दिल को छू जाएंगी बेटियों की ये तस्वीरें
पानीपत/जालंधर. नए कृषि कानूनों के विरोध में किसान दिल्ली बॉर्डर पर डटे हैं। 24 दिन से वह अपने परिवारों को छोड़कर हक की लड़ाई लड़ रहे हैं। कई किसानों के साथ उनके बेटे भी आंदोलन का हिस्सा बने हुए हैं। ऐसे में घर पर उनकी गैरमौजूदगी में बेटियों ने सारी खेतीबाड़ी की जिम्मेदारी संभाल रखी है। वह घर में चूल्हे-चौंके का काम करके खेतों में निकल जाती हैं। इन तस्वीरों को देखकर आप भी कहेंगे कि भारत की बेटियां आज किसी से कम नहीं हैं।
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इस हाड़ कपांने वाली कड़कड़ाती ठंड में जहां लोग रजाइयों में दुबके हुए हैं, वहीं पंजाब-हरियाणा में किसानों की बेटियां खेतों में सिंचाई से लेकर कुदाल चलाते हुए दिखाई दे रही हैं। उनके हौंसले को देखकर ऐसा लगता है कि वह बदलते भारत में किसी से कम नहीं हैं। उनका कहना है कि उनको खेतों में काम करना कोई शौक नहीं है, लेकिन वह मजबूर हैं ऐसा करने के लिए। हमारे पिता और भाई अपनी हक की लड़ाई लड़ रहे हैं। इसलिए हम पढ़ाई छोड़ खेतों का काम कर रहे हैं।
हरियाणा के फतेहाबाद जिले के भरपूर गांव में ऐसे कई परिवार हैं जिनकी बेटियां और पत्नी घर का काम करने के बाद खेतों में निकल जाती हैं। इन किसान बेटियों का कहना है कि मोदी सरकार इन तीनों कानूनों को वापस ले ताकि उनके पिता जल्द घर लौट सकें। उनके यहां नहीं होने से हमारी खेती को लाखों का नुकसान हो रहा है।
जब घर में कोई पुरुष नहीं बचा तो मंडेरना गांव की 11 वर्षीय बेटी प्रिया ने खेती की जिम्मेदारी उठा ली। वह सुबह ऑनलाइन क्लास करने के बाद खेतों में निकल जाती है। वह अपनी मां के साथ सारा काम कर रही है। प्रिया कड़ाके की ठंडम में खेत की सिंचाई से लेकर खुदाई तक कर रही है।
भाई और पिता के नहीं होने से खेतों में काम कर रहीं बेटियां अन्नू व विना रानी कहती हैं कि वह किसान की बेटी हैं, इसलिए उनकी पूरी दिनचर्या इस समय पिता की तरह बन गई है। उनका कहना है कि पिता को किसी तरह की कोई चिंदा ना हो और उनको आंदोलन के लिए और ऊर्जा मिले, इसी सोच के साथ वह खेती को देख रही हैं।
खेतों में काम कर रहीं बेटिया कहती हैं कि उनके पापा आंदोलन में गए हुए हैं, खेती ही हमारी आजीविका का साधन है। अगर यह बेकार हो गई तो वह साल भर क्या खाएंगे। ऐसे में हमारा फर्ज बता है कि हमकों अपने पिता का साथ देना चाहिए और खेतों की जिम्मेदारी उठाना चाहिए। ताकि वह अपनी हक की लड़ाई जारी रख सकें।
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