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Bhopal Gas Tragedy: जब 1-1 सांस के लिए मोहताज हो गए थे भोपालवासी, आज भी इन बीमारियों से है परेशान लोग
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मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल का आरिफ नगर इलाका सहित पुराने भोपाल के कई जगहों पर आपको 35-45 साल के ऐसे हजारों लोग मिल जाएंगे, जिन्हें सांस संबंधी परेशान, अपंगता या कोई अन्य बीमारी है। ये बीमारी आज की नहीं बल्कि 1984 का ही वो जख्म है, जो आज भी ताजा है।
आज से 37 साल पहले 2-3 दिसंबर की दरमियानी रात नावाबों के शहर में ऐसी दहशहत फैली, जो आज तक के इतिहास में सबसे बड़ी मानव निर्मित त्रासदी है। इसे भोपाल गैस कांड के नाम से जाना जाता है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक इस त्रासदी से करीब 5 लाख लोग प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर पीड़ित हैं।
भोपाल गैस त्रासदी को 37 साल हो गए है, लेकिन आज भी हजारों लोग कई तरह की गंभीर समस्याओं से जूझ रहे हैं। एक्सपर्ट्स की माने तो अन्य रोगियों की तुलना में गैस त्रासदी पीड़ितों में मोटापे की समस्या 2.75 गुना अधिक है। इस आपदा से बचे लोगों में थायराइड से संबंधित परेशानियां भी अन्य लोगों की तुलना में 1.92 गुना अधिक हैं।
पुराने भोपाल में 1977 में बने यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड (यूका) के कारखाने में 2-3 दिसंबर 1984 को एक टैंक से जहरीली मिथाइल आइसोसाइनेट गैस लीक हो गई थी। जिसकी वजह से पूरे शहर में हाहाकार मच गई थी। हर जगह लाशों का ढेर लगा था। अस्पतालों से लेकर सड़क तक पर मरीज ही मरीज थे।
बताया जाता है कि इस भीषण हादसे से करीब 8 हजार लोगों की जान गई। लेकिन ये तो सरकारी आंकड़ा है। कई लोगों का दावा है कि इस हादसे में 25 हजार से ज्यादा लोगों की मौत हुई थी और हजारों जानवर और पक्षी भी जहरीली गैस की वजह से मर गए थे।
इस हादसे के शिकार हुए जिंदा लोगों में से अधिकतर लोगों को सांस की बीमारियां है और कई लोगों ने तो कैंसर के चलते दम तोड़ दिया है। महिलाओं को पीरियड्स से लेकर बच्चे पैदा ना कर सकने जैसी परेशानियों का सामना करना पड़ा।
1999 में जारी रिपोर्ट के मुताबिक इस हादसे में जो गैस लीक हुई थी, उसमें 20 हजार से 60 लाख तक मर्क्युरी लेवल मौजूद था। जबकि, इंसान की बॉडी इससे काफी कम अमाउंट में मर्क्युरी झेल सकती है। ऐसे में इस हादसे के बाद बड़ी संख्या में लोग अंधे भी हो गए थे।
गैस त्रासदी पीड़ितों में आम बीमारियों में डायबीटिज, ब्लड प्रेशर और किडनी-लिवर प्रॉब्लम के साथ ही और यकृत की समस्याएं आदि शामिल हैं। जहरीली गैस न केवल पीड़ितों के अंगों को प्रभावित करती है बल्कि उनके बच्चों को भी कई जन्मजात बीमारियां दी।
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