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मेष से मीन लग्न तक की कुंडली में क्या प्रभाव डालते हैं शनिदेव, किस देते हैं शुभ और किसे अशुभ फल?
उज्जैन. ज्योतिष में शनि को दशम और लाभ स्थान का स्वामी माना जाता है। मनुष्य के जीवन में कर्म और लाभ की स्थिति शनि से ही देखी जाती है। शनि मनुष्य के कर्मों का फल उसे प्रदान करते है और उसे न्याय देते है। यह एक पाप ग्रह है और इसकी दृष्टि जिस भी भाव पर जाती है उस भाव संबंधी फलों में कमी करती है ऐसा विद्वानों का मत है। शनि मेष से लेकर मीन लग्न तक की कुंडली में अलग अलग भाव के स्वामी होकर विभिन्न फल प्रदान करते है। आगे जानिए शनि का 12 लग्नों में क्या फल मिलता है…
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मेष लग्न
इस लग्न कुंडली के लोगों के लिए शनि परम राजयोग कारक होता है। शनि दशम और लाभ के स्वामी होने के कारण जातक को अथाह लाभ प्रदान करते है, लेकिन इसके लिए शनि की स्थिति शुभ होनी चाहिए।
वृष लग्न
इस लग्न कुंडली के लोगों के लिए शनि योगकारक होते हैं। भाग्येश और दशमेश होने के कारक शनि के शुभ फल व्यक्ति को प्राप्त होते हैं। शनि की शुभ स्थिति व्यक्ति को न्यायप्रिय, धर्मात्मा और साधु संतों का प्रिय बनाती है।
मिथुन लग्न
इस लग्न कुंडली के लोगों के लिए शनि कुछ अकारक होते है। इसका कारण उनकी मकर राशि का आठवें भाव में स्थित होना है। लेकिन कुंभ राशि के भाग्य में होने के कारण व्यक्ति को शनि की शुभ स्थिति न सिर्फ दीर्घायु करती है बल्कि वो शोध करने वाला होता है।
कर्क लग्न
इस लग्न कुंडली के लोगों के लिए शनि प्रबल अकारक हो जाता है। शनि इस कुंडली में प्रबल मारकेश का फल करता है। अगर कुंडली के आठवें भाव में शुभ ग्रह पीड़ित हो और चन्द्रमा शनि से दृष्ट हो तो व्यक्ति अल्पायु हो सकता है।
सिंह लग्न
इस लग्न कुंडली के व्यक्ति के लिए शनि अकारक होता है। यह लग्नेश सूर्य का प्रबल शत्रु है और छठे भाव का फल अधिक करता है। शनि अच्छा नहीं हो तो व्यक्ति जीवन भर रोग, कर्ज में डूबा रहता है। कुंभ राशि मारक स्थान में होने के कारण सहयोगी अच्छे नहीं मिलते वही गुरु शुक्र कमजोर हो तो विवाह में देरी होती है।
कन्या लग्न
इस लग्न कुंडली के लोगों के लिए शनि सामान्य फल करता है। कन्या लग्न में कुंभ राशि छठे भाव में है और अगर शनि आठवें भाव में होगा तो वो विपरीत राजयोग का निर्माण करेगा जिसके प्रभाव से व्यक्ति अपने ही शत्रुओं के धन से करोड़पति हो जाता है।
तुला लग्न
इस लग्न कुंडली के लोगों के लिए शनि अत्यंत शुभ और योगकारक होता है। मूल त्रिकोण राशि पंचम में होने के कारक ये व्यक्ति को शिक्षा और ज्ञान दोनों देते है। अगर शनि और शुक्र की युति केंद्र या त्रिकोण में हो तो जातक उच्च कोटि का व्यापारी होता है।
वृश्चिक लग्न
इस लग्न कुंडली के लोगों के लिए शनि अकारक ही माना गया है। लग्नेश मंगल के साथ वो सहज नहीं है वहीं पराक्रम भाव के स्वामी है। इस लग्न की कुंडली में अगर शनि चौथे भाव में बलवान होकर बैठे तो शश: राजयोग बनता है जो की अच्छी संपत्ति का भोग देता है।
धनु लग्न
इस लग्न कुंडली के लोगों के लिए शनि सामान्य होता है। अगर शनि और गुरु की स्थिति ठीक है तो व्यक्ति धनी होता है। शनि इस लग्न कुंडली के लिए पराक्रम भाव का स्वामी होता है इसलिए व्यक्ति को मेहनत से ही सब कुछ प्राप्त होता है।
मकर लग्न
इस लग्न कुंडली के व्यक्ति के लिए शनि राजयोग कारक है क्योंकि यह खुद शनि का लग्न है। फलित के अनुसार अगर मकर लग्न की कुंडली के धन भाव में गुरु शनि बुध हो तो ऐसा व्यक्ति विदेश में खूब संपत्ति अर्जित करता है।
कुंभ लग्न
इस लग्न कुंडली के लोगों के लिए शनि अति शुभ है, अगर इस लग्न कुंडली में शनि 3, 6, 11 भाव में किसी पाप ग्रह से दृष्ट होकर नहीं बैठा हो तो व्यक्ति को अपनी मेहनत के दम पर करोड़पति बना देता है।
मीन लग्न
इस लग्न कुंडली के लोगों के लिए शनि बारहवें भाव का फल अधिक करने के कारण सामान्य शुभ है। अगर मीन लग्न में शनि की स्थिति अशुभ हो तो व्यक्ति को रोग होता है और उसे धन की हानि होती है।