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चीते जैसी फुर्ती, चील जैसी नजर..अब चीन को लद्दाख में इसी फोर्स ने दी मात, सीधा PMO को करता है रिपोर्ट
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1962 में हुआ गठन
स्पेशल फ्रंटियर फोर्स (एसएफएफ) का गठन 1962 में भारत चीन युद्ध के बाद हुआ था। इस रेजिमेंट में अफसर सेना से होते हैं, जबकि जवानों को तिब्बत के शरणार्थियों से चुना जाता है। कहा जाता है कि एसएफएफ जवानों के पास चीते जैसी फुर्ती और चील जैसी नजर होती है। इतना ही नहीं फोर्स सुरक्षा महानिदेशालय के जरिए सीधे प्रधानमंत्री को रिपोर्ट करती है। इसके मूवमेंट की जानकारी सेना तक को नहीं होती।
इन ऑपरेशन्स में निभाई अहम भूमिका
एसएफएफ को विकास रेजिमेंट के नाम से भी जाना जाता है। एसएफएफ ने 1971 में पाकिस्तान से जंग में चटगांव की पहाड़ियों को ऑपरेशन ईगल के तहत सुरक्षित कराया। इसके अलावा 1984 में सफल ऑपरेशन ब्लूस्टार चलाया। इसके बाद 1999 में कारगिल युद्ध के दौरान ऑपरेशन विजय में भी अहम भूमिका निभाई।
चीन से 1962 की जंग के बाद स्पेशल फ्रंटियर फोर्स बनाई गई थी। तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने इस यूनिट का गठन करने का आदेश दिया था। इसमें बड़ी संख्या में तिब्बती लड़ाकों को शामिल किया गया। शुरुआत में इसमें 5,000 जवान थे। एसएफएफ की ट्र्रेनिंग देहरादून के चकराता में बनाया गया।
तिब्बती लड़ाके पहाड़ों पर चढ़ने और गुरिल्ला युद्ध में माहिर माने जाते हैं। इनकी ट्रेनिंग में भारत की खुफिया एजेंसी रॉ और अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए का अहम रोल रहा है।
ऐसे मिला Establishment 22 नाम
स्पेशल फ्रंटियर फोर्स के पहले आईजी जनरल मेजर जनरल सुजन सिंह थे। वे दूसरे विश्व युद्ध में 22 माउंटेन रेजिमेंट के कमांडर थे। उन्हें मिलिट्री क्रॉस से भी सम्मानित किया गया था। उन्हीं की रेजिमेंट के चलते इस फोर्स का नाम Establishment 22 भी जाना जाता है।
इन हथियारों का करते है इस्तेमाल
स्पेशल फ्रंटियर फोर्सेज को काफी घातक और आधुनिक हथियार दिए जाते हैं। इनमें असॉल्ट राइफल से लेकर ऑटोमेटिक स्नाइपर राइफल तक शामिल होती हैं। इसके अलावा फोर्स लाइट मशीन गन और कार्बाइन का भी इस्तेमाल करती है। फोर्स के पास रॉकेट लॉन्चर, रिकॉइललेस राइफल, ग्रेनेड लॉन्चर जैसे हथियार भी होते हैं।