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दिल्ली सरकार ने कुछ नहीं किया, नहीं तो कब की मिल जाती फांसी...निर्भया की मां ने ऐसे निकाला गुस्सा

नई दिल्ली. सात सालों से न्याय के इंतजार में बैठे निर्भया के परिजनों को पहली बार 7 जनवरी 2020 को उस वक्स सकून मिला जब दिल्ली पटियाला कोर्ट ने दोषियों के लिए मौत का पैगाम लिख दिया। लेकिन कानून अधिकारों की वजह से निर्भया के दोषियों ने इस सकून को छिन लिया। जिससे 22 जनवरी को मिलने वाली मौत टलते हुए 1 फरवरी तक पहुंच गई। जिसमें कोर्ट ने 17 जनवरी को नया आदेश सुनाते हुए दोषियों के लिए 1 फरवरी की मौत की तारीख मुकर्रर की है। लेकिन निर्भया को न्याय दिलाने में हो रही देरी पर सियासत चरम पर है। वहीं, दोषी अभी भी कानूनी पैंतरे चल कर किसी भी हाल में मौत का टालना चाह रहे हैं।

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Asianet News Hindi
Published : Jan 18 2020, 12:53 PM IST
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जेल प्रशासन को जारी करना था नोटिसः 16 दिसंबर 2012 को निर्भया के साथ हुए दरिंदगी के मामले में ट्रायल कोर्ट ने 13 सितंबर, 2013 को मौत की फांसी की सजा सुनाई थी। जिसके बाद आरोपियों ने हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में गुहार लगाई। जिस पर मई 2017 में कोर्ट ने फांसी की सजा को बरकरार रखा। जुलाई 2018 में 3 पुनर्विचार याचिकाएं रद्द हुईं। तिहाड़ के पूर्व अधिकारी सुनील गुप्ता के अनुसार सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद दोषियों को कानूनी विकल्प आजमाने के लिए उसी वक्त 7 दिन का नोटिस देना जेल अधीक्षक की जिम्मेदारी थी। (निर्भया के दोषियों को फाइल फोटो)
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इससे पहले दिल्ली हाईकोर्ट में दिल्ली सरकार ने कहा था कि दया याचिका लंबित रहने तक किसी भी दोषी को फांसी नहीं दी जा सकती। इसी बीच, दोषियों को फांसी में देरी पर निर्भया की मां आशा देवी ने पीड़ा जाहिर की। उन्होंने कहा- मेरी बच्ची की मौत के साथ लगातार खिलवाड़ किया जा रहा है। (फोटो- निर्भया के माता-पिता की फाइल तस्वीर)
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निर्भया की मां की याचिका पर कोर्ट ने जारी की नोटिसः निर्भया की मां आशा देवी ने बताया कि मई 2017 में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद जेल प्रशासन ने कोई कार्रवाई नहीं की। जुलाई 2018 में तीन की पुनर्विचार याचिका खारिज होने पर भी जेल प्रशासन मौन रहा। उन्होंने खुद 14 फरवरी, 2019 को कोर्ट से डेथ वारंट जारी करने की मांग की। कोर्ट के नोटिस पर ही जेल प्रशासन ने दोषियों को दो नोटिस दिए। (निर्भया के दोषियों की फाइल फोटो)
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दिल्ली सरकार की सुस्ती, बड़ी वजहः तिहाड़ जेल दिल्ली सरकार के गृह विभाग के अधीन है। जेल प्रशासन ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बावजूद डेथ वारंट नहीं मांगा था। जिस पर दिल्ली सरकार उसे कार्रवाई का आदेश दे सकती थी। करीब ढाई साल की निष्क्रियता पर सरकार के पास लापरवाह अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई शुरू करने का अधिकार भी है। लेकिन सरकार ने कभी भी निर्भया के दोषियों को फांसी दिलाने के लिए कोई पहल करती हुई नहीं दिखाई दी। (तिहाड़ जेल की फाइल फोटो)
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डेथ वारंट जारी होने के बाद दी यह दलीलः कोर्ट द्वारा निर्भया के दोषियों को सजा मिलने के बाद दिल्ली सरकार को फांसी के लिए पहल करना था। लेकिन दिल्ली सरकार ने अपनी ओर से कोई कदम नहीं उठाया। कोई फॉलोअप नहीं लिया। बल्कि, डेथ वारंट जारी होने के बाद हाईकोर्ट और निचली अदालत में जेल मैनुअल का हवाला दे यह जरूर कहा कि 22 जनवरी को फांसी संभव नहीं। जेल और दिल्ली सचिवालय की दूरी महज 19 किमी है। फिर भी किसी अधिकारी ने समीक्षा जैसा कदम नहीं उठाया। (तिहाड़ जेल के मुख्य द्वार की फाइल फोटो)
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दिल्ली सरकार ने झाड़ा पल्लाः एक ओर कोर्ट में पेश हुए दिल्ली सरकार के पक्षकार ने जहां जेल मैनुअल का हवाला देकर 22 जनवरी को फांसी पर लटकाने में असमर्थता जारी की। तो वहीं, मामला बढ़ने के बाद दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा कि दिल्ली सरकार के अधीन आते सभी काम कुछ घंटों में ही पूरे कर दिए। दोषी की दया याचिका मिलने के चंद घंटों में उसे खारिज करने की सिफारिश उपराज्यपाल को भेज दी थी। किसी भी काम में दिल्ली सरकार ने देरी नहीं की। (फाइल फोटो- दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल)
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लिखित के बजाए मौखिक बोलता रहा जेल प्रशासनः तिहाड़ जेल के एआईजी राजकुमार ने कहा कि जुलाई 2018 में मुकेश, पवन और विनय की पुनर्विचार याचिका खारिज होने के बाद उनसे मौखिक तौर पर कई बार कानूनी विकल्प आजमाने को कहा। निर्भया की मां द्वारा इस मामले में याचिका दाखिल किए जाने के बाद जेल प्रशासन ने 2019 में अक्टूबर और दिसंबर में दो नोटिस जारी किए। (निर्भया की मां की फाइल फोटो)
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पवन सुप्रीम कोर्ट गया, नाबालिग होने का दावाः दोषी पवन गुप्ता हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है। अपराध के वक्त नाबालिग होने का उसका दावा हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया था। जिसके बाद उसके वकील ने विशेष अधिकार के तहत याचिका दाखिल कर दावा किया कि इस घटना के वक्त दोषी पवन नाबालिग था। लिहाजा उसको फांसी नहीं दी जा सकती। (फाइल फोटोः निर्भया के दोषियों को ले जाती पुलिस)
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लूट का केस लंबित हैः फांसी से बचने के लिए निर्भया के दोषी हर कोशिश कर रहें हैं। जिसका नतीजा है कि दोषियों के वकील एपी सिंह ने दावा किया कि लूट के मामले में चारों की अपील हाईकोर्ट में लंबित है। जिसके कारण अभी फांसी नहीं हो सकती। अगस्त 2015 में जेल में एक पेंटर से लूट में कोर्ट ने इन्हें 10 साल की सजा सुनाई थी। (बंदी गृह की फाइल तस्वीर)
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ऐसे उठा रहे फायदाः जेल मैनुअल के अनुसार किसी केस में दोषी को मौत की सजा दी जाती है। जिसके बाद उसके पास क्यूरेटिव पिटीशन और दया याचिका दायर करने का अधिकार होता है। जिसके खारिज होने के 14 दिन बाद ही फांसी दी जा सकती है। इसके साथ ही किसी केस में यदि एक साथ कई दोषियों को फांसी की सजा दी जाती है तो सभी दोषियों को एक ही साथ फांसी पर लटकाया जाता है। किसी भी एक दोषी का मामला लंबित रहता है तो सभी की फांसी रूकी रहती है। दोषियों के कदम से यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि दोषी इसी प्रकार का दांव खेलकर फांसी से बचना चाहते हैं। (दोषियों की जेल में बंद होने के दौरान की फाइल फोटो)

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