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कभी एक मामूली क्लर्क थे प्रणब दा, राजनीति में लेकर आईं थीं इंदिरा...ऐसे तय किया राष्ट्रपति तक का सफर
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प्रणब मुखर्जी 84 साल के थे। वे 2012-17 तक भारत के 13वें राष्ट्रपति रहे। 2019 में प्रणब मुखर्जी को देश का सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार भारत रत्न से सम्मानित किया गया था। आईए जानते हैं कि कैसे प्रणब दा ने एक क्लर्क से राष्ट्रपति पद तक का सफर तय किया।
क्लर्क रहे, कॉलेज में भी पढ़ाया
प्रणब मुखर्जी का जन्म 11 दिसंबर, 1935 को प बंगाल के बीरभूमि जिले के मिरती गांव में हुआ था। उनके पिता कामदा किंकर मुखर्जी स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय रहे। वे 1952 से 1964 तक बंगाल विधायी परिषद में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के प्रतिनिधि रहे। प्रणब मुखर्जी ने कॉलेज प्राध्यापक के रूप में अपना करियर शुरू किया। इसके बाद वे पत्रकार भी रहे। उन्होंने 1963 में कोलकाता में डिप्टी अकाउंटेंट-जनरल के कार्यालय में बतौर अपर डिवीजन क्लर्क से की थी।
ऐसे शुरू हुआ राजनीतिक सफर
प्रणब दा का राजनीतिक सफर 1969 में शुरू हुआ। इंदिरा गांधी उन्हें राजनीति में लेकर आईं। इसके बाद उन्हें राज्यसभा सदस्य के तौर पर सदन में भेजा गया। 1984 में प्रणब मुखर्जी भारत के वित्त मंत्री बने। 1984 में यूरोमनी पत्रिका के एक सर्वे में उन्हें दुनिया के 5 सर्वोत्तम वित्त मंत्रियों में शामिल किया गया।
इंदिरा की हत्या के बाद प्रणब मुखर्जी राजनीति का शिकार हुए। उन्हें मंत्रिमंडल में शामिल नहीं किया गया। इसके बाद उन्हें कांग्रेस पार्टी से भी बाहर होना पड़ा। इसके बाद प्रणब मुखर्जी ने राजनीतिक पार्टी राष्ट्रीय समाजवादी कांग्रेस बनाई। हालांकि, 1989 में राजीव गांधी के साथ समझौता होने पर उन्होंने अपनी पार्टी का कांग्रेस में विलय कर लिया।
इन पदों पर रहे प्रणब मुखर्जी
1969: पहली बार राज्यसभा पहुंचे। उन्हें 1973 में इंदिरा गांधी के मंत्रिमंडल में जगह। वे 1982-84- वित्त मंत्री रहे। प्रणब दा 1991 में योजना आयोग के प्रमुख और 1995 में विदेश मंत्री बने। 2004 में पहली बार लोकसभा चुनाव जीते। 2004-06 में रक्षा मंत्री रहे। 2009-12 तक वित्त मंत्री रहे। मुखर्जी 25 जुलाई 2012 को देश के 13वें राष्ट्रपति बने। 2017 में राजनीति से सन्यास ले लिया।