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Round-up 2021: जब चमोली में ग्लेशियर टूटने से मची थी भयंकर तबाही; वैज्ञानिकों के लिए अभी भी रहस्य बनी है घटना
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जिस समय ग्लेशियर टूटा, तब तपोवन में एनटीपीसी (NTPC) के हाइड्रोपावर प्लांट में यानी टनल की दूसरी तरफ 40 मजदूर काम कर रहे थे। टनल में गीला मलबा भर जाने से वे बाहर नहीं निकल पाए।
तपोवन हादसे के बाद पर्यावरणविद और वैज्ञानिकों की चिंताएं बढ़ गई हैं। बता दें कि यहां छोटे-बड़े करीब 58 बांध प्रस्तावित हैं। जिनके लिए करीब 1500 किमी लंबी सुरंगें बनाई जा रही हैं। इससे 28 लाख आबादी प्रभावित होगी।
ग्लेशियर टूटने की घटना को आशंका से जोड़कर भी देखा जाता रहा है। यह तक कहा गया कि कहीं इसमें चीन की कोई साजिश तो नहीं थी? क्योंकि यह जगह चीन के बॉर्डर के करीब है। हालांकि इस बारे में कोई स्पष्ट जानकारी सामने नहीं आ सकी।
ग्लेशियर टूटने के बाद ऋषि गंगा के ऊपरी हिस्से पर एक झील चिंता का विषय बनी हुई है। इसमें 4.80 करोड़ लीटर पानी भरा मिला था। यह झील कहीं वहां बने डैम की दीवारों पर तो प्रेशर नहीं डाल रही, इसका पता करने एक सेंसर डिवाइस लगाई गई गई है।
कुछ रिपोर्ट के अनुसार कहा गया कि संभवत: नन्दा देवी ग्लेशियर से एक भारी और ठोस हिस्सा किसी प्राकृतिक वज से टूटकर नीचे के ग्लेशियर पर गिर गया। इससे नीचे वाले ग्लेशियर के टुकड़े-टुकड़े हो गए और वो चट्टान के मलबे के साथ मिल गए। जब चट्टान और बर्फ का वो मिश्रण तेज ढलान से 3 किलेामीटर तक नीचे रौंथी गधेरा धारा से टकराया, तो एक बांध जैसा स्ट्रक्चर बन गया। चूंकि उस समय बर्फ जमी थी, इसलिए वो कुछ समय तक टिका रहा। बाढ़ से तीन दिन पहले मौसम साफ रहा। इससे जमी हुई चट्टान और बर्फ का मिश्रण तेजी से पिघला और उस इलाके को चीरता हुआ तपोवन घाटी की तरफ बढ़ गया।
नंदा देवी और हिमालय के दूसरे ग्लेशियर बहुत ज्यादा ठंड पड़ने पर ही क्यों पिघलते हैं, इसे लेकर दुनिया भर के वैज्ञानिक रिसर्च कर रहे हैं। वैज्ञानिकों का मानना है कि जलवायु परिवर्तन (Climate Change) इसके पीछे मुख्य वजह है। क्लाइमेंट चेंज का असर पूरी दुनिया के पर्यावरण पर पड़ रहा है और यह भविष्य में लोगों के लिए बहुत बड़ा खतरा साबित होगा। वैज्ञानिकों का मानना है कि चमोली और इससे पहले केदारनाथ में ग्लेशियर टूटने से आई ऐसी आपदा जलवायु परिवर्तन का ही परिणाम है।
एक स्टडी से पता चला है कि अगले 15 साल के दौरान हिमालय के ग्लेशियर बहुत तेजी से पिघलेंगे और उनमें से ज्यादातर का अस्तित्व खत्म हो जाएगा। वैज्ञानिकों का मानना है कि इसके पीछे ग्लोबल वॉर्मिंग (Global Warming) मुख्य वजह है।
वैज्ञानिकों का कहना है कि 2035 तक हिमालय के ग्लेशियर्स के पिघलने से खतरे ज्यादा बढ़ सकते हैं। उत्तराखंड के चमोली जिले में जोशीमठ के पास जिस तरह से ग्लेशियर टूटे और उसका भयानक परिणाम सामने आया, ऐसी आपदाएं काफी बढ़ सकती हैं।
वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी (Wadia Institute of Himalayan Geology) के सीनियर साइंटिस्ट मनीष मेहता का मानना है कि विंटर सीजन में ग्लेशियर्स फ्रोजन कंडीशन में होते हैं। ऐसे में, जिस तरह की बाढ़ चमोली में आई, उसके पीछे लैंडस्लाइड भी एक वजह हो सकती है।
2020 में की एक स्टडी के मुताबिक हिमालय के ग्लेशियर पहले की तुलना में दोगुनी तेज गति से पिघल रहे हैं। इसलिए इस तरह की आपदा कभी भी आ सकती है।
साइंटिस्ट मनीष मेहता की टीम ने ऋषिगंगा के अपर कैचमेंट एरिया, उत्तरी नंदा देवी ग्लेशियर, त्रिशूल, दक्षिणी नंदा देवी और कई क्षेत्रों में ग्लेशियर्स के पिघलने के पैटर्न की स्टडी की है। उनका कहना है कि कुछ ही वर्षों में उनके आकार में 10 फीसदी तक की कमी आई है। इसका मतलब है कि उनकी मेल्टिंग की प्रॉसेस तेज गति से जारी है।
क्लाइमेट चेंज के अलावा बेहिसाब कंस्ट्रक्शन के कारण भी पहाड़ों पर दबाव बढ़ा है। इसकी वजह से भी ग्लेशियर पिघल रहे हैं।