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सुप्रीम कोर्ट के सबसे बड़े फैसले को सुन 4365 परिवारों में खुशी की लहर, बोले- दुनिया के मुसलमानों का बढ़ा भरोसा
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क्या है पूरा मामला?
दरअसल, हल्द्वानी के बनभूलपुरा में रेलवे की 29 एकड़ जमीन है। रिकॉर्ड के अनुसार इस जमीन पर 4365 लोगों ने अतिक्रमण कर रखा है। उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने 20 दिसंबर को बनभूलपुरा क्षेत्र में 29 एकड़ रेलवे भूमि से अतिक्रमण हटाने का आदेश दिया था, जिसमें निवासियों को इसे खाली करने के लिए एक सप्ताह का नोटिस दिया गया था।
हाईकोर्ट के आदेश के बाद बड़ी संख्या में लोग धरने पर
हाईकोर्ट के आदेश के बाद बड़ी संख्या में लोग धरना शुरू कर दिए थे। साथ ही यहां रहने वाले लोगों ने सुप्रीम कोर्ट में गुहार लगाई थी। गुरुवार को बड़ी संख्या में लोग जिसमें महिलाएं और बच्चे भी शामिल थे, ने धरना प्रदर्शन को और तेज कर दिया। इन लोगों का दावा है कि वह लोग यहां दशकों से रह रहे और उनके दस्तावेज कानूनी हैं।
यहां पहुंचे एक बुजुर्ग अहमद अली ने कहा कि दुनिया भर के मुसलमान उम्मीद के साथ शीर्ष अदालत की ओर देख रहे हैं। लोग यहां 100 साल से रह रहे हैं। उनके पास सबूत और दस्तावेज हैं। हमें उम्मीद है कि अदालत न्याय करेगी और हमारे अनुकूल आदेश भी दिया। एक अन्य स्थानीय निवासी नईम ने दावा किया कि उसके पूर्वज 200 साल पहले इस क्षेत्र में रहने लगे थे। धरना में पहुंचे पूर्व विधायक काजी निजामुद्दीन ने कहा कि जब सरकार यहां सरकारी प्रोजेक्ट्स लगा रही थी तो उसे नहीं लगा कि यहां रह रहे लोग अवैध हैं या नहीं। उन्होंने बताया कि इस 29 एकड़ में ही दो इंटर कॉलेज, स्कूल, अस्पताल, एक ओवरहेड पानी की टंकी, 1970 में बिछाई गई एक सीवर लाइन, एक मस्जिद और मंदिर हैं।
बनभूलपुरा के लोगों ने कहा ऐसे तो पूरी हल्द्वानी को हटाना होगा
बनभूलपुरा के अतिक्रमण को हटाने के हाईकोर्ट के आदेश पर लोगों ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के स्टे से हम लोगों में न्याय की उम्मीद जगी है। यहां केवल राजनीति हो रही है। यह लोगों के जीवन से जुड़ा मुद्दा है न कि राजनीतिक। केवल हम लोगों को हटाया जा रहा है। अगर हम लोगों को अतिक्रमण के नाम पर हटाया जा रहा है तो पूरी हल्द्वानी को हटना पड़ेगा क्योंकि यह भी तो नजूल की भूमि पर ही है।
कोर्ट ने कहा-इतने लंबे समय से लोग रह रहे बिना पुनर्वास कैसे हटेंगे
सुप्रीम कोर्ट की चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की बेंच ने इस मामले की सुनवाई की है। इस बेंच में चीफ जस्टिस के अलावा जस्टिस एसए नज़ीर और पीएस नरसिम्हा शामिल रहे। बेंच ने हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगाते हुए उत्तराखंड सरकार से कहा कि इतने सारे लोग लंबे समय से वहां रह रहे हैं। उनका पुनर्वास तो जरूरी है। 7 दिन में ये लोग जमीन कैसे खाली करेंगे याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि जमीन पर लोग आजादी के पहले से रह रहे हैं। सरकार जमीन को अपना बता रही है जबकि रेलवे अपनी।
इस पर बेंच ने कहा कि निश्चित तौर पर जमीन रेलवे की है तो उसे इसे डेवलप करने का अधिकार है। लेकिन यहां के लोगों का पुनर्वास भी होना चाहिए। बेंच ने कहा कि लोगों का दावा है कि वो 1947 के बाद यहां आए थे। प्रॉपर्टी नीलामी में रखी गई थी। आप डेवलपमेंट कीजिए लेकिन पुनर्वास की मंजूरी दी जानी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वो रेलवे और राज्य सरकार को नोटिस जारी कर रही है। वहां और अधिक कब्जे पर रोक लगे। मामले की अगली सुनवाई 7 फरवरी को होगी।
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