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फांसी का फंदा देखते ही कांप गई थी कसाब की रूह, जानें कैसे कटी थी आतंकी की आखिरी रात
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बता दें कि आतंकी कसाब को फांसी पर चढ़ाने की पूरी प्रॉसेस को बेहद गोपनीय रखा गया था। फांसी से पहले कसाब को मुंबई की आर्थर रोड जेल में बनी अंडा सेल से पुणे की येरवडा जेल शिफ्ट किया गया था।
इस दौरान मुंबई पुलिस के 17 अफसरों को ये जिम्मा सौंपा गया था कि वो कसाब को पुणे की येरवड़ा जेल पहुंचाएं। कसाब को बुर्के में येरवडा जेल लाया गया था।
कसाब को मुंबई की आर्थर रोड जेल से पुणे की येरवड़ा जेल तक पहुंचाने में 3 घंटे का समय लगा था। इस शिफ्टिंग के दौरान ही कसाब इतना ज्यादा खौफ में था कि उसके मुंह से एक शब्द नहीं निकला। (फोटो : फिल्म 26/11 अटैक में कसाब का रोल करने वाले एक्टर की है)
पुणे जेल में शिफ्ट करने के बाद फांसी से एक दिन पहले जब कसाब से उसकी अंतिम इच्छा पूछी गई तो उसने कुछ नहीं कहा। फांसी का नाम सुनते ही वो पूरी रात सो नहीं पाया था।
फांसी वाले दिन कसाब को सुबह सबसे पहले नहलाया गया था। फांसी की एक रात पहले कसाब सोया ही नहीं। उसकी रात करवटें बदलते ही गुजर गई। 21 नवंबर की सुबह उसने नमाज पढ़ी।
फांसी से ठीक पहले जब कसाब को सजा-ए-मौत के बारे में बताया गया तो उसकी रूह कांप उठी। फांसी के फंदे का नाम सुनते ही वो घबरा गया था। हालांकि, उसने कहा कि ये खबर उसकी मां तक पहुंचा दी जाए।
फांसी पर लटकने से पहले आतंकी कसाब ने जेलर की मौजूदगी में अल्लाह से अपने गुनाहों की माफी मांगी थी। इतना ही नहीं, उसने ये भी कहा था कि वो दोबारा ऐसी गलती कभी नहीं करेगा।
सुबह 7.30 बजे आतंकी कसाब को पुणे की येरवडा जेल में फांसी पर लटका दिया गया। कुछ देर लटकने के बाद उसके शव का मेडिकल टेस्ट कराया गया। बाद में डॉक्टरों ने कसाब को मृत घोषित कर दिया।
बता दें कि कसाब को 15 पुलिसकर्मियों की टीम ने एक ऑपरेशन के जरिए जिंदा पकड़ा था। इस ऑपरेशन के दौरान मुंबई पुलिस के असिस्टेंट सब इंस्पेक्टर तुकाराम ओंबले वीरगति को प्राप्त हुए थे। उन्होंने अपने सीने में गोलियां खाते हुए भी कसाब को नहीं छोड़ा था।
26 नवंबर, 2008 को पाकिस्तानी आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा के आतंकियों ने मुंबई के ताज होटल, लियोपोल्ड कैफे, मैडम कामा हॉस्पिटल और छत्रपति शिवाजी टर्मिनस स्टेशन पर अंधाधुंध गोलियां बरसाई थीं। इस हमले में 160 लोगों की मौत हो गई थी। हालांकि, आतंकी कसाब को जिंदा पकड़ लिया गया था।
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