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जोशीमठ: उजड़ रहे घरौंदे, बंजारा होती जिंदगियां दे रही चेतावनी...देश के भूविज्ञानी बोले-यह संभलने का वक्त...
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आने वाले दिन और बदतर हो सकते...
आपदा प्रबंधन के क्षेत्र में योगदान के लिए 2009 में राष्ट्रीय भूविज्ञान पुरस्कार से सम्मानित सीपी राजेंद्रन, जोशीमठ जैसी स्थितियों से सीखने की चेतावनी देते हुए कहते हैं कि पहाड़ों की समस्या यह है कि विस्फोट और सुरंग खोदने के कारण भूजल स्रोत पर प्रभाव पड़ा है। वे या तो पंक्चर हैं या लीक हो रहे हैं। आप वास्तव में वहां बहुत घुसपैठ का काम कर रहे हैं। चट्टानों को नष्ट करना और उस (इलाके) के माध्यम से बड़ी सुरंगें बनाना प्राकृतिक इकोसिस्टम में जबरिया हस्तक्षेप है। वह कहते हैं कि मेरा डर यह है कि जो जोशीमठ में हो रहा है वह कहीं और हो सकता है। उन और शहरों में भी, जहां कहीं भी इस तरह की घुसपैठ वाली इंजीनियरिंग गतिविधियां हो रही हैं। इसलिए कहीं भी विकास परियोजनाओं के लिए इंजीनियरिंग एक्टिविटीज को जारी रखने से पहले यह समझना होगा कि वहां क्या हो रहा है।
जोशीमठ और पूरे उत्तराखंड को लेकर आने वाले दिनों को लेकर चिंता जताते हुए भूविज्ञानी ने कहा कि निश्चित रूप से यह अंत नहीं है। इससे बहुत सारे भूस्खलन होंगे। यह वहां अधिक बार होगा। इसे रोकना होगा तो विकास के नाम पर मनमाने तरह से इंजीनियरिंग प्रोजेक्ट्स पर लगाम लगानी होगी।
सरकार की हठ ने जोशीमठ को इस स्थिति में पहुंचाया
जोशीमठ की स्थिति को समझने के लिए एशियानेट न्यूज़ेबल ने प्रसिद्ध भूविज्ञानी सीपी राजेंद्रन से बात की है। उन्होंने बताया कि जोशीमठ की यह स्थिति एक दिन में नहीं उत्पन्न हुई। जब यहां के प्राकृतिक सिस्टम में विकास के नाम पर घुसपैठ होने पर प्रोजेक्ट्स रोके गए तो उस समय की सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा था कि वह चार धाम परियोजना को आगे बढ़ाना चाहती है। तर्क दिया कि वे चीन के साथ लगी सीमा पर सशस्त्र बलों के लिए सामग्रियों की सुचारू आवाजाही का चाहते हैं। तत्कालीन सरकार का यह बहाना सुप्रीम कोर्ट भी मान गया। कोर्ट ने सरकार को राजमार्ग निर्माण के लिए आगे बढ़ने को कहा। इसी परियोजना में रेलवे ट्रैक भी बननी शुरू हो गई। इसके लिए उन्होंने किलोमीटर तक सुरंग बनाना शुरू कर दिया। कई सुरंगें तो 20-30 किलोमीटर तक लंबी हैं। दरअसल, तत्कालीन सरकार की इस हठ ने वास्तव में पहाड़ों में मौजूद पर्यावरण की नाजुक प्रणाली में दखल थी जिससे पूरा सिस्टम प्रभावित होने लगा। झरने का पानी सूखने लगा, जो कभी वहां आसपास गांव के लोग पीने के लिए इस्तेमाल करते थे।
डॉ.सीपी राजेंद्रन कहते हैं कि जोशीमठ में भी यह स्थिति मुख्य रूप से उस सुरंग की वजह से बनी जिसे विष्णुगढ़ तपोवन हाइड्रोपॉवर प्रोजेक्ट के हिस्से के रूप में बनाया जा रहा था। 2010 में जब सुरंग खोदे जा रहे थे तो वहां जलरिसाव शुरू हुआ। पानी के स्रोत सूखे तो गाद आदि सूखने लगा। जगह-जगह गाद सिकुड़ने की वजह से जमीन भी धंसने लगी। जिसका असर जोशीमठ के मकानों, घरों पर हुआ। यहां की इमारतों में दरार पड़ने लगे। ज्यों ज्यों नीचे की जमीन सूख रही या सिकुड़ रही तो ऊपर जमीन पर बने मकान भी क्रैक कर रहे हैं।
रिसाव पूर्ण सूखने तक स्थितियां ऐसी ही रहेंगी...
सीपी राजेंद्रन, जोशीमठ के भविष्य के बारे में बताते हैं कि यह भूजल के सूखने तक होता रहेगा। भूजल मजबूत होने के लिए तलछट को पकड़ने के लिए प्रेशर बनाता है। जब पानी निकलता है आसपास की जमीन फैलती हैं। इस तरह जब सूखने लगता है तो गाद सिकुड़ने लगती है। सूखने की वजह से जमीन के सिकुड़ने से अधिक से अधिक दरारें विकसित होंगी। आखिरकार, एक समय बाद यह बंद हो जाएगा और फिर वह सामान्य हो जाएगा। लेकिन नुकसान की भरपाई संभव नहीं। हालांकि, यह कब होगा यह तो पता नहीं लेकिन यह जरूर होगा कि पूरे क्षेत्र की टोपोग्राफी बदल जाएगी। पूरा क्षेत्र बदल जाएगा। इसमें कुछ समय लगेगा। अभी जो कुछ भी हो रहा है वह कुछ समय तक चलता रहेगा।
फिलहाल राहत और बचाव कार्य ही करना होगा
बहरहाल, क्षेत्र की सड़कों, घरों में दरारें तेज होती जा रही हैं। साथ ही साथ जोशीमठ की रक्षा के लिए कोलाहल भी इसी के साथ दुगुनी तेजी पकड़ रही। सरकारी अधिकारी और प्रशासन अभी तक 600 से अधिक घरों से लोगों को निकाल चुके हैं। यह संख्या बढ़ रही है। सांस्कृतिक, धार्मिक नगरी जोशीमठ एक बार फिर अपने अस्तित्व को बचाने के लिए जद्दोजहद कर रहा।