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चमोली में ग्लेशियर पिघलने से मची तबाही, त्रासदी ने 2013 की प्रलय का खौफनाक मंजर फिर याद दिलाया
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क्या हैं ग्लेशियर और क्यूं टूटते हैं
ग्लेशियर ( Glacier) या हिमानी या हिमनद एक विशाल आकार के बर्फीले पहाड़ों को कहते हैं। ये पर्वतों से नीचे की ओर गतिशील होते हैं। जैसे-जैसे ग्लेशियर के ऊपरी हिस्से पर बर्फ का भार बढ़ता जाता है, उसकी निचले हिस्से पर दबाव पड़ने लगता है। ग्लेशियर पिघलने की एक बड़ी वजह ग्लोबल वार्मिंग, वनों का कटना माना जाता है। इससे गुरुत्वाकर्षण बढ़ता है और ग्लेशियर पिघलने लगते हैं। जब भी किसी ग्लेशियर का कोई हिस्सा टूटकर उससे अलग होता है, तो इसे तकनीकी रूप से काल्विंग (Glacier Calving) कहते हैं।
(पहली तस्वीर चमोली में ग्लेशियर टूटने की है, दूसरी 2013 की )
17 जून, 2013 को अचानक इतनी बारिश हुई थी कि पहाड़ियां मानों पिघलकर बहने लगी थी। तब 340 मिलीमीटर बारिश दर्ज की गई थी। यह सामान्य बेंचमार्ग 65.9 मिमी से 375 प्रतिशत अधिक थी।
2013 में बादल फटने से असिगंगा और भागीरथी नदी का जलस्तर बढ़ गया था। इसके बाद गंगा और यमुना भी उफान पर आ गई थीं।
2013 की त्रासदी में बेशक सरकारी तौर पर 4,400 से अधिक लोग मारे गए या लापता हो जाने की खबर थी, लेकिन माना गया कि इसमें 10000 लोग हताहत हुए।
2013 की त्रासदी में सैकड़ों घर-पुल आदि टूट गए थे। इन्हें दुबारा बनाने में कई साल लगे।
2013 की त्रासदी में इस तरह बर्बादी का मंजर देखने को मिला था। घर मलबे में बदल गए थे।
2013 की त्रासदी में सड़कें ताश के पत्तों की तरह बिघर गई थीं। कई गांवों का संपर्क पूरी तरह कट गया था।
यह तस्वीर चमोली में ग्लेशियर टूटने के बाद नदी में आई बाढ़ की है। इसका असर 250 किमी दूर तक रहने की आशंका है।