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बस की छत पर बैठ 60 किमी दूर प्रैक्टिस के लिए जाती थीं Savita, Olympics में मेडल का सपना टूटा तो रो पड़ीं
टोक्यो ओलंपिक में भारतीय महिला हॉकी टीम का पदक जीतने का सपना टूट गया। भारतीय टीम ग्रेट ब्रिटेन से 3-4 से हार गई। भारत की गोलकीपर सविता पुनिया फील्ड पर ही बैठ गईं। उनकी आंखों में आंसू आ गए। टीम के दूसरे खिलाड़ी भी भावुक हो गए। सोशल मीडिया पर सविता पुनिया के रोने की तस्वीर तेजी से वायरल हो रही है। फैन्स उन्हें सांत्वना दे रहे हैं और उनके खेल की तारीफ कर रहे हैं। कौन हैं सविता पुनिया और कैसे हॉकी खेलना शुरू किया...
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मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, सविता पुनिया को उनके दादा रंजीत पुनिया ने हॉकी खेलने के लिए प्रोत्साहित किया। दरअसल, सविता के दादा रंजीत पुनिया एक बार हॉकी मैच देखने के लिए दिल्ली गए थे। वे वहां खेल देखकर इतने प्रभावित हुए कि वापस आकर अपनी पोती को भी यही खेल खेलने के लिए कहा।
एक इंटरव्यू में सविता के पिता मोहेंदर पुनिया ने बताया था कि शुरू में तो सविता इस खेल से नफरत करती थी। इसलिए नहीं कि उसे खेल पसंद नहीं था, बल्कि इसलिए कि उसे खेलने जाने के लिए बहुत लंबी दूरी तय करना पड़ता था।
सविता हफ्ते में 6 दिन जोधकन गांव से 30 किलोमीटर दूर सिरसा के महाराजा अग्रसेन गर्ल्स सीनियर सेकेंडरी स्कूल जाती थी। उनके गांव में यही वो एक जगह थी जहां हॉकी के कोच और जरूरत के हिसाब से सामान थे।
सविता के पिता मोहेंदर पुनिया के मुताबिक, सविता को बस के अंदर किट रखने के अनुमति नहीं थी। बस कंडक्टर बस के ऊपर किट बैग रख देता था। लेकिन सविता को अपने किट बैग से बहुत लगाव था। वह उसे दूर नहीं रखती थी। इसलिए कभी कभी किट बैग लेकर खुद बस की छत पर बैठ जाती थी।
पिता मोहेंदर पुनिया ने एक इंटरव्यू में बताया था कि बेटी प्रोक्टिस से घर आने पर बताती थी कि बस में कुछ लड़के छेड़ते (चिढ़ाते हैं) हैं। लेकिन इन चीजों ने ही उसे और मजबूत बनाया। सविता की हर परफॉर्मेंस उन लड़कों के मुह पर तमाचा है।
2007 में सविता को लखनऊ में नेशनल कैप के लिए चुनी गईं। उन्हें 2008 में पहली बार भारतीय टीम से बुलावा आया। लेकिन उन्होंने देश के लिए अपना पहला मैच 2011 में खेला।