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मासूमों की दर्दनाक कहानी: बचपन में मां गुजर गई फिर पिता भी चल बसा, ना रहने को घर ना ही खाने को रोटी
कांगड़ा (हिमाचल). कोरोना के कहर से हुए लॉकडाउन में तमाम लोगों का रोजगार छिन चुका है। रोज कहीं ना कहीं से दर्दनाक कहानी सामने आ रही हैं। ऐसी ही एक बेहद मार्मिक कहानी देवभूमि हिमाचल से आई है। जहां अनाथ हुए दो बच्चे दर-दर की ठोकरें खाने को मजबूर हैं। मासूमों की हालत ऐसे है की ना तो उनके पास रहने के लिए छत है और ना ही खाने के लिए दो वक्त की रोटी। बच्चों की ऐसी हालत की जानकारी जब बीडीओ देहरा डॉ. स्वाति गुप्ता को लगी तो वह मंगलवार उनसे मिलने के लिए पहुंची।
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दरअसल, यह कहानी है कांगड़ जिले के घुरकाल पंचायत के दो भाई महेश और मोहित की। जिनकी मां बचपन मं गुजर गईं और कुछ दिन बाद उनके पिता ने भी दम तोड़ दिया। बिना मां-बाप के मासूम अनाथ हो गए, ऐसे में इन बच्चों ने अपने चाचा का साहार लिया। लेकिन लॉकडाउन के बाद से चाचा को भी काम नहीं मिल पा रहा। तो ऐसे में मासूमों की दो वक्त की रोटी का जुगाड़ भी नहीं हो पा रहा है। आलम यह है कि किसी दिन खाली पेट सो जाते हैं तो कभी आधा पेट भर जाता है।
दोनों बच्चों से बीडीओ डॉ. स्वाति गुप्ता ने बच्चों के चाचा से बात की। चाचा राकेश कुमार ने बताया साल 2006 में इन बच्चों की मां की बीमारी के चलते मौत हो गई थी, जब बड़ा बेटा डेढ़ साल का था। फिर साल 2017 में पिता की नदी में डूबने से मौत हो गई। ऐसे हालातों में बच्चों को पालने की जिम्मेदारी मैंने उठा ली। लेकिन कोरोना के बाद से मुझे कोई काम नहीं मिल रहा है, सप्ताह में एक या दो दिन मजदूरी मिलती है। इस वजह से अब इनको में कैसे पाल सकता हूं।
बातचीत में मोहित व महेश ने बताया कि चाचा जब कभी हमारी मदद कर देते हैं तो हमारा गुजर बसर चल जाता है। मासूम एक कच्चे माकन में रहते हैं, उन्होंने कहा कई बार हमने सरकारी मदद की मांग की, लेकिन किसी ने कोई सहायता नहीं की। इसके बाद बीडीओ मैडम ने बच्चों को एक महीने का राशन मुहैया कराया और उनके स्कूल की फीस भी भरी। साथ ही दोनों को बीपीएल में ले लिया गया है जिससे उनको आगे से राशन मिल सके। इसके अलवा मासूमों को रहने के लिए नया घर बनवाने के आदेश भी दे दिए हैं।
इसी गोशालानुमा बने मकान में रहते हैं दोनों मासूम बच्चे