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जलियांवाला बाग हत्याकांड : तस्वीरों में देखिए शहीद उधम सिंह का घर, 21 साल बाद लिया था हजारों मौतों का बदला
अमृतसर : आज का दिन इतिहास के पन्नो का सबसे काला दिन है। आज ही के दिन 103 साल पहले जलियांवाला बाग नरसंहार (Jallianwala Bagh Massacre) हुआ था। उस वक्त धरती खून से लाल हो गई थी और जख्म हर दिल पर गहरे निशान छोड़ गए थे। 13 अप्रैल 1919 को अमृतसर में हुए इस दर्दनाक मंजर को अंजाम देने वाले जनरल डायर के अंत की कहानी लिखी वीर उधम सिंह (Udham Singh) ने जिन्होंने 21 साल बाद लंदन में हजारों मौतों का बदला लिया। 13 मार्च 1940 को रायल सेंट्रल एशियन सोसायटी के काक्सटन हाल में चल रही बैठक के दौरान उधम सिंह ने जनरल डायर को गोली मार दी थी। तस्वीरों में देखिए शहीद उधम सिंह का पुश्तैनी घर और जानिए उनके जीवन से जुड़े कुछ किस्से..

26 दिसंबर 1899 में पंजाब (Punjab) के संगरूर जिले के सुनाम गांव में शहीद उधम सिंह का जन्म हुआ था। जन्म के दो साल बाद ही उनकी माता नारायण कौर का निधन हो गया था और जब वे आठ साल के थे दो उनके पिता सरदार तहल सिंह भी उनका साथ छोड़ इस दुनिया से चले गए। माता-पिता के न रहने के बाद उधम सिंह ने अपने बड़े भाई के साथ अमृतसर के एक अनाथालय में अपना जीवन बिताया।
उधम सिंह के का नाम शेर सिंह और उनके भाई का नाम मुक्ता सिंह था। अनाथालय में उन्हें उधम सिंह और साधु सिंह के नाम से जाना जाता था। इसके कुछ दिन बाद सभी धर्मों में समभाव और हिंदुस्तानी एकता को दिखाने उन्होंने अपना नाम राम मोहम्मद सिंह आजाद रख लिया था और साल 1933 में पासपोर्ट बनवाने के लिए उन्होंने अपना नाम बदला और उधम सिंह रख लिया।
सुनाम के मोहल्ला पील्वाद में शहीद उधम सिंह का पुश्तैनी घर है। घर के प्रवेश द्वार पर उनके आटा पीसने की चक्की आज भी सुरक्षित रखी हुई है। घर के अंदर उनसे जुड़ी कुछ चीजों के संरक्षण के लिए एक छोटा सा कार्यालय बी बनाया गया है। शहीद के जन्मस्थान की देखरेख पंजाब सरकार का पुरातत्व विभाग कर रहा है।
जिस वक्त जलियांवाला बाग नरसंहार हुआ था तब उधम सिंह उस सभा में आए लोगों को पानी पिलाने का काम कर रहे थे। उन्होंने निहत्थे-निर्दोष लोगों के कत्लेआम का भयावह मंजर अपनी आंखों से देखा था। उसी वक्त उन्होंने ठान लिया था कि एक दिन वह इस नरसंहार का बदला लेकर रहेंगे। उन्होंने अपने जीवन का मकसद ही माइकल ओ डायर को मारने का बना लिया था।
जनरल डायर को उन्होंने जब गोली मारी तो वहां से भागने की कोशिश भी नहीं की। उन्होंने सरेंडर कर दिया। ब्रिटेन में ही उन पर मुकदमा चला और चार जून 1940 को उन्हें हत्या का दोषी ठहराया गया। 31 जुलाई को उधम सिंह को पेंटनविले जेल में फांसी दे दी गई। 1974 में ब्रिटेन ने उनका सामान भारत सरकार को सौंप दिया, लेकिन उनकी पिस्टल और कुछ और सामान आज भी अंग्रेजों के ही पास है।