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Year Ender 2022: टू फिंगर टेस्ट समेत ये 5 फैसले, जो इस साल सुप्रीम कोर्ट ने महिलाओं के पक्ष में दिए
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अविवाहित महिलाएं भी सुरक्षित और कानूनी गर्भपात की हकदार
सितंबर में, सुप्रीम कोर्ट ने एक आदेश पारित किया कि भारत में प्रत्येक महिला चाहे वो वैवाहिक हो या फिर कुंवारी दोनों को सुरक्षित और कानूनी गर्भपात का अधिकार है। पीठ ने कहा कि अविवाहित महिलाओं को मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी रूल्स (एमटीपी) से बाहर रखना असंवैधानिक है।अदालत एक महिला के मामले की सुनवाई कर रही थी, जो सहमति से बने रिश्ते से गर्भवती हुई और 23 सप्ताह और पांच दिनों में सुरक्षित गर्भपात की मांग कर रही थी। पीठ ने उसकी इच्छा मान ली, बशर्ते उसका स्वास्थ्य दांव पर न लगे।
बच्चे का सरनेम तय करने का अधिकार मां के पास
29 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने आंध्र प्रदेश के हाईकोर्ट के फैसले को पलट दिया। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि एक मां बच्चे की एकमात्र प्राकृतिक अभिभावक होने के नाते, अपने बच्चे का उपनाम तय करने का अधिकार रखती है।यह एक स्वागत योग्य फैसला था क्योंकि हमारे समाज में बच्चों को उनके पिता के नाम से जाना जाता है। वे नाम को आगे बढ़ाने वाले हैं। हालांकि, जब एक महिला विवाहित होती है, तो उससे अपेक्षा की जाती है कि वह अपने पति का नाम लेगी। हालांकि, यह अनिवार्य नहीं है।
मैरिटल रेप भी रेप है
29 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वैवाहिक बलात्कार भी बलात्कार है। देश में वैवाहिक बलात्कार को अपराध बनाने की बात चल रही है; हालांकि, महिलाएं अभी भी इसके लिए लड़ रही हैं।लेकिन पीठ के अवलोकन ने महिलाओं को आशा की किरण दी है कि जल्द ही अपराध के अपराधीकरण से बचे लोगों को मदद मिलेगी। यह चर्चा को सही दिशा में आगे ले जा सकता है।2019-2021 के राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के अनुसार, विवाहित महिलाओं में यौन हिंसा के 83% अपराधी पति हैं। उम्मीद है कि 2023 में हम वैवाहिक बलात्कार को आपराधिक बनाने वाले कानून को सुनेंगे।
अविवाहित महिलाएं भी सुरक्षित और कानूनी गर्भपात की हकदार
सितंबर में, सुप्रीम कोर्ट ने एक आदेश पारित किया कि भारत में प्रत्येक महिला चाहे वो वैवाहिक हो या फिर कुंवारी दोनों को सुरक्षित और कानूनी गर्भपात का अधिकार है। पीठ ने कहा कि अविवाहित महिलाओं को मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी रूल्स (एमटीपी) से बाहर रखना असंवैधानिक है।अदालत एक महिला के मामले की सुनवाई कर रही थी, जो सहमति से बने रिश्ते से गर्भवती हुई और 23 सप्ताह और पांच दिनों में सुरक्षित गर्भपात की मांग कर रही थी। पीठ ने उसकी इच्छा मान ली, बशर्ते उसका स्वास्थ्य दांव पर न लगे।
'टू-फिंगर टेस्ट पर प्रतिबंध
31 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि तथाकथित परीक्षण (टू-फिंगर टेस्ट) का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है। पीठ ने यह भी कहा कि परीक्षण गलत धारणा पर आधारित था कि एक यौन सक्रिय महिला का बलात्कार नहीं किया जा सकता है। कोर्ट ने यह भी कहा कि गवाही का संभावित मूल्य यौन इतिहास पर निर्भर नहीं करता है। अदालत ने परीक्षण को "सेक्सिस्ट और पितृसत्तात्मक" कहा। उच्चतम न्यायालय केंद्र सरकार और राज्य सरकारों को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया है कि कोई भी अस्पताल इसका अभ्यास ना करें।
'घर निर्माण के लिए पैसे मांगना दहेज समझा'
जनवरी 2022 में सुप्रीम कोर्ट दहेज हत्या के मामले में सुनवाई करते हुए कहा कि घर के निर्माण के लिए ससुराल वालों से पैसे मांगना दहेज की मांग है। सुप्रीम कोर्ट ने इसे एक अपराध बताया है। इसके साथ ही साथ ही कोर्ट ने एक मामले में दोषियों की सजा को बहाल किया ।
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