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यहीं से जाता है नागलोक का रास्ता, प्रकृति के चमत्कारों से भरी है ये जंगली दुनिया, नागपंचमीं पर है खास महत्व

भोपाल. प्रसिद्ध कवि भवानी प्रसाद मिश्रा की कविता 'सतपुड़ा के घने जंगल, नींद मे डूबे हुए से ऊंघते अनमने जंगल!' को आपने सुना ही होगा, लेकिन जिन्होंने इस जंगल को करीब से देखा है, वे कभी नहीं भूल सकते। सतपुड़ा के इन्हीं दुर्गम-ऊंचे-नीचे पहाड़ और डरावने जंगलों से होकर जाता है नागलोक का रास्ता। हालांकि नागलोक तक पहुंचना आसान नहीं होता। जिनका 'जिगरा' बड़ा होता है, वे ही सहां पहुंचने का जोखिम उठा पाते हैं। रास्ता सिर्फ जानलेवा भर नहीं है, जंगल में शेर-तेंदुए, सांप आदि जानवरों का भी भय बना रहता है। नागलोक यानी नागद्वारी दुनियाभर में प्रसिद्ध है। यहां नागपंचमीं पर भव्य मेला लगता है। इस बार यह मेला 23 जुलाई से 3 अगस्त तक चल रहा है। नागद्वारी मध्य प्रदेश के प्रसिद्ध हिल स्टेशन पचमढ़ी के जंगलों में हैं। यहां साल में सिर्फ नागपंचमीं के अलावा कुछ अन्य दिनों में ही जाने की परमिशन मिलती है। किवदंती है कि यहां भीम को हाथियों जैसा बल मिला था। जानिए क्यों खास है नागद्व़ारी...

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Amitabh Budholiya
Published : Aug 03 2022, 09:49 AM IST
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जिस जगह पर नागद्वारी है, वो एरिया सतपुड़ा टाइगर रिजर्व क्षेत्र में आता है। इसलिए यहां विशेष अवसर को छोड़कर आना प्रतिबंधित है। हर साल नागपंचमीं पर यहां मेला भरता है। इसमें हजारों लोग कई किलोमीटर पैदल चलकर पहुंचते हैं। यहां 10 दिन पहले से ही देशभर से लोग आना शुरू कर देते हैं।
 

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नागद्वारी के अंदर चिंतामणि की गुफा है। ये गुफा करीब 100 फीट लंबी है। इसी डरावनी गुफा में नागदेव की कई मूर्तियां विराजी हैं।
 

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सुबह भक्तों को नागद्वारी के लिए निकाला जाता है।इस 12 किमी की पैदल पहाड़ी यात्रा पूरी कर लौटने में दो दिन लगते हैं।

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हिंदू धर्म में मान्यता है कि जो लोग नागद्वार जाते हैं, उनकी सारी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। नागद्वारी की यात्रा के दौरान रास्ते में कई जहरीले सांपों से अकसर सामना हो जाता है। हालांकि आज तक इन्होंने किसी को नुकसान नहीं पहुंचाया है।
 

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नागद्वारी मंदिर की यह धार्मिक यात्रा करीब 100 साल से ज्यादा समय से चली आ रही है। इस यात्रा के पहले1959 में चौरागढ़ महादेव ट्रस्ट बना था। 1999 में महादेव मेला समिति का गठन हुआ। इसके बाद से यह यात्रा थोड़ा सुगम बनी है।

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नागद्वारी की यात्रा सतपुड़ा की घनी व ऊंची पहाड़ियों में सर्पाकार पगडंडियों से होकर गुजरती है। इस पूरी यात्रा मेंभोले के भक्तों को धर्म लाभ के साथ प्रकृति के नैसर्गिक सौंदर्य के अद्भुत दर्शन होते हैं। कहते हैं कि नागद्वारी की कठिन यात्रा पूरी करने से कालसर्प दोष दूर होता है। वहीं, नागद्वारी में गोविंदगिरी पहाड़ी पर मुख्य गुफा में शिवलिंग में काजल लगाने से मनोकामनाएं पूरी होती हैं। फोटो साभार- यतीश Yateesh sharma और Chetan Bhargava

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About the Author

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Amitabh Budholiya
बीएससी (बायोलॉजी), पोस्ट ग्रेजुएशन हिंदी साहित्य, बीजेएमसी (जर्नलिज्म)। करीब 25 साल का लेखन और पत्रकारिता में अनुभव। एशियानेट हिंदी में जून, 2019 से कार्यरत। दैनिक भास्कर और उसके पहले दैनिक जागरण और अन्य अखबारों में सेवाएं। 5 किताबें प्रकाशित की हैं

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