10 जून को इस विधि से करें शनि मंत्रों का जाप, जानिए शनिदेव के जन्म की कथा
उज्जैन. इस बार 10 जून, गुरुवार को शनि जयंती है। जिन लोगों पर शनि की साढ़ेसाती या ढय्या का प्रभाव है, वे लोग भी इस दिन पूजा कर शनिदेव की कृपा पा सकते हैं। उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के अनुसार, धर्म शास्त्रों में शनिदेव को प्रसन्न करने के लिए कई मंत्रों की रचना की गई है। उन्हीं में से कुछ मंत्र नीचे दिए गए हैं। शनि जयंती पर इनका विधि-विधान से जाप करें तो शनिदेव शीघ्र ही प्रसन्न हो जाएंगे। ये मंत्र इस प्रकार हैं-
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1. वैदिक मंत्र
ऊं शन्नोदेवीरभिष्टय आपो भवन्तु पीतये शन्योरभिस्त्रवन्तु न:
2. लघु मंत्र
ऊं ऐं ह्लीं श्रीशनैश्चराय नम:।
3. ध्यान मंत्र
इंद्रनीलद्युति: शूली वरदो गृधवाहन:।
बाणबाणासनधर: कर्तव्योर्क सुतस्तथा।।
4. बीज मंत्र
ऊं शं शनैश्चराय नम:।
5. मंत्र
ऊं प्रां प्रीं प्रौं स: शनये नम:
6. मंत्र
कोणस्थ पिंगलो बभ्रु: कृष्णो रौद्रोन्तको यम:।
सौरि: शनैश्चरो मंद: पिप्पलादेन संस्तुत:।।
जाप विधि
1. शनि जयंती की सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि करने के बाद कुश (एक प्रकार की घास) के आसन पर बैठ जाएं।
2. सामने शनिदेव की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें और नीले फूल चढ़ाएं।
3. इसके बाद रूद्राक्ष की माला से इनमें से किसी एक मंत्र की कम से कम पांच माला जप करें।
4. शनिदेव से सुख-संपत्ति के लिए प्रार्थना करें। यदि प्रत्येक शनिवार को इस मंत्र का इसी विधि से जाप करेंगे तो शीघ्र लाभ होगा।
स्कंदपुराण के अनुसार शनि का जन्म
स्कंदपुराण के काशीखंड की कथा के अनुसार राजा दक्ष की पुत्री संज्ञा का विवाह सूर्य देवता के साथ हुआ। इसके बाद संज्ञा ने वैवस्वत मनु, यमराज और यमुना को जन्म दिया। सूर्य का तेज ज्यादा होने से संज्ञा परेशान थी। संज्ञा अपनी छाया सूर्य के पास छोड़कर तपस्या करने चली गई। ये बात सूर्य को पता नहीं थी। इसके बाद छाया और सूर्य से भी 3 संतान हुई। जो कि शनिदेव, मनु और भद्रा (ताप्ती नदी) थी। छाया पुत्र होने से शनिदेव का रंग काला है। जब सूर्य देव को छाया के बारे में पता चला तो उन्होंने छाया को श्राप दे दिया। इसके बाद शनिदेव और सूर्य पिता-पुत्र होने के बाद भी एक-दूसरे के शत्रु हो गए।