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कामयाबी की कहानी: ट्रांसजेंडर बन गई रेस्त्रां की मालकिन, 22 साल तक झेला लोगों का बुरा बर्ताव
नोएडा (उत्तर प्रदेश). कहतें हैं कि अगर किसी में कुछ करने की हिम्मत और जज्बा हो तो वह हर मुश्किल में आसान राह निकाल लेता है। आज हमको बताने जा रहे हैं ऐसी एक ट्रांसजेंडर की कहानी, जो 22 साल लड़का रहने के बाद लड़की बनी और आज नोएडा जैसे बड़े शहर में रेस्त्रां चला रहीं है। लेकिन इस मुकाम तक पहुंचने के लिए काफी संघर्ष करना पड़ा है। उसकी जिंदगी में कई उतार-चढ़ाव आए, लेकिन वह डटी रही। आइए जानते इस ट्रांसवुमन की सफलता की कहानी...
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दरअसल, दूसरे के लिए मिसाल बनी इस 27 वर्षीय ट्रांसवुमन का नाम उरूज हुसैन हैं, जो आज 'स्ट्रीट टेम्पटेशन' की मालकिन है। कल तो जो लोग उससे बात नहीं करते हैं अब वह उसके कैफे में आकर घंटो बिताते हैं। उरूज ने बताया कि वह मूलरुप से बिहार के एक छोटे से कस्बे की रहने वाली है। जिसे बचपन से लेकर जवान तक करीब 22 साल तक लड़के के रूप में अपनी जिंदगी गुजारी। इस दौरान घरवालों से लेकर बाहर वालों तक के ताने झेलने पड़े हैं। उरूज बताती हैं कि एक सामान्य बच्चे की तरह जन्म लेने के बाद धीरे-धीरे अहसास हुआ कि मेरा शरीर भले ही लड़कों की तरह है, लेकिन भावनाएं लड़कियों जैसी हैं। बताया कि बचपन में क्लास के लड़के मेरा मजाक उड़ाते और मुझे परेशान करते थे। इसके बाद भी मैंने ना तो किसी को कुछ कहा और ना ही लड़ाई की। सब चुपचाप सहन करती रही।
किसी तरह उरूज हुसैन बताती हैं कि मैंने पढ़ाई में होटल मैनेजमेंट का कोर्स किया। इसके बाद साल 2013 मे मैं दिल्ली आ गई। यहां आने के बाद एक बड़े होटल में नौकरी करना शुरू किया, तो तमाम बुरे अनुभवों का सामना करना पड़ा। कई बार उत्पीड़न का शिकार होना पड़ा। जो भी रेस्त्रां में आता तो मेरा मजाक उड़ाते हुए ताना मारने लगता। यहां तक कि कई लोग तो बुरे मन से मुझे छूते भी थे। लेकिन कभी हार नहीं मानी। इसलिए मैंने अपना कैफे शुरू करने का फैसला किया है।
दिल्ली आने के एक साल बाद मैंने सोचा आखिर कब तक मैं अपनी असली आइडेंटिटी से भागती रहूंगी। मुझे अब खुद को बदलना चाहिए। इसके लिए मैंने डॉक्टरों की सलाह पर साइकोमैट्रिक टेस्ट कराने के बाद लेजर थेरेपी ट्रीटमेंट लेना शुरू कर दिया। धीरे-धीरे मुझमें बदलाव आने शूरु हो गए। मेरी पूरी बॉडी एक दम महिलाओं की तरह हो गई। आज मैं अपनी बॉडी से खुश हूं।
उरूज बताती हैं कि मैने कैफे शुरू करने की प्लानिंग तो कर ली, लेकिन यहां भी परेशानियां खत्म नहीं हुईं। किसी ने मेरी मदद नहीं की। जब दुकान लेने के लिए किसी के पास जाती तो वह मना कर देते। फिर मेरे दोस्त अजय ने मेरी मदद की और वह मेरा बिजनेस पार्टनर बन गया। इसके बाद हमे रेस्त्रां के लिए जगह मिल गई। इस तरह 22 नवंबर 2019 को मैंने नोएडा में एक इसकी शुरुआत की। धीरे-धीरे हमारा कैफे चलना लगा और लोग आने लगे लेकिन कोरोना के चलते हुए लाकडाउन में कई माह तक कैफे बंद करना पड़ा।अब एक बार फिर से इसे दोबारा खोला है। जिससे 4 से 5 हजार का ऑनलाइन ऑर्डर रोजाना मिलने लगा।
उरूज का कहना है कि लोगों की सोच को बदलने के लिए मैंने इस कैफे को शुरू किया है। यह कैफे सभी के लिए उत्पीड़न से मुक्त है। यहां पर हर प्रकार के लोग आते हैं और अपने जीवन के सुख-दुख की बातें शेयर करते हैं। मेरी ख्वाहिश है कि इस तरह के रेस्त्रां देश के हर शहर में खोलना चाहती हूं। ताकि ट्रांसजेंडर्स के प्रति लोगों की सोच में बदलाव आए। इन कैफे को भी ट्रांसजेंडर्स ही चलाएं ताकि वह मेनस्ट्रीम में आएं।
उरूज बताती है कि ट्रांसजेंडर भी आम लोगों की तरह एक आम इंसान हैं। उनमें भी गुस्सा-प्यार और सम्मान और अपमान का भाव होता हैं। बस समाज के लोगों की सोच बदलनी चाहिए। ताकि वह इज्जत की जिंदगी जी सकें। वह मजबूर हैं लोगों के सामने थाली और ताली बजाकर खाने कमाने के लिए। कई समुदाय उनको बुरी नजर से देखते हैं, यहां तक कि बालीवुड में भी ट्रांसजेंडर्स को गलत तरह से दिखाया जाता है।