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म्यांमार के 'रोहिंग' गांव के नाम से जाने जाते हैं रोहिंग्या, आपको पता है, ये सिर मुसलमान नहीं, हिंदू भी हैं
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रोहिंग्या आमतौर पर अल्पसंख्यक मुसलमान हैं। लेकिन इनमें हिंदू भी हैं। ये रोहिंग्या भाषा बोलते हैं। यूनाइटेड नेशंज इन्हें दुनिया का सबसे उत्पीड़ित अल्पसंख्यक मानती है।
1982 से म्यांमार में रोहिंग्या को नागरिकता देना बंद कर दिया है। म्यांमार में रोहिंग्या लोगों की इतिहास 8वीं सदी से माना जाता है।
फोटो:www.unhcr.org
1400 ई के आसपास रोहिंग्या बर्मा(म्यांमार) के ऐतिहासिक प्रांत अराकान प्रांत(अब रखाइन राज्य) में आकर बसे थे। रखाइन प्रांत के गांव का नाम रोहिंग है। कहा जाता है कि इसी गांव के आधार पर इन मुसलमानों को रोहिंग्या कहा जाने लगा।
फोटो: bbc
1430 में अराकान के बौद्ध राजा नारामीखला(बर्मी भाषा में मिन सा मुन) ने इन्हें अपने दरबार में नौकरी दी।
1948 में बर्मा की स्वतंत्रता में रोहिंग्या मुसलमानों का बड़ा योगदान रहा। लेकिन खानबदोश ये लोग जैसे-जैसे अपराध की दुनिया में बढ़ते गए, बौद्धों में इनके प्रति गुस्सा बढ़ता गया। 1960 के आसपास इन पर अत्याचार बढ़ना शुरू हुए।
1982 में जब बर्मा में राष्ट्रीय कानून बना, तो रोहिंग्या को जगह नहीं दी गई। अब इन्हें म्यांमार से खदेड़ा जा रहा है। 2017 के एक अनुमान के मुताबिक, भारत में भी 40000 रोहिंग्या घुसपैठ करके पहुंचे थे। अब इनकी संख्या अधिक होगी।
संयुक्त राष्ट्र ने 2 साल पहले एक रिपोर्ट जारी की थी। इसके मुताबिक म्यांमार से 6.5 लाख रोहिंग्या पलायन कर चुके हैं। हालांकि अब यह आंकड़ा और अधिक होगा। Photo from the United Nations
कोरोना के चलते दुनियाभर में प्रतिबंध के चलते रोहिंग्या लोगों को कहीं शरण नहीं मिल पा रही है। ऐसे में ये समुद्र में यहां से वहां भटकते हुए अपनी जान गंवा रहे हैं। Photo by UNICEF/Brown