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नया नहीं सालों पुराना है भारत-चीन बॉर्डर का विवाद, 58 साल पहले कुछ गज जमीन के लिए बहा था हजारों का खून
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1962 में हुए इस युद्ध में भारत को काफी नुकसान पहुंचा था। लेकिन भारतीय सेना ने चीनियों को खदेड़ने में सफलता हासिल की थी।
सिनो-इंडियन वॉर के दौरान भारतीय रेफ्यूजीस तब अपने पूरे परिवार के साथ बॉर्डर्स छोड़ आ गए थे। 23 नवंबर, 1962 को रिफ्यूजीस वापस जाने की तैयारी के साथ।
इस युद्ध में हजारों भारतीयों की जान गई गई थी। वॉर के दौरान जल्दबाजी में बॉर्डर्स से लोगों को हटाया गया था।
लद्दाख बॉर्डर पर एक बंकर की हिफाजत में तैनात इंडियन आर्मी का जवान। ये तस्वीर 1962 के वॉर के दौरान की है।
3 अक्टूबर 1967 को नाथू ला माउंटेन पर खड़ा चीनी जवान। भारत और चीन के बॉर्डर्स में शामिल इस एरिया को काफी सेंसिटिव माना जाता है।
14 सितंबर 1967 को सिक्किम के बॉर्डर पर शहीद जवान का शव लेकर जाते भारतीय सेना के जवान। इस शव को चीन ने भारत को सौंपा था।
1967 को नाथू ला माउंटेन पर हुए हिंसक झड़प में 80 से ज्यादा भारतीय सेना के जवान शहीद हुए थे। साथ ही चीन की तरफ से 400 से अधिक सैनिकों की मौत की खबर थी।
17 जून 2020 को लद्दाख में बॉर्डर के पास गश्ती लगाता भारतीय आर्मी का ट्रक। हालत एक बार फिर युद्ध से हो गए हैं। लेकिन इस बार भारत की तैयारी पूरी है।
लेह के पास भारतीय बॉर्डर की हिफाजत में लगे भारतीय जवान। तस्वीरें 17 जून की है। कोरोना के बीच जवान देश की सुरक्षा में लगे हुए हैं।