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जब तूफान से बर्बाद हुआ था ओडिशा, 50 हजार लोगों की गई थी जान, सड़ती लाशों से कई दिनों तक आती रही थी बदबू
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29 अक्टूबर 1999 को ओडिशा के तट से सुपर साइक्लोन टकराया था। इस तूफ़ान की स्पीड 300 किलोमीटर प्रति घंटे थी। भारत के इतिहास में ये सबसे खौफनाक तूफान था।
इस तूफ़ान को लेकर ओडिशा कोई तैयारी नहीं कर पाया था। मात्र 5 दिन पहले ही IMD साइक्लोन सर्विलायन्स को इस तूफ़ान की जानकारी मिली थी। 5 दिन में तूफ़ान से लड़ने का प्लान बना पाना काफी मुश्किल था। शायद यही वजह रही कि इस तूफ़ान ने भारी तबाही मचाई।
तूफ़ान 29 अक्टूबर को सुबह साढ़े 10 बजे भारत के तटीय इलाके से टकराया था। इस तूफ़ान की वजह से इतनी ऊंची लहरें उठी कि उसे रिकॉर्ड तक नहीं किया जा सका।
तूफ़ान की वजह से अगले तीन दिन तक कई इलाकों में मूसलाधार बारिश हुई। इस तूफ़ान की उत्पत्ति 550 किलोमीटर दूर अंदमान द्वीप में थी।
इस तूफ़ान ने ओडिशा के दो प्रमुख शहरों, भुवनेश्वर और कटक को निशाना बनाया था। इसके अलावा 14 तटीय क्षेत्र भी सबसे अधिक प्रभावित हुए थे।
चक्रवर्ती तूफ़ान की वजह से सरकारी आँकड़ों के मुताबिक, करीब 10 हजार लोगों की मौत रिकॉर्ड की गई थी जबकि अनऑफिशियल रिकार्ड्स के मुताबिक ये आंकड़ा 50 हजार के पार था। करीब 15 सौ अनाथ बच्चों को अनाथाश्रम पहुंचाया गया था।
इस तूफ़ान ने कुल 1 करोड़ 30 लाख लोगों को प्रभावित किया था। साथ ही 3 लाख 16 हजार के करीब जानवरों की मौत हुई थी।
इस सुपर साइक्लोन की वजह से 16 लाख 50 हजार घर बर्बाद हुए थे। 23 हजार घर तो पानी के साथ बह गए थे और लाखों अन्य को क्षति पहुंची थी।
इस तूफ़ान की जानकारी पहले नहीं मिल पाई थी, इस वजह से तबाही का आंकड़ा इतना ज्यादा रहा।
इस तूफ़ान के बाद साइक्लोन की जानकारी पहले मिल जाने के लिए वार्निंग सिस्टम बनाया गया।
तूफ़ान के गुजरने के कई महीनों बाद तक लोगों की जिंदगी नार्मल नहीं हो पाई। लोगों के पास खाने के लिए कुछ नहीं था। उनके पास रहने के लिए घर नहीं था।
इस तूफ़ान बाद कई तरह की महामारी फैलने का डर था क्यूंकि जानवरों से लेकर इंसानों की डेड बॉडी हर तरफ फैली थी।
कई लोगों को सरकार ने आर्थिक मदद दी। राहत कोष बनाए गए।
इस तूफान के कारण लोगों की जिंदगी काफी प्रभावित हुई। अब राज्य ने तूफानों से लड़ना सीख लिया है।
डिजास्टर मैनेजमेंट कमिटी का निर्माण किया गया है, जो नुकसान का अंदाजा लगाकर सारे आंकड़े सरकार के सामने रखती है।