सार

2009 में चार विधायकों वाली बीजेपी 2014 में 47 सीटों पर जीत का परचम फहरा कर पहली बार सत्ता पर काबिज हुई थी। पिछले चुनाव में कुल पार्टी के 47 उम्मीदवार भले ही विधायक बनने में कामयाब रहे थे, लेकिन हारने वालों में 12 उम्मीदवार ऐसे थे, जो अपनी जमानत तक बचाने में सफल नहीं हुए थे।

चडीगढ़: हरियाणा के मतदाता कब किसे हीरो और कब किसे जीरो बना दें, इस बारे में कुछ तय नहीं कहा जा सकता। हर बार हरियाणा से ऐसा जनादेश सामने आता है कि लोग आश्चर्यचकित रह जाते हैं। पांच साल पहले 2014 के विधानसभा चुनाव में भी हरियाणा की जनता ने दस साल से सत्ता में काबिज कांग्रेस को अर्श से फर्श पर पटक दिया था। बीजेपी को जमीन से सीधे आसमान पर पहुंचा कर सत्ता सौंप दिया।

2009 में चार विधायकों वाली बीजेपी 2014 में 47 सीटों पर जीत का परचम फहरा कर पहली बार सत्ता पर काबिज हुई थी। पिछले चुनाव में कुल पार्टी के 47 उम्मीदवार भले ही विधायक बनने में कामयाब रहे थे, लेकिन हारने वालों में 12 उम्मीदवार ऐसे थे, जो अपनी जमानत तक बचाने में सफल नहीं हुए थे। यही वजह है कि बीजेपी ने इस बार के सियासी रण में 12 सीटों पर कमल खिलाने के लिए पुराने कैंडिडेट पर दांव नहीं लगाया है। सभी 12 सीटों पर नए प्रत्याशी गए हैं।

इन सीटों पर जमानत हुई थी जमानत जब्त

बीजेपी ने जिन दर्जनभर सीटों पर जमानत गंवाई थी उनमें रोहतक जिले की गढ़ी-सांपला, किलोई, भिवानी जिले की तोशाम, सोनीपत की खरखौदा और बड़ौदा, जींद की जुलाना, सिरसा की कालांवाली, रानियां और डबवाली, हिसार की आदमपुर और नलवा, नूंह के फिरोजपुर झिरका और फतेहाबाद विधानसभा सीटें शामिल हैं।

इनमें बीजेपी का सबसे खराब प्रदर्शन तोशाम हलके में रहा, जहां पार्टी प्रत्याशी को केवल 1.20 प्रतिशत वोट ही मिल पाए थे। गढ़ी सांपला में भाजपा को उस समय के सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा के गढ़ में जबरदस्त हार का सामना करना पड़ा था। आदमपुर में भाजपा पूर्व सीएम भजन लाल के गढ़ में उनके बेटे कुलदीप बिश्नोई के हाथों हारी थी। ऐसे में बीजेपी ने इन सीटों पर इस बार जीत का स्वाद चखने के लिए मजबूत प्रत्याशी उतारे हैं ताकि विपक्ष के मजबूत कैंडिडेट को उन्हीं के दुर्ग में घेरा जा सके।

विपक्ष के गढ़ में इस तरह सेंध लगाने की कोशिश

गढ़ी सांपला किलोई में बीजेपी ने इस बार धर्मबीर हुड्डा की जगह इनेलो से आए सतीश नांदल पर दांव खेला है। यह जाट समुदाय से आते हैं. तोशाम में गुणपाल की जगह शशिरंजन परमार, खरखौदा में कुलदीप काकरान की जगह मीना नरवाल, बरौदा में बलजीत सिंह मलिक के स्थान पर योगश्वर दत्त, जींद के जुलाना में संजीव की जगह इनेलो से आए परमिंद्र सिंह ढुल और कालांवाली में राजेंद्र सिंह की जगह अकाली दल के विधायक बलकौर सिंह को मैदान में उतारा है।

ऐसे ही रानियां में जगदीश नेहरा की जगह इनेलो से आए रामचंद्र कंबोज, डबवाली में देव कुमार शर्मा की जगह ताऊ देवीलाल परिवार के आदित्य देवीलाल, आदमपुर में करण सिंह रानौलिया के जगह पर टिक टॉक गर्ल सोनाली फौगाट, नलवा में मास्टर हरि सिंह की जगह इनेलो से आए रणवीर गंगवा, नूंह के फिरोजपुर झिरका में पूर्व इनेलो विधायक नसीम अहमद और फतेहाबाद में स्वतंत्र बाला चौधरी की जगह भजन लाल परिवार के दूड़ा राम पर दांव खेला है।

क्या पूरा होगा 75 प्लस का लक्ष्य

दिलचस्प यह है कि बीजेपी ने हरियाणा में 75 प्लस सीटें जीतने का लक्ष्य रखा है। इसीलिए बीजेपी ने अपनी जमानत जब्त हुई सीटों पर नए उम्मीदवार उतारे हैं, ऐसे में देखना होगा कि बीजेपी इस रणनीति के जरिए क्या कमल खिलाने में कामयाब रहेगी या नहीं। अगर इन सीटों पर बीजेपी को कामयाबी मिली तो वह राज्य में अपने पुराने प्रदर्शन को आगे ले जा सकती है। मगर हरियाणा के मूड को लेकर कुछ भी तय नहीं कहा जा सकता। इसके कई सबूत हैं।