सार
पंजाब में आम आदमी पार्टी (aam aadmi party) ने जो सफलता हासिल की है, इसका असर पड़ोसी राज्य हरियाणा में दिखने लगा है। तभी अरविंद केजरीवाल ने इसको लेकर खास रणनीतियों पर काम करना भी शुरू कर दिया है।
चंडीगढ़. दिल्ली के सीएम और आम आदमी पार्टी के सर्वेसर्वा अरविंद केजरीवाल की आगामी रणनीति पूरे उत्तर भारत में आम आदमी पार्टी को शीर्ष पर ले जाने की है। इसके लिए उन्होंने ने हिमाचल और हरियाणा को लेकर खास रणनीतियों पर काम करना भी शुरू कर दिया है। खासकर हरियाणा को लेकर फिलहाल केजरीवाल खुद किसी की जॉइनिंग में शामिल नहीं हो रहे हैं, बल्कि वह हरियाणा के प्रभारी सुशील गुप्ता के माध्यम से अनेक जॉइनिंग करवा रहे हैं। अरविंद केजरीवाल खुद हरियाणा से चुनाव लड़ कर सीएम बनना चाहते हैं।
केजरीवाल हरियाणा की किस सीट से लड़ेंगे चुनाव?
ऐसे में पहला सवाल यह बनता है कि आखिरकार अरविंद केजरीवाल हरियाणा की किस सीट से चुनाव लड़ सकते हैं। जानकारी के अनुसार अरविंद केजरीवाल करनाल विधानसभा सीट से अपने लिए संभावनाएं खंगाल रहे हैं। इसीलिए करनाल विधानसभा सीट से सर्वे करवाया जा रहा है और जीत की संभावनाओं के सभी मोर्चों को मजबूत बनाने की रणनीतियों पर काम भी शुरू कर दिया गया है।
खट्टर का पंजाबीवाद और भ्रष्टाचार होंगे बड़े मुद्दे!
किसी भी चुनाव को जीतने के लिए सोशल मुद्दे बाहरी हथियार होते हैं तो कास्ट मैनेजमेंट दूसरा बड़ा हथियार होती है। खट्टर के पंजाबीवाद से जाट तो पहले से खिलाफ हैं, वहीं बनियों के व्यापार पर कब्जे से बनिया समाज में काफी रोष है। दूसरा दो साल बाद बहुत दबाव के बाद बनिया समाज से खट्टर ने कमल गुप्ता को मंत्री बनाया है। जबकि पार्टी के सबसे बड़े फाइनेंसर बनिया समाज से हैं। इसके अलावा ब्राह्मणों की हालत न नौ में न तेरह में वाली बना दी गयी है। सरकार के सबसे बड़े व प्रभावशाली पदों पर खट्टर ने या तो बाहरी व्यक्तियों को बैठा रखा है या फिर पंजाबी को। जिससे दूसरे समाजों के बुद्धिजीवी वर्ग में काफी रोष है। इसी का खामियाजा खट्टर को उठाना पड़ेगा।
बीजेपी को हराने लिए बनाया मास्टर प्लान
जिस तरह बीजेपी ने ने हरियाणा में 2012 में भूपेंद्र हुड्डा के खिलाफ भ्रष्टाचार के मुद्दे को प्रमुखता से उछाल कर एंटी कांग्रेस माहौल का निर्माण किया था, उसी तरह की प्रक्रिया हरियाणा में भी शुरू कर दी गई है। अरविंद केजरीवाल के खास दोस्त अशोक खेमका सरकार के भीतर के भ्रष्टाचार को तह के जानते हैं और समय-समय पर वो सरकार को मुश्किलों में डालते रहे हैं। 2012 में उन्होंने कांग्रेस के जीजा रॉबर्ट वाड्रा जमीन घोटाले को उजागर करके कांग्रेस की कब्र खोदने का काम किया था। ठीक उसी तरह आज खेमका ने रजिस्ट्रियों में 200 से 500रु प्रति गज रिश्वत के घोटाले को उजागर करके सीएम की ईमानदारी को नँगा कर दिया है। सीएम के खुद के विधानसभा करनाल में करोड़ों के घोटालों के आरोपी पकड़े जा रहे हैं। सीएम की नाक के नीचे घोटाले हो रहे हों और सीएम को पता नहीं हो। यह दो सूरत में सम्भव है पहला सीएम ने आंख बंद की हुई हों या फिर सीएम अव्वल दर्जे के मूर्ख हों।
कांग्रेस की फूट केजरीवाल के लिए बन रही संजीवनी
दूसरा सबसे बड़ा कारण अरविंद केजरीवाल का मनोहर लाल खट्टर के खिलाफ लड़ने का यह है कि खट्टर ने अपने पंजाबी समुदाय के लोगों को खास तौर पर फायदा पहुंचाया है और हरियाणा के व्यापार में बनियों के वर्चस्व को खत्म करने का काम किया है। बनिया लॉबी खट्टर के खिलाफ काफी समय से लामबंद हो रही है। ऐसे में बनिया लॉबी व आर्थिक तौर पर व्यापारियों का समर्थन बीजेपी को कमजोर कर सकता है। वहीं जीटी रोड पर कांग्रेस के धड़ों की आपसी फूट आज फिर से उजागर हो गयी है। कुलदीप बिश्नोई के द्वारा की गई करनाल रैली को लेकर हुड्डा गुट के कुलदीप शर्मा ने हमलावर तरीके से बयानबाजी की है। कुलदीप शर्मा के पिता चिरंजीलाल शर्मा से करनाल से लम्बे समय तक सांसद रहे हैं। खैर कांग्रेस की आपसी फूट अरविंद केजरीवाल के लिए संजीवनी का काम करेगी।
करनाल विधानसभा सीट का पढ़िए इतिहास
करनाल के रसूखदार व व्यापारी खट्टर से नाराज हैं पर किसी विकल्प के न होने के कारण उनके साथ खड़े रहते हैं, क्योंकि व्यापारी सीधे सत्ता से नहीं टकराते। 2019 में खट्टर की मुश्किलें सुमिता सिंह बढ़ा सकती पर उन्हें ईडी के छापे मारकर चुनाव नहीं लड़ने के लिए मजबूर कर दिया गया था। सुमिता सिंह इंडिया बुल्स के मालिक समीर सिंह गहलोत की सास हैं। सुमिता सिंह 2000 व 2005 विधायक रही हैं। जाट परिवार की बेटी और सिख परिवार की बहू हैं। बीजेपी सरकार में इंडिया बुल्स पर लगातार छापे पड़ते रहे हैं, जबकि समीर सिंह की मां कृष्णा गहलोत खुद बीजेपी में हैं। सविता सिंह 2019 में असन्ध से लड़ने चली गयी थी। 1987 में भारतीय जनता पार्टी के विधायक सेठ लछमन दास बजाज, उसी समय कांग्रेस के प्रत्याशी जयप्रकाश गुप्ता आदि भी खट्टर के खिलाफ सक्रिय हैं। 1991 में जयप्रकाश गुप्ता ने भाजपा के चेतनदास को पराजित किया था और 2000 में निर्दलीय विधायक बनें। करनाल विधानसभा में जयप्रकाश गुप्ता बनिये चेहरे के रूप में टक्कर देता रहा है। बनियों और पंजाबियों में वर्चस्व की लड़ाई लम्बे समय से चला आ रहा है, क्योंकि मूलतः दोनों व्यापारी वर्ग हैं। करनाल में इन दोनों के संघर्ष में सिख वोटर सबसे बड़ा की-फेक्टर हैं। पंजाब में जीत के बाद सिखों का रुझान आम आदमी पार्टी की तरफ बढ़ रहा है।
सीएम खट्टर के खिलाफ ताल ठोक सकते हैं केजरीवाल
ऐसे में स्पष्ट है कि अरविंद केजरीवाल हरियाणा में आम आदमी पार्टी की सरकार बनाने के लिए खुद करनाल से चुनाव लड़ेंगे और खुद सीएम फेस बनकर सामान्य या आम लोगों को चुनाव में उतारकर बड़े घरानों को पंजाब की तरह धूल चटाने का काम करेंगे। कांग्रेस व इनेलो के खिलाफ बीजेपी जाट नॉन जाट की राजनीति को अपनी संजीवनी की तरह इस्तेमाल करती आ रही है परंतु केजरीवाल के खिलाफ बीजेपी के पास ऐसा कोई राजनीतिक हथियार नहीं है। ऐसे में बीजेपी को यह सोचकर ही सब्र करना पड़ेगा कि हरियाणा में कांग्रेस की सरकार नहीं बननी चाहिए भले आप की सरकार बन जाए। करनाल से चुनाव लड़ना सबसे बड़ा राजनीतिक समीकरण बदलने वाला होगा, क्योंकि जिस तरह दिल्ली में अरविंद केजरीवाल ने शीला दीक्षित के खिलाफ चुनाव लड़कर पूरे चुनाव को कांग्रेस बनाम आप बना दिया था, ठीक उसी तरह हरियाणा में करनाल से केजरीवाल के चुनाव लड़ते ही चुनाव बीजेपी बनाम आप हो जाएगा। बाकी के दल एक झटके में गेम से बाहर हो जाएंगे।