सार

दुनिया के लिए बहुत बड़ा खतरा बन चुके कोरोना की महामारी पर काबू पाने के लिए ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के एक साइंटिस्ट ने वैक्सीन की खोज कर ली है। अब इसका ट्रायल किया जा रहा है। जानकारी के मुताबिक, यह वैक्सीन अक्टूबर तक एवेलेबल हो जाएगा। 

हेल्थ डेस्क। दुनिया के लिए बहुत बड़ा खतरा बन चुके कोरोना महामारी पर काबू पाने के लिए ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के एक साइंटिस्ट ने वैक्सीन की खोज कर ली है। अब इसका ट्रायल किया जा रहा है। जानकारी के मुताबिक, यह वैक्सीन अक्टूबर तक एवेलेबल हो जाएगा। ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में कोविड-19 के लिए वैक्सीन का परीक्षण मई तक 500 लोगों पर कर लिया जाएगा। यूनिवर्सिटी में वैक्सीनोलॉजी की प्रोफेसर सारा गिल्बर्ट ने द लैंसेट मैगजीन को यह जानकारी दी। ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट के मुताबिक, 18 से लेकर 55 साल के लोगों पर इस वैक्सीन का ट्रायल किया जा रहा है। 

अक्टूबर तक वैक्सीन हो जाएगा तैयार
प्रोफेसर गिल्बर्ट ने लैंसेट मैगजीन को बताया कि अक्टूबर तक वैक्सीन के ट्रायल का तीसरा चरण पूरा हो जाएगा। इसके बाद इसका बड़े पैमाने पर उत्पादन शुरू हो सकेगा। इससे कोरोना वायरस पर काबू पाने में मदद मिलेगी। प्रोफेसर गिल्बर्ट ने 1994 में ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में वैक्सीन पर रिसर्च शुरू किया था। उन्हें मार्च में यूनाइटेड किंगडम के नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर हेल्थ रिसर्च और यूके रिसर्च एंड इनोवेशन से 2.8 मिलियन डॉलर का ग्रांट भी दिया गया था, ताकि वे अपनी टीम के साथ कोरोना वायरस का टीका खोजने के काम में तेजी ला सकें।

क्लिनिकल ट्रायल हुआ शुरू
प्रोफेसर गिल्बर्ट की टीम ने एक्सपेरिमेंटल इम्युनाइजेशन के बाद वैक्सीन का क्लिनिकल ट्रायल शुरू किया है। ऐसा करने वाली यह पहली रिसर्च टीम है। वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन ने 70 वैक्सीन को मान्यता दी है। इसके साथ ही तीन और वैक्सीन को मान्यता दी गई है, जिसका ट्रायल लोगों पर किया जा रहा है। गिल्बर्ट ने जो वैक्सीन डेवलप किया है, फेज 1-2 में उसका ट्रायल 5 समूहों में बंटे 510 लोगों पर किया जाएगा। ट्रायल में शामिल होने के बाद करीब 6 महीने तक उन लोगों की निगरानी की जाएगी। यह निगरानी बाद में एक साल तक भी की जा सकती है। पांच समूहों में से एक समूह को शुरुआती वैक्सीनाइजेशन के चार सप्ताह बाद वैक्सीन का दूसरा इंट्रामस्क्युलर शॉट दिया जाएगा। रिपोर्ट में कहा गया है कि रिसर्च में वैक्सीन के असर और उसके सुरक्षित होने का निर्धारण किया जाना है। इस वैक्सीन का नाम ChAdOx1 nCoV-19 रखा गया है।
 
मेनिंगोकोकल बीमारी के लिए दिया जाएगा टीका
जिन लोगों पर इस वैक्सीन का ट्रायल किया जा रहा है, उन्हें मेनिंगोकोकल बीमारी की रोकथाम के लिए  भी टीका दिया जाएगा। ऐसा किया जाना जरूरी होता है। अगर यह टीका नहीं दिया जाए तो जिन लोगों पर किसी खास वैक्सीन का ट्रायल किया जा रहा है, उन्हें कोई दूसरा संक्रमण भी हो सकता है।
  
टूसरे देशों में भी हो सकता है रिसर्च
प्रोफेसर गिल्बर्ट ने कहा कि वैक्सीन किस हद तक प्रभावशाली है और वायरस के संक्रमण को रोक सकता है, इसका पता गर्मियों में चलेगा। तब यह देखा जा सकेगा कि आबादी का कितना हिस्सा इस वायरस से प्रभावित होता है। इसके बाद दूसरे देशों में भी इस वैक्सीन का ट्रायल करने के बारे में सोचा जा सकता है। 

कैसे विकसित किया गया ये वैक्सीन
इस वैक्सीन का नाम ChAdOx1 nCoV-19 रखा गया है। इसे एक ऐसे  वायरस से विकसित किया गया, जिसका कोई बुरा असर नहीं होता। यह वायरल वेक्टर वैक्सीन है, जिसे एडेनोवायरस कहा जाता है। इसे महामारी पैदा करने वाले SARS-CoV-2 वायरस की सतह स्पाइक प्रोटीन उत्पन्न करने के लिए मोडिफाई किया गया है। कोरोनो वायरस की पहचान करने और उस पर हमला करने के लिए यह वैक्सीन इम्यून सिस्टम को मजबूत करता है। प्रोफेसर गिल्बर्ट ने कहा कि डब्ल्यूएचओ कोविड -19 का वैक्सीन बनाने वाले सभी शोधकर्ताओं के लिए अपनी योजनाओं और निष्कर्षों को साझा करने के लिए एक प्लेटफॉर्म बना रहा है।