सार

ज्योतिष शास्त्र में ग्रहों की युति का बड़ा महत्व होता है। दो ग्रह जब एक ही राशि में एक अंश पर आ जाएं तो इसे युति कहा जाता है। कुछ ग्रहों की युति शुभ फल प्रदान करती है तो कुछ अशुभ। ग्रहों की युति का प्रभाव उस दौरान किए गए कामों को भी प्रभावित करता है।
 

उज्जैन. यदि सही ग्रहों की युति में कोई विशेष काम किया जाए तो उनमें सफलता मिलना सरल हो जाता है। ये विशेष काम किसी भी क्षेत्र से संबंधित हो सकते हैं जैसे तंत्र-मंत्र, उपाय, मारण, मोहन, उच्चाटन आदि। आगे जानिए किन ग्रहों की युति में कौन से कार्य करना आपके लिए फायदेमंद साबित हो सकता है। यहां तंत्र शास्त्र में किए जाने वाले षटकर्मो की जानकारी दी जा रही है।

चंद्र-मंगल: शत्रुओं पर एवं ईर्ष्या करने वालों पर सफलता प्राप्त करने के लिए एवं उच्च वर्ग अधिकारियों से मिलने के लिए यह युति उपयुक्त होती है। 

चंद्र-बुध: धनवान व्यक्ति, उद्योगपति, लेखक, पत्रकार, संपदाक आदि से मेल मुलाकात के लिए से समय अनुकूल रहता है। 

चंद्र-शुक्र: प्रेम प्रसंगों में सफलता प्राप्त करने, प्रेमी-प्रेमिका को प्राप्त करने, विवाह आदि कार्यों के लिए, विपरीत लिंगी से कोई कार्य कराने के लिए ये युति शुभ रहती है। 

चंद्र-गुरु: अध्ययन कार्य, किसी नई विद्या को सीखने एवं धन-व्यापार की उन्नति के लिए शुभ। 

चंद्र-शनि: शत्रुओं का नाश करने एवं उन्हें हानि पहुंचाने या उन्हें कष्ट पहुंचाने के लिए इन ग्रहों की युति का उपयुक्त माना जाता है। 

चंद्र-सूर्य: राजपुरुष और उच्च अधिकारी वर्ग के लोगों को हानि पहुंचाने या उनका उच्चाटन करने के लिए विशेष। 

मंगल-बुध: शत्रुता, भौतिक सामग्री को हानि पहुंचाने, हर प्रकार की संपत्ति, संस्था व घर को खराब करने के लिए। 

मंगल-शुक्र: हर प्रकार के कलाकारों, डांस ड्रामा एवं स्त्री-पुरुष पर प्रभुत्व-सफलता प्राप्त करने के लिए। 

मंगल-गुरु: युद्ध और झगड़े में या कोर्ट केस में सफलता प्राप्त करने के लिए। शत्रुओं के बीच भी लोगों को अपने पक्ष में करने के लिए। 

मंगल-शनि: शत्रु नाश एवं शत्रु मृत्यु के लिए, किसी स्थान को वीरान करने के लिए। 

बुध-शुक्र: प्रेम संबंधी सफलता, विद्या प्राप्ति एवं विशेष रूप से संगीत में सफलता के लिए। 

बुध-गुरु: पुरुष के साथ मित्रता के लिए, सहयोग के लिए, हर प्रकार की ज्ञानवृद्धि के लिए, विज्ञान सीखने के लिए। 

बुध-शनि: कृषि कार्यो के लिए, किसी वस्तु या किसी रहस्य को गुप्त रखने के लिए। 

शुक्र-गुरु: प्रेम संबंधी आकर्षण एवं जनसमूह को अपने अनुकूल बनाने के लिए। 

शुक्र-शनि: विपरीत लिंगी शत्रु पर विजय प्राप्त करने के लिए। 

गुरु-शनि: हर प्रकार के विद्वानों के बुद्धिनाश के लिए, शास्त्रार्थ व विवाद पैदा करने के लिए।


 

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