सार
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार ग्रहों की स्थिति लगातार बदलती रहती है। ग्रहों के राशि परिवर्तन के अलावा ग्रह वक्री और मार्गी भी होते रहते हैं। वक्री का मतलब उल्टी चाल और मार्गी का अर्थ सीधी चाल चलना होता है। जब भी कोई ग्रह वक्री होता है तो लोगों पर इसका अच्छा और बुरा दोनों तरह का प्रभाव देखने को मिलता है।
उज्जैन. आज यानी 20 जून, रविवार से बृहस्पति यानी गुरु ग्रह कुंभ राशि में वक्री यानी उल्टी चाल चलना आरंभ कर देंगे। आगे जानिए इस ग्रह से जुड़ी खास बातें…
वैदिक ज्योतिष में बृहस्पति
बृहस्पति देवताओं के गुरु हैं, इसलिए इन्हें गुरु भी कहा जाता है। गुरु धनु और मीन राशि के स्वामी हैं। गुरु कर्क राशि में उच्च के और मकर राशि में नीच के माने जाते हैं। इसके अलावा ये पुनर्वसु, विशाखा और पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र के स्वामी माने जाते हैं। गुरु करीब 13 महीनों तक किसी एक ही राशि में रहते हैं। गुरु से प्रभावित व्यक्ति धार्मिक, आस्थावान, दर्शनिक, विज्ञान में रूची रखने वाले एवं सत्यनिष्ठ होते हैं।
कुंडली में गुरु की स्थिति
- अगर कुंडली में गुरु शुभ भाव में तो वक्री चाल से अच्छे फल की प्राप्ति होती है। वहीं अगर कुंडली में गुरु अशुभ स्थिति में है तो वक्री होने पर कार्यों में रुकावटें आने लगती हैं।
- अगर किसी की कुंडली में गुरु ग्रह मजबूत और शुभ भाव में होते हैं तो व्यक्ति को अच्छे परिणाम मिलते हैं और उसकी रुचि धर्म-कर्म की तरफ बढ़ने लगता है। मान-सम्मान और धन लाभ होने लगता है।
- कुंडली में गुरु कमजोर या अपने शत्रु भाव में हो तो लोगों को परेशानियां उठानी पड़ती है। इन्हें विवाह में समस्याएं आने लगती हैं। दरिद्रता और बीमारियां चारो तरफ से घेर लेती हैं।
गुरु के उपाय
कुंडली में बृहस्पति कमजोर है तो गुरुवार तो कुछ आसान से उपाय करने से इसका समधान हो सकता है। जिससे सौभाग्य बढ़ता है और किसी भी प्रकार की कोई कमी नहीं रहती है। बृहस्पति देव को पीला रंग अतिप्रिय है। वे पीले रंग का पीतांबर धारण करते हैं। इसलिए इनकी पूजा में हल्दी का उपयोग किया जाता है। गुरुवार के दिन केसर पीला चंदन या फिर हल्दी का दान करना बहुत शुभ होता है। इससे घर में सुख-शांति आती है और आरोग्यता मिलती है।