सार

धर्म ग्रंथों में भगवान शिव को प्रसन्न करने के अनेक उपाय व व्रत बताए गए हैं। प्रदोष भी इनमें से एक है। ये व्रत हर महीने के दोनों पक्षों की त्रयोदशी तिथि को किया जाता है।

उज्जैन. प्रदोष व्रत में दिन भर उपवास रखकर शाम को प्रदोष काल में भगवान शिव का विशेष पूजन किया जाता है। इसीलिए इसे प्रदोष व्रत कहते हैं। ये व्रत अलग-अलग वारों के साथ मिलकर अलग-अलग योग बनाता है। जैसे सोमवार को यदि प्रदोष व्रत हो तो ये सोम प्रदोष कहलाता है। इस बार 13 मई, शुक्रवार को वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि का योग बन रहा है। शुक्रवार को प्रदोष व्रत होने से ये शुक्र प्रदोष (Shukra Pradosh 2022) कहलाएगा। शुक्र प्रदोष व्रत करने से शुक्र ग्रह से संबंधित दोष खत्म होते हैं। जानिए इस दिन कैसे करें व्रत-पूजा और शुभ मुहूर्त…

ये हैं पूजा के शुभ मुहूर्त (Shukra Pradosh 2022 Ke Shubh Muhurat)
वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि 13 मई, शुक्रवार की शाम को लगभग 05:27 से शुरू होगी, जो 14 मई, शनिवार की दोपहर 03:23 पर समाप्त होगी। चूंकि प्रदोष व्रत की पूजा शाम को की जाती है। इसलिए ये व्रत 13 मई को करना ही श्रेष्ठ रहेगा। इस दिन पूजा का मुहूर्त शाम 07:04 से रात 09:09 तक रहेगा। 

इस विधि से करें पूजा (Shukra Pradosh 2022 Ki Puja Vidhi) 
13 मई की सुबह स्नान आदि करने के बाद पूर्व दिशा की ओर मुख करके आसन पर बैठ जाएं और भगवान शिव की तस्वीर या प्रतिमा स्थापित करें। इसके बाद गंगा जल से शिवजी का अभिषेक करें। अब भांग, धतूरा, फल, फूल, अक्षत (चावल) गाय का दूध आदि चीजें चढ़ाएं। साथ ही साथ ओम नम: शिवाय मंत्र का जाप करें। शाम को शुभ मुहूर्त में दोबारा स्नान करके इसी विधि से पुन: शिवजी की पूजा करें और घी और शक्कर मिले जौ के सत्तू का भोग लगाएं। आठ दिशाओं में आठ दीपक लगाएं। इसके बाद शिवजी की आरती करें। रात्रि जागरण करें। इस प्रकार प्रदोष व्रत करने से हर संकट दूर हो सकता है।

शिवजी की आरती (Shivji Ki Arti)
ॐ जय शिव ओंकारा, स्वामी जय शिव ओंकारा।
ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव, अर्द्धांगी धारा॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥
एकानन चतुरानन पञ्चानन राजे।
हंसासन गरूड़ासन वृषवाहन साजे॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥
दो भुज चार चतुर्भुज दसभुज अति सोहे।
त्रिगुण रूप निरखते त्रिभुवन जन मोहे॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥
अक्षमाला वनमाला मुण्डमाला धारी।
त्रिपुरारी कंसारी कर माला धारी॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥
श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे।
सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥
कर के मध्य कमण्डलु चक्र त्रिशूलधारी।
सुखकारी दुखहारी जगपालन कारी॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका।
मधु-कैटभ दोउ मारे, सुर भयहीन करे॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥
लक्ष्मी व सावित्री पार्वती संगा।
पार्वती अर्द्धांगी, शिवलहरी गंगा॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥
पर्वत सोहैं पार्वती, शंकर कैलासा।
भांग धतूर का भोजन, भस्मी में वासा॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥
जटा में गंग बहत है, गल मुण्डन माला।
शेष नाग लिपटावत, ओढ़त मृगछाला॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥
काशी में विराजे विश्वनाथ, नन्दी ब्रह्मचारी।
नित उठ दर्शन पावत, महिमा अति भारी॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥
त्रिगुणस्वामी जी की आरति जो कोइ नर गावे।
कहत शिवानन्द स्वामी, मनवान्छित फल पावे॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥

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