सार

वैदिक ज्योतिष के अनुसार आकाश मंडल को 360 अंश का माना गया है। इसमें 12 राशियों को स्थित किया गया है। इस प्रकार प्रत्येक राशि को 30 अंश प्राप्त होते हैं।

उज्जैन. कोई भी ग्रह जब इन राशियों में होता है तो वह अधिकतम 30 अंश तक ही भ्रमण कर सकता है। जब किसी व्यक्ति की जन्मकुंडली बनाई जाती है तो प्रत्येक ग्रह 0 से 30 अंश के बीच ही होता है। ग्रहों की पांच प्रकार की अवस्थाएं होती हैं। प्रत्येक अवस्था 6 अंश की होती है। ग्रहों के अंश के आधार पर ही व्यक्ति का भविष्यकथन किया जाता है। इसमें सम और विषम राशि के अनुसार ग्रहों की पांच अवस्थाएं परिवर्तित हो जाती हैं। ये हैं सम और विषम राशियां…

विषम राशि- 1-मेष, 3-मिथुन, 5-सिंह, 7-तुला, 9-धनु, 11-कुंभ
सम राशि- 2-वृषभ, 4-कर्क, 6-कन्या, 8-वृश्चिक, 10- मकर, 12-मीन

ये हैं ग्रहों की अवस्थाएं
- ग्रहों की पांच प्रकार की अवस्थाएं होती हैं। बाल, कुमार, युवा, वृद्ध और मृत अवस्था।
- विषम राशि में बैठा ग्रह 1 से 6 अंश तक बाल होता है। 7 से 12 अंश तक कुमार, 13 से 18 अंश तक युवा, 19 से 24 अंश तक वृद्ध और 25 से 30 अंश तक मृत अवस्था में होता है।
- सम राशि में बैठा ग्रह 1 से 6 अंश तक मृत, 7 से 12 अंश तक वृद्ध, 13 से 18 अंश तक युवा, 19 से 24 अंश तक कुमार और 25 से 30 अंश तक बाल अवस्था में होता है।

अवस्थाओं का प्रभाव
- जब कोई ग्रह बाल अवस्था में होता है तो उसका सूक्ष्म फल मिलता है। यह मनुष्य को चंचल बनाता है।
- जब कोई ग्रह कुमार अवस्था में होता है तो वह मनुष्य को गैरजिम्मेदार बनाता है।
- जब कोई ग्रह युवा अवस्था में होता है तो वह मनुष्य को ऊर्जावान, सशक्त और कार्यशील बनाता है।
- वृद्धावस्था में ग्रह के होने पर वह व्यक्ति को गंभीर, अनुभवी बनाता है, किंतु मनुष्य शक्तिशाली नहीं रह जाता। मृत अवस्था के ग्रह का कोई फल नहीं मिलता।