अमरूद को काटने, छीलने और काटने से पौधा ज़्यादा झाड़ीदार, हेल्दी और ज़्यादा प्रोडक्टिव बनता है। सही समय पर कटाई करने से फल की क्वालिटी बेहतर होती है और पैदावार दोगुनी हो जाती है। किसान और घर पर बागवानी करने वाले लोग इस तकनीक का इस्तेमाल करते हैं।

Guava Plant Cutting: अगर आप अपने घर में अमरूद की खूब फसल चाहते हैं, तो सही टेक्निक से कटिंग तैयार करना सबसे आसान और असरदार तरीका है। अमरूद के पौधे बीज से उगाए जा सकते हैं, लेकिन बीज से उगाए गए पौधों को फल देने में काफी समय लगता है। दूसरी ओर, कटिंग से उगाए गए पौधों में असली पौधे जैसी ही खूबियां रहती हैं और वे जल्दी फल देने लगते हैं। इसीलिए गार्डनिंग एक्सपर्ट अमरूद की कटिंग को सबसे सफल तरीका मानते हैं।

साथ ही, सही समय पर प्रूनिंग और निपिंग करने से पौधे की एनर्जी सही दिशा में जाती है और नई कलियों के विकास को बढ़ावा मिलता है। निपिंग और प्रूनिंग से पौधों को रोशनी और हवा की बैलेंस सप्लाई बनी रहती है, कीड़ों और बीमारियों का खतरा कम होता है, और मीठे, बड़े और बेहतर क्वालिटी वाले फल मिलते हैं। इन टेक्निक को अपनाकर, किसान अपने अमरूद के बागों में पैदावार बढ़ाकर अपना प्रॉफिट दोगुना कर सकते हैं।

निपिंग क्यों ज़रूरी है

प्रोग्रेसिव किसान प्रवीण कुमार सिंह बताते हैं कि अगर निपिंग न की जाए, तो पौधा सिर्फ़ लंबा होता है, लेकिन फल कम लगते हैं। निपिंग से पौधा ज़्यादा झाड़ीदार होता है, चारों तरफ़ से धूप और हवा मिलती है, और वह हेल्दी रहता है। पौधे की एनर्जी सही दिशा में जाती है, जिससे फल का साइज़ और स्वाद बेहतर होता है।

कटाई का सही समय

अमरूद की कटाई साल में दो बार करनी चाहिए। पहली कटाई जनवरी-फ़रवरी में और दूसरी सितंबर-अक्टूबर में, बारिश के बाद। गर्मियों में कटाई करने से नई कलियों को बढ़ने का मौका मिलता है, जो सर्दियों में अच्छे फल देती हैं। बारिश के बाद कटाई करने से अगले सीज़न की पैदावार दोगुनी हो जाती है।

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कटाई का सही तरीका

कटाई करते समय मुख्य डालियों को न काटें। सिर्फ़ सूखी, बीमार और अंदर की ओर बढ़ने वाली डालियों को ही निकालें। कटाई के बाद, बीमारी से बचाने के लिए पौधे पर कॉपर ऑक्सीक्लोराइड स्प्रे करें। साथ ही, खेत में गोबर या ऑर्गेनिक खाद डालें, जिससे पौधे को नई एनर्जी मिलती है और फल जल्दी लगते हैं।

निपिंग और प्रूनिंग के फ़ायदे

सही निपिंग और प्रूनिंग से नई टहनियां तेज़ी से बढ़ती हैं। फलों का प्रोडक्शन बढ़ता है, रोशनी और हवा का बैलेंस बना रहता है, और कीड़ों और बीमारियों का खतरा कम हो जाता है। फल बड़े, मीठे और बेहतर क्वालिटी के होते हैं, जिससे बाज़ार में उनकी कीमत बेहतर होती है और किसान को ज़्यादा मुनाफा होता है।

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